कवितावार में पॉल एलुआर की कविता ::
अनुवाद : पल्लवी प्रसाद
अपवाद की पड़ताल
वे कुछ ही थे
समस्त पृथ्वी पर
हरेक सोचता वह अकेला है
वे गाते, सही था
उनका यूं गाना
किंतु वे गाते जैसे कोई शहर को बर्खास्त करता है
जैसे कोई खुद की हत्या करता है
घिसी आर्द्र रात
क्या हम तुम्हें सहें—
प्रदीर्घ
क्या हम न हिलाएं
तुम्हारी मोरी-सी शिनाख्त
हम नहीं इंतजार करेंगे उस सुबह का
जो बनी है नापने के लिए
हम चाहते थे दूसरों की आंखों में देखना
उनकी रातों का थका प्रेम
वे सिर्फ मरने के स्वप्न देखते हैं
भुला कर अपने प्यारे जिस्म
अपने ही शहद में फंसी मधुमक्खियां
अनजान हैं जीवन से
जिसे झेलते हैं हम हर जगह
लाल छतें जुबां तले घुलती हैं
दुहरे पलंग पर बीतते हैं अतिउष्ण दिन
आओ, अपने ताजे लहू की थैलियां उलट दो
कि अब भी है साया यहां
एक कतरा मूर्खता वहां
हवा में हैं उनके उतारे मुखौटे
आगे हैं उनके फंदे और उनकी जंजीरें
और अंधे सयानों जैसा उनका इशारा
चट्टानों के नीचे आग है
यदि तुम आग बुझाते हो
बावजूद इससे जो रात पैदा होगी
ध्यान रहे हमारे पास है ज्यादा ताकत
बनिस्पत तुम्हारी बीवियों और बहनों के पेट से
और हम प्रजनन करेंगे
उनके बिना
किंतु स्खलित हो हस्तमैथुन से
तुम्हारे कारागार में
पत्थर के प्रवाह, वेदना का फेन
जहां दृष्टि तैरती है बिना द्वेष की
महज आंखें — बिन आस कीं
जो तुम्हें जानती हैं
और बनिस्पत नजरअंदाज करने के
जिन्हें तुम्हें बुझा देना था
अपनी सूलियों से भी तेज सेफ्टी पिन से
हम अपने पुट्ठे ले जाएंगे वहां, जहां चाहें
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पॉल एलुआर (14 दिसंबर 1895-18 नवंबर 1952) फ्रांस के प्रख्यात कवि हैं. वह अपनी Liberty कविता के लिए संसार भर में जाने जाते हैं. यह वह कविता है जिसने फाशिज्म के विरुद्ध जन-प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया. पल्लवी प्रसाद हिंदी की चर्चित कहानीकार हैं. वह हिमाचल प्रदेश के ऊना में रहती हैं. उनसे pjaruhar@yahoo.co.in पर बात की जा सकती है.