संदीप शिवाजीराव जगदाले की कविता ::
मराठी से अनुवाद : गणेश विसपुते
दिल्ली-द्वार पर किसान
वे वैसे भी कालबाह्य हो गए हैं
फिर भी खड़े हैं दिल्ली के द्वार पर
भीतर जाने की अनुमति पाने की प्रतीक्षा में
घर से पैदल निकले हुए
बहुत दिन बीते हैं
मुलायम उपजाऊ मिट्टी की आदत पड़े पैर
सह नहीं सके हैं तारकोल से तपी सडक
तलुओं के घाव सहते-सहते
पहुँचे हैं यहाँ तक
असल में उन्हें जल्दी है—
गाँव वापस लौटने की
उनके बिना घर के लोग परेशान हैं
घर और खेत में कई काम रुके पड़े हैं
लेकिन वापस लौटने से पहले
उन्हें लेने हैं दिल्ली के हस्ताक्षर
एक काग़ज़ पर
जिस पर लिख लाए हैं कुछ माँगें
सांसों जितनी महत्त्वपूर्ण
इस काग़ज़ की तरफ़ देखते हुए
वे हैरान होते हैं बार-बार
कहाँ से आती है इतनी शक्ति
दिल्ली के इन ढाई अक्षरों में
की इसकी एक मुहर से
ख़त्म हो सकती है किसी की विपन्नता
अथवा किसी को दरवाज़े से बाहर धकेलता
नस-नस में भरा दर्प कहाँ से आता है?
उन्हें विश्वास है
जीवन की इस मरणासन्न अवस्था में
दिल्ली ही उन्हें बचा सकती है
सिर्फ़ दिल्ली के पास ही है वह कीटनाशक
जो नष्ट कर सकता है गुलाबी इल्ली
सोचकर जंगली काँटल में बदलती जा रही ज़िंदगी
गुलमोहर-सी खिल उठती है
वे द्वार पर खड़े हैं
किसानों को लाउडस्पीकर से बार-बार कह रहे हैं—
“क्या करोगे यहाँ अंदर आकर
दिल्ली के पास भी नहीं है समाधान
सिर्फ़ एक बड़े से कूड़ेदान के सिवाय,
जहाँ फेंका जाएगा वह काग़ज़
तुमने जो सँजोकर कर रखा है अपनी जेब में
अधिक यह कि दिल्ली मिटा सकती है
तुम्हारा पुश्तैनी हक़
आपको पता है
एक कवि की वह कहानी
जो कवि निकला था चकिया से
और उसे जाना था कुशीनगर बसने के लिए
लेकिन वह फँस गया दिल्ली में ही
कभी-कभार जाता भी चकिया
तो उसमें दिखाई देती दिल्ली ही…”
उन्हें रोका जा रहा है बाहर
वे चुपचाप चले जाएँ वापस, इसलिए
आँसूगैस छोड़ी जा रही है
पानी के फ़व्वारों से मारा जा रहा है
किसान सोचते हैं :
इन चोरों ने छुपा कर रक्खा है यह पानी
अगर यह दिया जाता सूखी फ़सल को
तो कितना अच्छा होता
और अब क्या चर्चा करेंगे
जो पहले से ही नाकाम हुई है
पहले ही बाधा डालकर
यह क्या बकवास है—ग्रामस्वराज के नाम पर
फिर यह अफ़सोस का दिखावा
और पाखंड
ग्रामस्वराज जैसे फिसलाऊ शब्द का दिल्ली के लिए
क्या हो सकता है अर्थ?
एक झाड़ू?
पचास प्रतिशत छूट पर मिलती खादी?
बैठक कक्ष को सजाने वाली हस्तकला की वस्तु?
पैक्ड ऑरगैनिक गुड़?
प्राकृतिक साबुन?
कृषि पर्यटन केंद्र?
चूल्हे पर पकाया मटन और रोटी?
देसी गाय का शुद्ध दूध?
किताबों की शेल्फ़ की शोभा बढ़ाती
गांधी की मूर्ति?
क्या हो सकता है अर्थ?
संभवतः झंझनाता ही होगा
दिल्ली की अभेद्य प्राचीर के पथरीले कानों में
ग्रामस्वराज शब्द का
गहराई तक गूँजता
नाज़ुक और संयमित स्वर
और उधर राजघाट पर भीतर
सो रहा है एक देहाती
जो खड़ा रहा था
चंपारण और बारडोली में
उसने दिखाई थी हमें
पाणंद से गुजरती हुई पगडंडी
सोचा था उसने बतलाई बाट से चलकर
हम घुलमिल जाएँगे
मिट्टी पर मालिकी रखने वालों के साथ
दिल्ली मिल जाएगी पोरबंदर में
लेकिन इकहत्तर बाँध लाँघते-लाँघते
हमारे डूबते क़दम निकल पडे हैं गहरे पानी की ओर
अब दिल्ली में सोए हुए फ़क़ीर तक
पहुँच ही नहीं पाता है
चंपारण-बारडोली का आदमी।
संदीप शिवाजीराव जगदाले सुचर्चित मराठी कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविता हिंदी अनुवाद के लिए उनके मराठी कविता-संग्रह ‘असो आता चाड’ से ली गई है। गणेश विसपुते सुपरिचित हिंदी-मराठी कवि-लेखक और अनुवादक हैं।