जिनेश मडप्पल्ली की कविताएं ::
मलयालम से अनुवाद : बाबू रामचंद्रन

poet jinesh madappally
जिनेश मडप्पल्ली

खुदकुशी की तैयारी करता इंसान

एक रास्ता है,
जिस पर खुदकुशी की तैयारी करता इंसान
खुद और मौत के बीच
चलता ही रहता है
अविरत

वहां खूब भीड़ होगी
लेकिन कोई नहीं देखेगा उसकी तरफ
फूलों की सजावट होगी वहां
लेकिन वह नहीं देखेगा उस तरफ

उस रास्ते के दोनों तरफ
जिंदगी की तरफ खुलते कई मोड़ होंगे,
जरा-सी आसानी से खुल जाने वाले
जमाना सोचेगा
कि वह जरूर बच निकलेगा

देखकर भी
नजरअंदाज कर
गुजरेगा वह वहां से
सबको निराश कर

वह सोचेगा
कि उस पर जीत हासिल कर ली सबने
हालांकि,
वह लड़ा नहीं कभी किसी से
फिर भी वह हरा चुका है कई लोगों को

घरवाले और दोस्त बड़े होते जाएंगे
उसके रिश्तेदार और गांववाले छोटे

यह धरती समंदरों और महादेशों को
गलीचे की तरह समेट कर,
सिकोड़कर खुद को
दम घोंटने वाला एक कठिन यथार्थ बनेगी

खुदकुशी के खत में
किसी के द्वारा उखाड़ कर फेंकी हुई
बच्चों की हंसी थामे पेड़ की तस्वीर होगी सिर्फ

जी लेने में हर्ज क्या है
बीच-बीच यह सोच
एक बुलबुले की तरह उभर कर टूट जाएगी

खुदकुशी से कई रोज पहले ही मर चुका होगा वह,
क्योंकि उससे भी कई रोज पहले
सोचना शुरू किया होगा इस विषय में

एक मरे हुए इंसान को खाना परोसा था
एक मरे हुए इंसान के साथ सफर किया था
एक मरा हुआ इंसान अब तक
रोकर और हंस कर जिंदा रहने का ढोंग कर रहा था
हैरानी होगी सारी दुनिया को

जितना भारी है एक खुदकशी कर रहे इंसान का जीवन
उतना किसी का नहीं

भुगत-भुगत कर जब थक जाता है कोई
और जरा संभालने को कोई न मिले तब
छूट जाता है न हाथ से,
फिसल जाता है न…
वरना, हंसी-खुशी भला कोई…

निलंबित

आजकल कोई याद नहीं करता,
कोई फोन नहीं करता,
कोई नहीं आता मिलने…

फिर एक दिन वह आया…

शरीर में
रस्सी लटकाए हुए
एक इमली का पेड़…

प्यार में उलझे लोग

प्यार में उलझे लोग
खदान में फंसे लोगों की तरह हैं

प्राण-वायु, पानी-वानी
और मन बहलाने के लिए दवाई
बस इतना ही दे सकते हैं
बाहर से

इसके अतिरिक्त
नया कुछ भी करने के लिए
इनका बचकर बाहर आना
जरूरी हैं

तुम्हारे बारे में कविता

निद्राविहीन करवट लेते हुए
इस रात में
तुम्हारे बारे में
एक कविता लिखने का
मन हैं

लेकिन लिखते वक्त
कहीं तुम्हारी नींद खुल न जाए

नहीं, मैं नहीं लिखूंगा कविता…

***

पैंतीस वर्षीय जिनेश मडप्पल्ली ने 5 मई 2018 को रात ग्यारह बजे आत्महत्या कर ली थी. उनकी पहचान मलयालम की नई कविता के उभरते हुए सशक्त नामों में की गई. वह अविवाहित थे और इस आत्महत्या से करीब पंद्रह रोज पूर्व उनकी मां भी नहीं रही थीं. वह केरल के कोझीकोड जिले के ओचियम कस्बे के एक स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. उनके पास गणित और बी.एड. की डिग्री थी. ‘तिनका’, ‘रोगातुर प्रेम की दौ सौ पच्चीस कविताएं’ और ‘सबसे पसंदीदा अंग’ शीर्षक उनके मलयालम में तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हैं. ‘दरार’ शीर्षक उनका कविता-संग्रह अप्रकाशित है. आत्महत्या उनकी कविताओं की केंद्रीय विषयवस्तु-सी रही है. बाबू रामचंद्रन हिंदी के कई चर्चित कवियों का मलयालम में अनुवाद कर चुके हैं और कर रहे हैं. इन दिनों वह समकालीन मलयालम कविता के हिंदी अनुवाद में भी संलग्न हैं. इस प्रस्तुति से पूर्व गए दिनों ‘सदानीरा’ पर ही प्रकाशित उनके किए कालपेट्टा नारायणन और विष्णुप्रसाद की कविताओं के अनुवाद बेहद सराहे गए हैं.

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