कवितावार में आर्तच्युर रैम्बो की कविता ::
फ़्रेंच से अनुवाद : मदन पाल सिंह
रवानगी
बहुत देख ली जीवन-छाया, उसकी दृष्टि
—कुछ भी अलग दिखा नहीं!
बहुत भोग लिया शहरी शोरगुल, साँझ, रोशनी और हमेशा
—पर सब कुछ सूना लगा यहीं
ख़ूब जान लिए निर्णय गहरे, मोड़ जीवन के,
मीठा भ्रम औ’ छली कामना
मैं भर पाया,
नई प्रीत और कोलाहल में
—चल मेरे मन अब और कहीं!
आर्तच्युर रैम्बो (1854–1891) अपने बीहड़ जीवन और कविता-कर्म के लिए संसारप्रसिद्ध फ़्रेंच कवि हैं। यहाँ प्रस्तुत कविता ‘एक मदहोश नौका’ (जीवनी और कविता : आर्तच्युर रैम्बो, लेखन एवं अनुवाद : मदन पाल सिंह, सेतु प्रकाशन, दिल्ली) से साभार है। मदन पाल सिंह भारत और फ़्रांस में शिक्षित हिंदी लेखक और अनुवादक हैं। फ़्रेंच कविता पर हिंदी में उनका बड़ा काम है। रैम्बो के अतिरिक्त पॉल वेरलेन पर भी उनकी एक पुस्तक प्रकाशित है। इसके साथ ही इन दिनों वह मलार्मे पर भी एक पुस्तक तैयार कर रहे हैं। उनसे madanpalsingh.chauhan@gmail.com पर बात की जा सकती है।