कविता ::
रूथ वनिता
अनुवाद : रिया रागिनी

रूथ वनिता

वहीं दूसरी ओर

तुम अपना दाहिना हाथ इस्तेमाल कर सकते थे।
ज़्यादा मुश्किल, कम निपुण,
पीड़ाजनक भी, मगर कर सकते थे।
तुमने किया भी, कुछ देर तक कोशिश की।
मगर बायाँ इतना स्वाभाविक लगा, इतना आसान,
इतनी बख़ूबी चला कि तुम वापस नहीं जा पाए।
तुम दाहिना हाथ इस्तेमाल कर सकते थे
काम पर, लोगों के सामने, लौट आते
मधुर अचेतना को
केवल घर पर, निजी संदर्भ में।
मगर जैसे-जैसे तुम साहसी होते गए तुम भूल गए,
और दुनिया नहीं रुकी।
तुम सावधान होना भूल गए।
अब तुम्हें खब्बू कहा जाता है।
उन्होंने इतने सारे सवाल पूछे
कि तुमने जवाब खोजने शुरू कर दिए।
कितने खब्बू लोग हैं?
क्या हमेशा से इतने सारे ही थे?
कितने महा प्रतिभाशाली?
कितने गुनाहगार?
क्या यह शैतान की निशानी है?
या बिल्कुल सहज?
क्या यह कही बाहर से आया है?
क्या इसका उपचार संभव है?
बाएँ का अर्थ क्या है?
क्या बायाँ हाथ मैला नहीं होता?
ना, यह तो बहुत बाद की सोच है।
देवियाँ बाईं ओर खड़ी होती हैं,
और हरि हर के बाईं ओर,
शाश्वत प्रकृति, शाश्वत कर्म।
पहिया दाहिने या बाएँ घूमता है
इस पर निर्भर है कि तुम कहाँ खड़े हो।
अब तुम्हें कुछ ज़्यादा ही पता है, हद से ज़्यादा
‘लेफ़्ट-ओवर’ चीज़ों के बारे में,
वह अद्भुत वाम।
तुम्हारे सबसे क़रीबी दोस्त खब्बू हैं,
हालाँकि, सच कहूँ तो,
कुछ खब्बुओं को तुम बर्दाश्त नहीं कर पाते।
संगठन, विरोध, अधिकारों की माँग—
कब तक चलाना पडेगा यह सब?
भोर से पहले की चुप्पी में, कभी-कभार सोचती हूँ,
अगर किसी ने ध्यान न दिया होता,
जैसे वह काली या भूरी आँखों को नहीं देते,
तो क्या मैं कोई और होती?
ज़्यादा खेलती, कम अकुलाती?
क्या मैं बेहतर कविता लिखती?
ज़िंदगी बेहतर होती, या फिर बदतर?


रूथ वनिता दिल्ली विश्वविद्यालय में बीस साल अध्यापन के बाद अब मोंटाना विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं। 1978-1990 तक वह ‘मानुषी’ की सह-संपादक रहीं। उन्होंने ‘साफ़ो एंड द वर्जिन मेरी : सेम सेक्स लव एंड द इंग्लिश लिटरेरी इमेजिनेशन’ (1996), ‘लव्स राइट : सेम सेक्स मैरिज इन इंडिया’ (2005), ‘गांधी’ज़ टाइगर एंड सीताज़ स्माइल’ [जेंडर सेक्सुअलिटी और संस्कृति पर आलेख-संग्रह (2005)] ‘जेंडर सेक्स एंड द सिटी : उर्दू रेख़्ती पोएट्री इन इंडिया 1780-1870’ (2012), ‘डांसिंग विद द नेशन : कोर्टेंसैंस इन बॉम्बे सिनेमा’ (2017) जैसी कई किताबें लिखी हैं। उनका पहला उपन्यास ‘मेमोरी ऑफ़ लाइट’ साल 2020 में प्रकाशित हुआ और जल्द ही राजकमल प्रकाशन द्वारा हिंदी में ‘परियों के बीच’ के नाम से सामने आएगा। उन्होंने ब्रिटिश और भारतीय साहित्य पर कई आलेख लिखे हैं और हिंदी और उर्दू से कविताओं और फ़िक्शन का अनुवाद अँग्रेज़ी में किया है। यहाँ प्रस्तुत कविता ‘ऑन दी अदर हैंड’ शीर्षक से ‘वोग’ पत्रिका में 2014 में अपने मूल स्वरूप में और हिंदी में ‘सदानीरा’ के क्वियर अंक में पूर्व-प्रकाशित। रिया रागिनी से परिचय के लिए यहाँ देखें : जब हमारे मरने का समय आएगा

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