डेविड इग्नटाओ की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सरबजीत गरचा

डेविड इग्नटाओ | तस्वीर सौजन्य : my poetic side

एक बादल उकेरता है

एक बादल उकेरता है एक आदमी का चेहरा और यों ही ऊपर देखते हुए आदमी पहचान लेता है कि वह उसका अपना है। हवा के दबाव से वह चेहरा पंखों में छितरने लगता है और वह आदमी अपने भीतर उड़ने की क्षमता को देख लेता है। वह अपनी बाँहें तान लेता है और गोल-गोल घूमते और डुबकते हुए उन्हें ऊपर-नीचे हिलाने लगता है, जैसे कोई पाखी-मानव हवा की थपेड़ों में करता हो, और फिर वह चेहरा अदृश्य हो जाता है और पंख भी ओझल हो जाते हैं, कतरनों और चकतियों में अपने रूप खोते हुए। इससे वह अपने जीर्जन, क्षीणता और अंतत: मृत्यु की भविष्यवाणी करता है। बादल काले हो जाते हैं, होंगे ही; उनके आपसी टकराव से गड़गड़ाहट होती है। बिजली चमकती है। वह जानता है कि वह ख़ुद से युद्धरत है, जिसके पीछे का कारण वह इस पल भेद नहीं सकता; पहले युद्ध लड़ना होगा ख़ुद के लिए और ख़ुद के ख़िलाफ़, और वह खड़ा है मूसलधार बारिश में जो बादलों की पहली गड़गड़ाहट से ही शुरू हो चुकी है। हालाँकि जो चेहरा उसने देखा था वह लोप हो चुका है, लेकिन बना तो वह बादलों का ही था, बादल जिनका वह ख़ुद को अंश मानता है, और इसलिए बारिश ही है जिससे वह रोता है, बादलों के बीच, अपने अभाव पर। सांत्वना की कोई गुंजाइश नहीं है, तब तक नहीं जब तक बारिश थम नहीं जाती और सूरज नहीं निकल आता और एक बार फिर बादल नहीं आ जाते, धवल, तेज से प्रज्ज्वलित और इसलिए, उसकी ख़ातिर, उम्मीद से लबालब। मालूम होता है उसने अपनी बेतरतीब भावनाओं को सँवारने की कोशिश नहीं की है। उसकी भावनाओं का कोई क्रम नहीं है, ऐसा उसका पक्का विश्‍वास है, लेकिन उसे ऐसी किसी व्यवस्था की ज़रूरत भी नहीं, तब तक नहीं जब तक सूरज उगता और ढलता है और मौसम बना रहता है। मौसम ही है जिससे वह उत्पन्न होता है, और इसलिए उसमें दोष नहीं हैं। उसमें दोष नहीं है, वह है आदमी मौसम का।

अपनी बेटी के लिए

जब मैं मर जाऊँ तुम एक तारा चुन लेना
और दे देना उसे मेरा नाम
ताकि तुम्हें मालूम हो जाए
कि मैंने तुम्हें छोड़ा नहीं है
न ही तुम्हें भुलाया है
मेरे लिए तुम एक अज़ीज़ तारा थीं
मैं रहा तुम्हारे पीछे-पीछे
तुम्हारे जन्म और बचपन से गुज़रते हुए
अपने हाथ में तुम्हारा हाथ थामे

जब मैं मर जाऊँ
तुम एक तारा चुन लेना और उसे देना
मेरा नाम ताकि मैं तुम पर तब तक
न्योछावर कर सकूँ अपनी चमक
जब तक कि तुम
अँधेरे और ख़ामोशी में आकर
निभाने न लगो मेरा साथ

मेरा अपना घर

पत्ते को देखते हुए मेरा विषय अर्थ के वे पहलू नहीं होते जो पत्ते के बारे में मेरा मन मुझे बताता है, बल्कि विषय होता है मेरी इच्छा कि मैं पत्ते को वाचाल बना दूँ ताकि वह मुझसे हाँफते-हाँफते कहे, क्लोरोफ़िल, क्लोरोफ़िल। मैं ख़ुशी से झूम उठूँगा उसके साथ और जवाब में कहूँगा, ख़ून, और पत्ता हाँ में सिर हिलाएगा। एक-दूसरे से बात करने के बाद हम पाएँगे कि हमारे विषय तो ख़त्म ही नहीं होते और हम सोचने लगेंगे कि मेरे बूढ़े होने पर और पत्ते के मुरझा जाने और किरमिची हो जाने पर, पत्ते से बातचीत के कारण ज़मीन में दफ़्न होने का विचार मेरे लिए इतना सुपरिचित होगा, इतना आत्मीय कि इस कविता को पूरा कर लेने के बाद पेड़ों के बीच मेरा टहलना ऐसा होगा जैसा कि अपने ही घर में प्रवेश करना।

