जून जॉर्डन की एक कविता ::
अनुवाद और प्रस्तुति : अनुराधा सिंह
जून जॉर्डन (9 जुलाई 1936 – 14 जून 2002) जोहार्लेम में पैदा और बेडफोर्ड-स्टायवेसेंट, ब्रुकलिन में बड़ी हुईं. वह एक अंतराराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ब्लैक कैरेबियन-अमेरिकी कवि, कार्यकर्ता, शिक्षक और निबंधकार हैं. वह मुक्ति के लिए एक विपुल भावुक और प्रभावशाली आवाज रहीं, जो आजीवन अमेरिकी कविता, राजनीतिक दृष्टि और नैतिक चेतना के लिए लिखती रहीं. जॉर्डन को बर्कले में ‘जनता की कवि’ के रूप में जाना जाता रहा. साल 1991 में उन्होंने कलात्मक अभिव्यक्ति के साधन के रूप में कविता का उपयोग करने और छात्रों को सशक्त बनाने के लिए ‘जनता के लिए कविता’ कार्यक्रम की स्थापना की. यहां प्रस्तुत कविता अपने मूल रूप में पोएट्री फाउंडेशन पर पढ़ी जा सकती है.
कविता मेरे अधिकारों के विषय में
आज रात मुझे फिर टहलना पड़ेगा
और अधिक स्पष्ट करने पड़ेंगे अपने विचार
इस कविता के विषय में
कि मैं क्यों किसी शाम
बिना अपने कपड़े, जूते,
लैंगिक पहचान, उम्र, स्त्री होने की हैसियत
या अंग-विन्यास बदले
घर से बाहर अकेली नहीं जा सकती
नहीं जा सकती एक सड़क पर बिल्कुल अकेली—
बगैर एक मुद्दा बने
मुद्दा कि मैं वह सब नहीं कर सकती
जो करना चाहती हूं अपनी ही देह के साथ
महज इसलिए कि मैं एक गलत लिंगभेद,
गलत उम्र, गलत त्वचा हूं
मैं शहर से बाहर
किसी निर्जन तट पर जाकर
ईश्वर, बच्चों, संसार,
या इन सबको एक साथ
अपनी या नक्षत्रों की मौन-भाषा में
उद्घाटित करना चाहती हूं
लेकिन मैं नहीं कर सकती
मैं जा ही नहीं सकती वहां अकेली
जाकर रुक नहीं सकती
रुक कर सोच नहीं सकती
जबकि होना चाहती हूं बस एकाकी
क्यों मैं अपने ही साथ
वह सब नहीं कर सकती
जो करना चाहती हूं
आखिर कौन बना रहा है हमारे लिए ये नियम
फ्रांस का कानून कहता है कि अगर कोई पुरुष
जबरन मुझमें प्रवेश करे
लेकिन स्खलित नहीं हो
तो मेरा बलात्कार नहीं हुआ
बावजूद मेरे छुरा घोंप देने जैसे हिंसक प्रतिरोध के
बावजूद मेरे हृदयविदारक आर्तनाद के
बावजूद उस दोगले इंसान से की गई चिरौरियों के
बावजूद उसके सिर पर हथौड़ा मार देने जैसे संघर्ष के
बावजूद इन सबके
अगर मेरा शील-भंग किया जाता है
तो यह बलात्कार नहीं मेरी सहमति है
क्योंकि अब जाकर हम समझे हैं
यह बलात्कार हुआ ही इसलिए था
कि मैं गलत थी
गलत थी कि मैं ‘मैं’ थी
वहां होकर गलत थी जहां मेरा होना ही गलत था
यह ऐसा है जैसे दक्षिण अफ्रीका
नामीबिया में घुसे
नामीबिया अंगोला में
तो कैसे जानोगे कि प्रिटोरिया स्खलित हुआ
काली भूमि पर राक्षसी जैकबूट के
स्खलन के साक्ष्य क्या हैं भला
और अगर नामीबिया के बाद अंगोला उसके बाद जिम्बावे
उसके बाद मेरे सारे अपने लोग
अपने गांवों की आहुति देने की हद तक प्रतिरोध करें
फिर भी हार जाएं
क्या तब भी शक्तिशाली राष्ट्र यही दावा करेंगे
कि इसमें हमारी सहमति थी
आप समझ रहे हैं न मेरी बात :
हम गलत त्वचा के
गलत प्रायद्वीप में रहते गलत लोग हैं
दुनिया किस उदारता की बात कर रही है आखिर
इस सप्ताह के ‘टाइम्स’ के अनुसार
यह एक समस्या है
और यह समस्या है इसे बहुत पहले
