साबीर हाका की कविताएँ ::
फ़ारसी से अनुवाद : अ’ब्दुल वासे’

साबीर हाका की कविताओं से हिंदी संसार का परिचय सर्वप्रथम ‘सदानीरा’ ने ही कराया था—(देखें : सदानीरा, अंक 10, जुलाई-सितंबर 2015)। इस अंक में प्रथमतः प्रकाशित साबीर हाका की कविताएँ आज हिंदी के आभासी संसार में पर्याप्त उपस्थित और उपलब्ध हैं—कहीं ‘सदानीरा’ से साभार, तो कहीं नहीं भी।

इस दौरान हमें यह भी सुनने को मिला कि एक फ़ारसी भाषी कवि का हिंदी अनुवाद अँग्रेज़ी के माध्यम से करना उचित नहीं है, तब तो और भी जब फ़ारसी के विद्वान हमारे आस-पास अब भी मौजूद हों। हमने इस आलोचना पर ध्यान दिया और इसके बेहतर नतीजे भी हमारे सामने हैं, जैसे कि कवि के नाम का सही उच्चारण और वर्तनी साबीर हाका है; न कि सबीर हका। इस जानकारी और इस समग्र प्रस्तुति के लिए हम अ’ब्दुल वासे’ साहब के आभारी हैं कि उन्होंने साबीर हाका की अब तक हिंदी में अप्रकाशित कविताएँ मूल फ़ारसी से हिंदी अनुवाद में ‘सदानीरा’ के लिए संभव कीं।

अ’ब्दुल वासे’ (जन्म : 1975) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त करने के बाद वहीं पर अतिथि प्राध्यापक के रूप में कार्यरत रहे। वह उर्दू के अतिरिक्त फ़ारसी, हिंदी, अ’रबी और अँग्रेज़ी के ज्ञाता हैं। उनके अनुवाद-कार्य कई पुस्तकों में संकलित और पुस्तकाकार भी प्रकाशित हैं। 

साबीर हाका नई पीढ़ी के एक ईरानी कवि हैं। उनका जन्म 1986 में किर्मानशाह (ईरान) में हुआ, लेकिन अब वह तेहरान में रहते हैं। उनका अस्ल नाम साबीर क़ुबादी था, बा’द में उन्होंने अपना नाम साबीर हाका रख लिया। वह अहमद काया नामी व्यक्ति से बहुत प्रभावित रहे। ‘काया’ शब्द उन्हें बहुत पसंद था और वह अपने लिए भी इस जैसा एक शब्द ढूँढ़ रहे थे, ताकि वह उसे अपने नाम के साथ जोड़ सकें। अंतत: उन्हें ‘हाका’ शब्द मिल गया। हाका—का अर्थ होता है : अवश्यमेव, निःसंदेह, बेशक।

साबीर हाका | तस्वीर सौजन्य : फ़ेसबुक

सेंट्रल जेल

मज़दूरी एक अच्छा पेशा है
वह अपने हाथों की रोटी खाता है
हालाँकि मैं ज़्यादातर भूखा रहता हूँ
मैं झूठ और बुरी बातें भी सुनता हूँ
कभी-कभी मैं बेकार भी रहता हूँ
फिर भी मैं यह मानने को
बिल्कुल तैयार नहीं कि
मैं ऐसी इमारत बनाऊँ
जिसके द्वार पर किसी दिन लिखा जाए—
सेंट्रल जेल।

इश्क़

मैं इस बात को नहीं मानता कि
इश्क़ इंसान को सब कुछ देता है

इश्क़ युद्ध से भी बदतर है
यह सभी चीज़ों को नष्ट कर देता है—
मातृभूमि को
परिवार को
यहाँ तक कि स्वयं मनुष्य को भी
और इसीलिए मैं वर्षों से
ग़रीबी में जी रहा हूँ।

ईश्वर

उसका ईश्वर
एक अलग प्रकार का है
वह (उसका ईश्वर)
उसके भाग्य पर रोता है
लेकिन मेरा ईश्वर
अब भी
चुप है।

काश मैं बड़ा नहीं होता

काश मैं बड़ा नहीं होता
और मैं यह नहीं समझता
कि मेरे पिता ने झूठ बोला
कि मिट्टी में जाकर
सब कुछ हरा हो जाता है

यह ईश्वर की कृपा है
आदमी इसे क्यों नहीं समझता?
मैंने काफ़ी देर तक इंतिजार किया
लेकिन
मेरी माँ हरी नहीं हो पाई।

मज़दूर की योग्यता

मज़दूर बनने के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता
किसी प्रमाण-पत्र या सैन्य सेवा कार्ड की आवश्यकता नहीं है
इसी तरह योग्यता और अनुभव का होना भी ज़रूरी नहीं है
इसके बावुजूद आपको डरने की कोई ज़रूरत नहीं है
आपका कोई विकल्प नहीं है,
इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
कि आपका धर्म क्या है
झूठ बोलना भी कोई बुरा काम नहीं है
इससे भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
कि आपने किसी को मार डाला
हाँ, आपमें थोड़ी शालीनता होनी चाहिए
राष्ट्रपति बनने के विपरीत।

मज़दूरों की सुंदर स्त्रियाँ

मज़दूर—
उनका जीवन सादा होता है
उनके पास सुंदर स्त्रियाँ होती हैं

वे हर दिन
काम के अंत में
ऊँचे आसमान से
ताजा सफ़ेद बादल
अपने घर ले जाते हैं।

मैं ईश्वर का मित्र नहीं

केवल एक ही कारण है
कि मैं ईश्वर का मित्र नहीं हूँ
इसका कारण दूर अतीत में मौजूद है
और वह यह है कि
छह लोगों का हमारा परिवार
एक छोटे से कमरे में रहता था
और ईश्वर जो कि अकेला था
उसका घर हमारे घर से बहुत बड़ा था।

सामग्री गिरने का ख़तरा

कई बार ऐसा हुआ है कि
किसी इमारत की ईंट,
एक मज़दूर के कंधे से सीमेंट का बोरा
या लोहे की चादर क्रेन के हुक से
फिसलकर नीचे गिर जाती है
कुछ दर्द इंसान को हमेशा के लिए परेशान कर देते हैं
इसलिए मुझे अधिकार दो कि
मेरे अंदर इतना डर हो
कि जब भी मैं तुम्हें गले लगाऊँ
तुम्हारे झुमके के हिलने की आवाज से
डर जाऊँ।


यहाँ प्रस्तुत कविताएँ फ़ारसी से हिंदी में अनुवाद के लिए khabaronline.ir और just-poem.blogfa.com से ली गई हैं।

1 Comments

  1. सुशील सुमन मार्च 22, 2023 at 9:38 पूर्वाह्न

    मैं विगत कुछ घंटों से उदास और खिन्न महसूस कर रहा था। फिर किसी काम से मेल खोला और सदानीरा का यह मेल दिखा। और इन कविताओं ने मेरा दिन बना दिया। अच्छी कविताएँ हमेशा यह काम करती हैं। हमें स्व से परे ले जाती हैं। ऐसी ख़ुशी प्रदान करती हैं, जो केवल वृहत्तर जगत से जुड़ने तथा उदात्त विचारों और सौंदर्य का साक्षात्कार करने या कहें कि उनका साझीदार बनने पर ही हासिल होती है। इसके साथ-साथ मामूली वजहों से उपजी हमारी खिन्नता की सारहीनता का हमें बोध कराती हैं।

    एक बेहतरीन और प्रिय कवि साबीर हाका, अनुवादक अब्दुल वासे साहब और सदानीरा का बहुत शुक्रिया।

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