ग़ज़ल ::
कुर्रतुल-ऐन-ताहिरा
अनुवाद और प्रस्तुति : सदफ़ नाज़

नुक़्ता ब नुक़्ता

गर मिली मैं तुझ से कभी चेहरा ब चेहरा1आमने-सामने, रू ब रू2आमने-सामने ग़म-ए-दिल बयान करूंगी मैं नुक़्ता ब नुक़्ता, मू ब मू3बाल बराबर फ़र्क के बग़ैर, हू ब हू

तेरे रुख़ की इक झलक को मैं सबा सी फिरती रही
ख़ाना ब ख़ाना, दर ब दर4एक दरवाज़े से दूसरे दरवाज़े तक, कूचा ब कूचा, कू ब कू

जुदाई में तेरी मेरी आंखों से ख़ून के आंसू बह रहे हैं
दजला5इराक़ का मशहूर दरिया-ब-दजला6दरिया के दरिया, बहुत ज़्यादा, बा कसरत, यम7दरिया ब यम, चश्मा ब चश्मा, जू ब जू

चांद सा मुंह और तेरे रुख़्सारों पे घुंघराले बालों का ख़त
जैसे, ग़ुंचा ब ग़ुंचा8कली-कली, गुल ब गुल, लाला9ट्यूलिप ब लाला, बू10ख़ुशबू ब बू

तेरी आंखें, तिल और अबरू ने मेरे दिल के परिंद का शिकार किया
तब्अ’11तबियत ब तब्अ’, दिल ब दिल, मेहर ब मेहर12मुहब्बत, इश्क, ख़ू ब ख़ू

ग़म-ए-दिल ने मेरे अपने रूह के रेशमी कपड़े में तेरा इश्क बुना है
रिश्ता ब रिश्ता13धागे में धागा पैवस्त करके, ताने-बाने को ख़ूब मिलाकर, नख़ ब नख़14बारीक तार को अच्छी तरह एक दूसरे में मिलाकर, तार ब तार, पू ब पू

आख़िरन ‘ताहिरा’ ने जब अपने दिल में झांका वहां बस तुम दिखे
सफ़्हा ब सफ़्हा15पृष्ठ दर पृष्ठ, ला ब ला16हर गोशे में, हर तरफ़, पर्दा ब पर्दा, तू ब तू

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ईरानी कवयित्री कुर्रतुल-ऐन-ताहिरा (1817-1852) बाबी मत से जुड़ी हुई थीं. इस्लाम से अलग मत रखने के कारण उन्हें फांसी दे दी गई थी. स्त्रियों की शिक्षा और अधिकारों के लिए वह आजीवन संघर्ष करती रहीं. ‘नुक़्ता ब नुक़्ता’ उनकी एक मशहूर ग़ज़ल है. सदफ़ नाज़ सुपरिचित लेखिका और अनुवादक हैं. उनसे sadaf.naaz2009@gmail.com पर बात की जा सकती है. यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 18वें अंक में पूर्व-प्रकाशित.

‘नुक़्ता ब नुक़्ता’ यहां सुन भी सकते हैं :

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