1966 में सीआईए ने तय कर लिया था
और यह समस्या एनक्रूमाह नाम का व्यक्ति था
इसलिए उन्होंने उसे मार दिया और
उससे पहले पैट्रिस लुमुम्बा था
और उससे भी पहले थे
आईवी स्कूल के कैंपस में मेरे पिता
जो स्कूल के कैफेटेरिया में प्रवेश करने से डरते थे
कहते थे कि वह गलत हैं गलत आयु गलत चमड़ी
गलत लिंग पहचान
जबकि वह मेरी फीस भर रहे थे
और उसके पहले
मेरे पिता कह रहे थे कि मैं भी गलत हूं
मुझे एक बेटा होना चाहिए था वह एक लड़का चाहते थे
मुझे गोरी रंगत का होना चाहिए था
मेरे बाल सीधे चिकने होने चाहिए थे
और मुझे एक सिरफिरी लड़की नहीं लड़का होना चाहिए था
और उससे पहले मेरी मां
मेरी नाक के लिए प्लास्टिक सर्जरी
और दांतों के लिए ब्रेसेज का आग्रह कर रही थीं
पुस्तकों का पीछा छोड़ देने की बात कर रही थीं
दरअसल वह चाहती थीं कि मैं पढ़ना छोड़ दूं
मैं सीआईए की समस्याओं से भलीभांति वाकिफ हूं
दक्षिण अफ्रीका की समस्याओं से भी
एक्सॉन कॉरपोरेशन की समस्याओं से
गोरे अमेरिका की आम समस्याओं से
शिक्षकों, उपदेशकों, एफबीआई,
सामाजिक कार्यकर्ताओं और खासतौर पर मेरे माता-पिता की समस्याओं से
मैं वाकिफ हूं इन समस्याओं से क्योंकि
अंततः मैं ही हूं वे समस्याएं
मैं हूं बलात्कार का इतिहास
अपने अस्तित्व के तिरस्कार का इतिहास
स्वयं के आतंकित बंदीकरण का इतिहास हूं
अपने ही मन, देह और आत्मा पर अधिकार के विरुद्ध
अनगिनत हमलों और असीमित सैन्यशक्ति का इतिहास
और भले ही यह प्रश्न हो
रात को बाहर घूमने
मेरे द्वारा अनुभूत प्रेम
या योनि की शुचिता का
या प्रश्न हो मेरी राष्ट्रीय सीमाओं की शुचिता का
मेरे नेताओं की शुचिता का
मेरी एक एक कामना और इच्छा की शुचिता का
मैं अपने
निजी, विशेष संरचना वाले, निर्विवादित रूप से एकाकी,
इकलौते हृदय में यह जानती हूं
कि मेरा बलात्कार हो चुका है
क्योंकि मैं हमेशा गलत रही हूं
गलत लिंग, गलत आयु, गलत त्वचा, गलत नाक, गलत बाल, गलत जरूरतें,
गलत सपने, गलत भौगोलिक पहचान, गलत पहनावा
मैं बलात्कार का पर्याय हूं
मैं वह समस्या जिसे हर कोई
बलपूर्वक घुस कर
मिटा देना चाहता है
वीर्य के साक्ष्य का होना न होना मायने नहीं रखता
आज यह बात स्पष्ट हो जानी चाहिए
कि यह कविता मेरी सहमति नहीं,
मैं सहमत नहीं
अपनी मां, पिता, शिक्षकों से,
एफबीआई से, दक्षिण अफ्रीका से, बेडफोर्ड स्टाय से,
पार्क एवेन्यू से, अमेरिकी एयरलाइंस से
कोनों में खड़े कामुक शोहदों से,
कार में बैठे नीच ढोंगियों से
क्योंकि मैं गलत नहीं :
गलत होना मेरा नाम नहीं
मेरा अपना नाम ही मेरा नाम मेरा नाम मेरा नाम है
और मुझे नहीं मालूम कि किसने हमारे लिए चीजों को ऐसा बना दिया
लेकिन मैं इतना बता सकती हूं कि अब से मेरे प्रतिरोधों,
मेरे सरल दैनिक और रात्रिक आत्मनिर्णयों से
तुम्हारी जान को खतरा है.
***
अनुराधा सिंह हिंदी की एक समर्थ कवयित्री और अनुवादक हैं. कविताओं की पहली किताब ‘ईश्वर नहीं नींद चाहिए’ शीर्षक से इस वर्ष ही भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुई है. गद्य भी लिखती हैं. अनुराधा से anuradhadei@yahoo.co.in पर बात की जा सकती है.