मंगेश नारायणराव काले की लंबी कविता के अंश ::
मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा

marathi poet Mangesh Narayanrao Kale
मंगेश नारायणराव काले

पीढ़ियों से चले आ रहे सारे अलिखित नियमों को तोड़कर
साक्षात् दिखाई दे रहा है आगत तृतीय पुरुष इस रंगमंच पर

यानी किसी मानव-आकृति-सी प्रतीत होती उसकी छवि को
दूर से भी आसानी से पहचान सकते हैं दर्शक थिएटर के अँधेरे में भी

यानी जब सामने आएगा वह आहिस्ता-आहिस्ता चल कर इस दृश्य में
तब ग़ौर से देखकर उसका चेहरा पहचान पुख़्ता कराई जा सकती है उसकी

यानी इस बार किस भूमिका में आया हुआ है वह इस रंगमंच पर
इसका थोड़ा-बहुत अंदेसा लेकर सोचा जा सकता है उसके किरदार के बारे में

यानी ऐसा भला क्या किरदार हो सकता है तृतीय पुरुष का?
और कैसे आया होगा वह रंगमंच पर सबकी नज़रें बचाकर?

यानी जन्म के साथ ही आ रहा होगा वह चढ़ कर पुरुषत्व की सीढ़ी?
या कसी होगी रस्सी उसकी कमर से स्त्रीत्व की?

यानी संभव है कि स्त्रीत्व की ऊँगली थामे आया होगा वह
बिना ठिठके और चूक गए हो अब की बार उसके क़दम बीच रास्ते में ही

यानी यह जो पुरुष-सा कोई चेहरा चिपका हुआ है उससे
वह शाप ही हो नियति का उसे उकताकर दिया हुआ या फिर वरदान भी

यानी बिल्कुल तय है तृतीय पुरुष का आना रंगमंच पर

यानी क्या कोई प्रयास नहीं हुए होंगे आज तक
तृतीय पुरुष को हरसंभव इस रंगमंच पर आने से रोकने के लिए
यानी कई-कई वर्षों से खेला जाने वाला नाटक है यह

यानी सारा परिवेश इतिहास और भूगोल
और अभी हाल का वर्तमान सभी हाथों में हाथ डाले
एक साथ खड़े हुए होंगे विरोध में तृतीय पुरुष के आगमन के

बावजूद इसके सहज संभव हुआ है तृतीय पुरुष के लिए
इस अदृश्य आरक्षित दीवार को भेद सीमा को लाँघकर आना
परोक्ष या अपरोक्ष रूप से इस दृश्य में या सदी में भी

यानी किस सदी में घटित हो रहा है यह दृश्य?
और भला किसकी ख़ातिर खेला जा रहा है यह नाटक?
यानी होने जा रहा है पुनश्च उसी का पुन:प्रक्षेपण?

सर्वसम्मति से या अनचाहे या फिर विवशतावश भी कहिए
कभी न ख़त्म होता नाटक है यह दिन-रात खेला जाने वाला
यानी हाल ही के समय में घटित हो रहा है यह…

यानी आगमन तो हो ही चुका है
तृतीय पुरुष का इस दृश्य में
और उसके इस दृश्य में होने को भी
स्वीकार कर लिया गया है ख़ामोशी से

यानी कोई चाहे या न चाहे ऐसी कोई संभावना नहीं है कि
उसका आना महज़ एक दुर्घटना हो
या फिर नियति का कोई विधान
सालों से प्रेक्षागृह में अटे प्रतीक्षारत दर्शकों के लिए

यानी इस दृश्य के लिए ही सही
यह सत्य है कि वह प्रकट हो चुका है रंगमंच पर
और इस घड़ी या इस संवत्सर में इस घटना के अहम्
साबित होने की संभावना से नहीं किया जा सकता है इंकार

यानी किसी भी अतिमहत्वपूर्ण घटना का
निस्संदेह तय है इतिहास में दर्ज किया जाना
यानी अनामंत्रित ही सही अतिथि के स्वागत का रिवाज
यहाँ भी निभाया जाएगा ही बिना ना-नुकर किए ख़ामोशी से

यानी आने वाले हाथों को ख़ाली कैसे रख सकते हैं
भले ही मेज़बान रखता हो हैसियत या न भी रखे
और आगमन तो हो चुका है तृतीय पुरुष का इस दृश्य में
यानी अगले और उसके अगले दृश्य में भी…

वैसे तो तृतीय पुरुष को किसी एकाध परिभाषा में बाँधना
सहज संभव है किसी के लिए भी कभी भी

कम से कम टोह तो ले ही सकते हैं कुछ लोग
रंगमंच की ओर बढ़ते उसके क़दमों की

यानी स्पष्ट न हो पाया हो उसका किरदार
या उसके आने का प्रयोजन इस बार भी या और कभी सही

फिर भी उसके होने को मानकर चलते हैं सभी
या हो सकता है उसका अस्तित्व निरर्थक बेमानी

और बावजूद परिचित हो उसके सभी क्रियाकलापों भंगिमाओं से
निषिद्ध ही होता है वह हर किसी के लिए कभी भी

यानी रममाण रहता है वह उसके आँके गए दायरे के भीतर
उतना ही होता है संसार उसका उतनी ही चाँदनी से पटा आसमान

यानी गुंजाइश ही नहीं है कभी फिसले उसका कोई क़दम
प्रत्यक्ष बिसात या रंगमंच या पहली सीढ़ी पर

यानी बेशक होता ही है एक न एक कोई कोना
हर संवत्सर में आरक्षित तृतीय पुरुष के लिए

***

मंगेश नारायणराव काले (जन्म : 17 जनवरी 1966) समकालीन मराठी कविता के सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। वह पुणे में रहते हैं। उनसे mangeshnarayanrao@gmail.com पर बात की जा सकती है। यहाँ प्रस्तुत कविता-अंश उनकी लंबी कविता ‘तृतीय पुरुषाचे आगमन’ से चुने गए हैं। सुनीता डागा के अनुवाद में यह लंबी कविता ‘तृतीय पुरुष का आगमन’ शीर्षक से हिंदी में पुस्तकाकार शीघ्र प्रकाश्य है। सुनीता डागा मराठी लेखिका-अनुवादक हैं। वह मराठी-राजस्थानी-हिंदी से परस्पर और नियमित अनुवाद के इलाक़े में सक्रिय हैं। वह पुणे में रहती हैं। उनसे sunitadaga1@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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