जीवितों और मृतकों के बीच

अगर जीवन को जीते रहने के सिवा जीवन में कुछ और है
तो हमें भीतर हो रही हलचल से पता होगा, है न
जैसे तात्कालिकता की एक तेज़ गुनगुनाहट
या रात-दिन हमारे अंतर्घट का एक उद्दीपन?
लेकिन चूँकि हम सिर्फ़ बैठते हैं या खाते हैं और फिर
पाख़ाने चले जाते हैं या हमबिस्तर होते हैं और कपड़े पहनते हैं,
क्या तुम निराश हो? क्या तुम बग़ावत करना चाहते हो?
क्या तुम कोई विरोध-पत्र लिखोगे?
काश मैं जान पाता कि मैं क्या कह सकता था
मैं कितना उदास हूँ और इसलिए लिख मारता हूँ
और छोड़ देता हूँ लिखे हुए को दूसरों के लिए
ताकि वे उस पर विचार कर सकें कि वह
जीवितों और मृतकों के बीच
कोई रिश्ता बनाएगा

अँधेरे में

मैं अपने फ़ोन के पास बैठा हूँ
एक संदेश का इंतज़ार करता हुआ
आवाज़ आएगी और मुझसे कहेगी कि
सब कुछ बिल्कुल ठीक हो गया है
जीयो जैसे तुमने हमेशा जीना चाहा है
और मैं इंतज़ार करता रहता हूँ
सिर्फ़ रात ही है जो मुझे
लिटा देती है
फ़ोन तब भी
बग़ल में होता है और मैं
इंतज़ार करता हूँ
अँधेरे में उसके बजने का

दो दोस्त

मुझे तुमसे कुछ कहना है

सुन रहा हूँ

मैं मर रहा हूँ

सुनकर खेद हुआ

मैं बूढ़ा हो रहा हूँ

शोकजनक है

बिल्कुल है, मुझे लगा तुम्हें बताना चाहिए

ज़रूर, और मुझे बहुत अफ़सोस है, मेल-जोल बनाए रखना

रखूँगा, और तुम भी

और बताते रहना नया क्या है

ज़रूर, हालाँकि बहुत कुछ नहीं होगा

और अपना ख़याल रखना

तुम भी

और बचकर चलना

तुम भी

सपना

कोई पास आता है
ज़िंदगी बर्बाद हो गई बतलाकर
तुम्हारे पैरों में गिर पड़ने के लिए
और फ़ुटपाथ पर अपना सिर पटकने के लिए
बुरी तरह फैलते हुए ख़ून को देखकर तुम
कमज़ोर आवाज़ में आस-पास के लोगों से
मदद की गुहार लगाते हो
तुम्हारा जीवन उसकी मायूसी समो लेता है
वह अपना सिर पटकता रहता है
लेकिन लगता है जान तुम्हारी जाने वाली है
तुम उसके पास ही गिर पड़ते हो
तब जाकर तुम्हारी आँख खुलती है
जब शरीर जा चुका होता है
ज़मीन से ख़ून धुल चुका होता है
दुकानें अपने सामान समेत जगमगा रही होती हैं

मरे हुओं को बचा लो

आख़िरकार प्रेम को छोड़ देने का मतलब है
एक पत्ते को चूमना
बारिश को अपने सिर पर बेतहाशा बरसने देना
आग का सम्मान करना
बात कर रहे इनसान की आँखों और हरकतों को पढ़ना
मेज़ पर खाना और साथ में चुपके-से छुरी-काँटे रखना
भीड़ से इस तरह गुज़ारना मानो वह तुमसे ही बनी हो
प्रेम न करना यानी जीना है

प्रेम करने का मतलब है
उस जंगल में लिवा लिए जाना
जहाँ एक खुफ़िया क़ब्र खोदी जाती है
पेड़ों के नीचे
अँधेरे की महिमा गाते-गाते

जीने का मतलब है अपना नाम लिखना
मरे हुओं की उपेक्षा करना
जेब में बटुआ लिए घूमना
और हाथ मिलाना

प्रेम करने का मतलब है मछली हो जाना
मेरी नौका लोट रही है समुद्र में
तुम आज़ाद हो
मरे हुओं को बचा लो

रेगिस्तान के बंजारे

कोई ठिकाना मिलने पर
जब वे वहाँ जाते हैं
तो रेत पर चलते हैं
मर जाने के बाद रेत से होती है
उनकी अस्थियों की शुद्धि
वे मसान में तंबू गाड़ते हैं
और सांत्वना के तौर पर
अपने बच्चों को देते हैं
अपनी मृत्यु की अंतरंगता
और लेट जाते हैं श्रद्धारत


डेविड इग्नटाओ (1914-1997) अमेरिकी कवि-संपादक हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद के लिए David Ignatow: Poems 1934-1969 से चुनी गई हैं। सरबजीत गरचा (जन्म : 1977) सुपरिचित अँग्रेज़ी-हिंदी कवि-लेखक-अनुवादक और संपादक हैं। उनसे sarabjeet@coppercoin.co.in पर बात की जा सकती है।

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