जिमी सांतियागो बका की कविताएं ::
अनुवाद और प्रस्तुति : उपासना झा
जिमी सांतियागो बका ने जब जेल में पढ़ने की इच्छा जताई तो इसे खतरनाक माना गया और उन्हें मृत्युदंड का इंतजार कर रहे दुर्दांत अपराधियों के साथ रख दिया गया. कुछ समय उन्हें आइसोलेशन वार्ड में बिताना पड़ा. निरक्षर बका ने जेल में पढ़ना-लिखना सीखा और जब सजा पूरी कर बाहर निकले तो उन्हें कवि के रूप में प्रसिद्धि मिल चुकी थी. उनकी कविताएं जब प्रकाशित होने लगीं तो बाहर से लोग उन्हें किताबें भेजने लगे, कई कवि-लेखक उनसे पत्राचार करने लगे.
बका का जन्म 2 जनवरी 1952 के दिन सांता फे, न्यू मेक्सिको में हुआ था. दो साल की उम्र में माता-पिता ने उन्हें छोड़ दिया था जिसके बाद आठ साल की उम्र तक वह अपनी दादी के साथ रहे. दादी की मृत्यु के बाद जिमी 13 साल की उम्र तक अनाथालय में रहे, जहां से वह एक रात भाग गए. तबसे उनका जीवन सड़कों पर गरीबी, भूख और ड्रग्स से जूझते बीता. 20 साल की उम्र में मार-पीट और अवैध ड्रग्स रखने के आरोप में बका को साढ़े छह साल की जेल हुई. एरिजोना स्टेट जेल में उनका जीवन बदल गया.
अपने कविता-संग्रह ‘सिंगिंग एट दी गेट्स’ की शुरुआत में बका की कई पुरानी चिट्ठियां प्रकाशित की गई हैं. जेल में रहते हुए बका ने मारिपोसा नाम की अपनी महिला मित्र को हजारों चिट्ठियां लिखीं, जिनमें से कई कविताओं-सी सुंदर हैं.
एक सिगरेट भर के लिए बका अपनी कविताएं साथी कैदियों को बेच देते थे. एक साथी कैदी ने उन्हें प्रेरित किया कि वह अपनी कविताएं ‘मदर जोन्स’ नाम की पत्रिका को भेजें जिसके संपादक डेनिस लेवर्तोव थे. कवि विल इनमैन ने बका की कविताओं का संग्रह ‘इमिग्रेंट्स इन आवर ओन लैंड’ नाम से निकाला. बका को पहले संग्रह ने ही पहली पंक्ति के कवियों में ला खड़ा किया. बका की कविताओं का मूल स्वर दमन, प्रेम और अपनी जमीन से दूर हो जाने की पीड़ा है. अपाचे और चिकानो मूल के बका मानते हैं कि उन्हें उनकी ही जमीन पर शरणार्थी बना दिया गया.
वह 2004 से ‘सिडार ट्री’ नाम की संस्था चला रहे हैं जो ड्रग्स से जूझ रहे युवाओं के लिए काम कर रही है. उनके सभी कर्मचारी जेल की सजा काटे हुए लोग हैं.
‘व्हाट्स हैपनिंग’, ‘पोयम्स टेकेन फ्रॉम माय यार्ड’, ‘इन दी वे ऑफ दी सन’, ‘सेट दी बुक ऑन फायर’, ‘हीलिंग अर्थक्वेक्स’ बका के प्रसिद्ध कविता-संग्रह हैं. उनकी कहानी ‘बाउंड बाय ऑनर’ पर एक फिल्म ‘ब्लड इन ब्लड आउट’ के नाम से प्रदर्शित हुई थी.
