मुनीर रईसानी की नज़्म ::
लिप्यंतरण : नईम सरमद
ऐ मेरे दुख से खेलने वाले
तुम कभी बेबसी से रोए हो?
तुमने बरसात की हसीं रूत में
छत के गिरने का ख़ौफ़ झेला है?
क्या कभी धूप में झुलसी है तुम्हारी रंगत?
सख़्त सर्दी में वो लम्हा कभी गुज़रा तुम पर
उँगलियाँ, लगता है जब हाथ से झड़ जाएँगी
चख के देखा कभी क्या होता है गदला पानी?
रात काटी है बे-चराग़ कभी?
क्या कभी नान-ओ-नमक की ख़ातिर
कुंज-ए-शादाब छोड़ आए हो?
तुमने देखा कभी ज़हराब से कड़वा लहजा
जो कि अकड़ी हुई गरदन से मिला करता है
अपने हक़ के लिए
गुर्ग-ओ-सग-ओ-अज़दर के साथ
हाथ ख़ाली कभी टकराए हो?
तुमने देखी है फ़क़त फ़ाक़ा-कशों की सूरत
बे-घरी को कोई रूमान बना रक्खा है!
तुम कि एहसास की मंडी में दुकाँ करते हो
तुमने हर ख़्वाब का शो-केस सजा रक्खा है।
तुम कि ताजिर हो फ़क़त अपना नफ़ा देखते हो
ऐ मेरे दुख से खेलने वाले!
ऐ मेरे ज़ख़्म बेचने वाले!
मुनीर रईसानी बलोची कवि हैं। नईम सरमद से परिचय के लिए यहाँ देखिए : हमने ख़राब हाली में ऐसे चलन चले…