मैं यह कविता तुम्हें सौंपता हूं
मैं यह कविता तुम्हें सौंपता हूं
चूंकि मेरे पास देने को और कुछ नहीं
इसे एक गर्म कोट की तरह रखना
जब ठंड तुम्हें जकड़ने आए
या एक जोड़ी मोटे जुराबों की तरह
जिनके पार नहीं जा सकती है ठंड,
मैं तुम्हें प्यार करता हूं,
मेरे पास तुम्हें देने को और कुछ नहीं
इसलिए यह मक्के से भरा हुआ बर्तन लो
ठंड में तुम्हारे पेट को उष्ण रखने के लिए
तुम्हारे सिर के लिए स्कार्फ है यह,
जिसे तुम बांध सकती हो अपने केशों पर
अपने चेहरे के चारों तरफ लपेट सकती हो,
मैं तुमसे प्यार करता हूं,
रखो इसे, संभालो इसे जब तुम खो जाओगी
हो जाओगी दिशाहीन जीवन के वन में,
जब जीवन होगा गंभीर
अपने दराज के कोने में रखो इसे
जैसे हो यह कोई शरणस्थली या
घने जंगल के बीच एक झोंपड़ी
आना द्वार पर तुम और मैं दूंगा तुम्हें उत्तर, दूंगा दिशाज्ञान,
और तुम्हें सेंकने दूंगा जलती हुई आग,
आराम करो और स्वयं को समझो सुरक्षित,
मैं तुमसे प्यार करता हूं,
मेरे पास देने को इतना ही है
और इतना ही जीने के लिए चाहता है कोई
और अंतर तुम्हारा जीवित रहे
भले ही बाहर की दुनिया
न करे परवाह कि तुम जिंदा हो कि मर गई
रखना याद,
मैं तुम्हें प्यार करता हूं.
दमन
यह प्रश्न है मजबूत बने रहने का
अनबहे आंसुओं का
भार से दबे होने का
और हमेशा, हमेशा
याद रखने का कि तुम हो इंसान
अपने अंदर गहरे तक झांक कर पाओगे आशा और हिम्मत के अंश
और गाओ, मेरे भाइयो और बहनो,
और गाओ, सूर्य साझा करेगा तुम्हारे जन्मदिन
जब तुम होगे सलाखों के पीछे
और वसंत की नई घास
नुकीले बरछे गिनेंगे तुम्हारी उम्र
जब तुम शुरू करोगे नया साल
सहो मेरे भाइयो, सहो मेरी बहनो…
बूढ़ी औरत
मुझे दिखती है सेनोरा सांचेज
नदी के पास
काली कैटफिश
उजले पानी का बुलबुला
बनाती है सतह पर,
लहरें बनती हैं
जब झुर्रियों भरा
ताम्बई चेहरा और काली आंखें
याद करती हैं
ठंडी समुद्री सीपियां
और गर्म कछुए
टर्की पक्षी की आवाज
झाड़ियों से आती हुई
और उसकी लाल स्कर्ट
टहनी पर लटकी हुई
उसके नहाते समय…
वह अपना स्वेटर पहनती है
हाथों को पेट के इधर-उधर करती, उसे ठीक
वह जिसे याद है
नहीं कर सकती है आमीन
लेकिन मुस्कुराती है
सूर्योदय देखकर
घास पर चलती हुई
ऊंची
हरी घास
घास जो नहीं सुनती
किसी काले चोगे पहने
पुजारी की बात
चमक उठती है घास
जब वह गुजरती है
उनसे बातें करती हुई
एक जानवर की तरह
मेरी आंखों की मुलायम सतह के पीछे,
मेरे अंदर गहरे कहीं
मेरा एक हिस्सा मर गया है :
मैं अपने रक्तिम नाखूनों को हिलाता हूं
उनके साथ, स्लेट जैसे सख्त
अपनी उंगलियां दौड़ाता हूं
अपने झक्क सफेद निशानों पर
वे कहते हैं मैं डर गया हूं
डर गया हूं कि मैं क्या बन जाऊंगा
मैं असल में,
इन जेल की सींखचों के पीछे
अपने ही देश में शरणार्थी
हम अपने हृदयों में सपने लेकर जन्मते हैं
आने वाले सुखद दिनों की प्रतीक्षा में
द्वार पर हमें दिए जाते हैं नए दस्तावेज
हमारे पुराने कपड़े ले लिए जाते हैं
और हमें दिया जाता है मैकेनिकों द्वारा पहने जाने वाला ओवरऑल
हमें सूइयां दी जाती हैं और डॉक्टर पूछते हैं प्रश्न
फिर हम इकट्ठा होते हैं एक दूसरे कमरे में
जहां काउंसलर हमें नई जगह से कराते हैं परिचित
जहां अब हम रहेंगे, हम देते हैं जांच-परीक्षाएं
हममें से कुछ अपने पुराने जीवन में कलाकार थे
हमारे हाथों में हुनर था और अपने काम पर गर्व
कुछ हममें से तेज दिमाग के थे
उनकी बुद्धिमता थी विद्वानों जैसी
जो चश्मों और किताबों से दुनिया समझते हैं
लेकिन हममें से कोई हाईस्कूल पूरा नहीं कर पाया था
बूढ़े लोग जो यहां के निवासी हैं, हमें घूरते हैं
अपनी बेहद नाराज आंखों से, खीझे हुए, पीछे होकर,
हम उनके पास से गुजरते हैं और वे चुपचाप खड़े हैं
अपनी कुदालों और फावड़ों के सहारे या दीवाल के,
हमारी आकांक्षाएं बहुत हैं : पुरानी जगह पर
फिर से बसने की बात होती थी,
स्कूल पूरा होने के बाद
और कोई नया हुनर सीखना.
लेकिन अभी हमें भेजा गया है काम पर बर्तन धोने
या तीन सेंट प्रति घंटे की दर पर
खेतों में काम करने
अधिकारी कहते हैं यह तात्कालिक है
इसलिए हम अपने काम में जुट गए हैं
काले, काले लोगों के साथ
गरीब गोरे, गरीब गोरों के साथ
चिकानो और इंडियंस एक साथ
अधिकारी कहते हैं यह सही है
सभ्यताओं में घालमेल ठीक नहीं,
उन्हें अलग ही रहना चाहिए
जैसे हम अपनी पुरानी जगह पर रहते थे.
हम झूठे वादों से भागकर यहां आए थे,
अपने पड़ोसी तानाशाहों से
जो नीले सूट पहनते थे, जब मन हो कर लेते थे गिरफ्तार
जब मन हो करते थे क्लबों में मनोरंजन
जब मन हो चलाते थे गोलियां
लेकिन यहां भी अलग नहीं हैं हालात, सब कुछ है कठिन
डॉक्टरों को कोई परवाह नहीं है, हमारे शरीर जर्जर हो रहे, हमारी बुद्धि कुंद हो रही, हम नहीं सीख रहे कुछ ढंग का.
हमारी जिंदगी नहीं बदलती, हम मर रहे जल्दी
मेरे कमरे में कपड़े टांगने की आड़ी-तिरछी डोरियां हैं
मेरे टी-शर्ट्स, बॉक्सर शॉर्ट्स, मोजे और पैंट्स सूख रहे,
जैसा हमारी पहले वाली जगह में होता था :
खिड़कियों से खिड़कियों तक सूख रहे हैं सभी रहने वालों के कपड़े
रास्ते के उस तरफ जोई अपना हाथ निकालता है
सीखचों के पार फिलिप को देता है सिगरेट
बड़बड़ाते हुए लोग इस कमरे से उस कमरे में आ-जा रहे,
किसी का सिंक नहीं काम कर रहा
नीचे कोई गुस्से से चीख रहा
उसका टॉयलेट भरकर बह रहा
कोई चीखता है कि हीटर नहीं कर रहे काम
मैं अपने बगल के कमरे में रहने वाले
कोएटी से मांगता हूं थोड़ा साबुन
ताकि धो सकूं अपने कपड़े
मैं देखता हूं नीचे शरणार्थियों को आते हुए
उनके कंधे पर बिस्तरबंद, उनके ताजे कटे बाल, पैरों में बूट
वे देखते हैं चारों तरफ, उनमें से हर किसी के हृदय में एक सपना है
उन्हें लगता है उन्हें अपने जीवन को बदलने का मौका मिलेगा
लेकिन अंत में, उनमें से कुछ चुपचाप बैठकर सोचेंगे
उनका पुराना जीवन कितना अच्छा था
कुछ युवा बन जाएंगे अपराधी
कुछ मर जाएंगे और कुछ जीते रहेंगे
बिना आत्मा के, बिना भविष्य के, बिना जिंदा रहने के किसी कारण के
कुछ यहां से अपनी आंखों में घृणा लेकर चले जाएंगे
बेहद कम लोग यहां से इंसान बनकर निकलेंगे
जैसे वे थे आते समय
वे सोचते रहेंगे वे अब किस काम के हैं
अपने हाथों को देखकर सोचेंगे अपने औजारों से बिछड़ना
खुद को देखकर सोचेंगे अपने परिवारों से बिछड़ना
जीवन उनसे छूट गया, बहुत चीजें बदल गईं
***
यहां प्रस्तुत कविताएं हिंदी अनुवाद के लिए कवि की वेबसाइट jimmysantiagobaca.com से ली गई हैं. उपासना झा हिंदी की दृष्टिसंपन्न कवयित्री और अनुवादक हैं. कहानियां भी लिखती हैं. उनसे upasana999@gmail.com पर बात की जा सकती है. यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 19वें अंक में पूर्व-प्रकाशित.
सुंदर अनुवाद।उपासना को बधाई।