कविताएं ::
सिद्धांत मोहन
हमने कहा
एक
हमने कहा कि आप क्या हैं
तो जवाब नहीं मिला
फिर हमने कहा कि आप किस मिट्टी के बने हैं
तो जवाब मिलने से रहा
याचना के लहजे में हमने कहा
कि आपका अस्तित्त्व में रहना क्यों ज़रूरी है
फिर भी नहीं मिला कोई जवाब
एकदम जमींमंद होते हुए हमने कहा कि
न होने से क्या होगा
तो भी कुछ नहीं कहा उसने
हारकर-खीझकर हमने कहा
आप जवाब क्यों नहीं देते?
तो जवाब मिला
क्योंकि हम भगवान हैं बे!
दो
हमने कहा कि आप कहां के रहने वाले हैं
जवाब मिला बस आपके ही घर में
हमने कहा कि आपके घर में कौन-कौन हैं
मिलना यही था जवाब कि हमारी नजर आपके बेडरूम तक में है
हमने कहा कि आप खाना क्या खाएंगे
उन्होंने कहा कि जो आज आपकी रसोई में न बन सके
थोड़ा धैर्य का अभिनय करते हुए हमने कहा
कि परेशानी क्या है
तो जवाब मिला
कि अब हम चले सोने
तीन
अब बस चुप रहिए
खाने को खाना दीजिए और सोने को औरत
तो हमने कहा कि
चलिए अच्छा है, कुछ खीझ तो हुई आपको
चार
मार देंगे बीहड़ में
या नृशंस तरीकों से आपके मोहल्ले में ही आपको
तो हमने कहा
साहब, क्यों डराते हो
हम तो वैसे ही लिबरल होने का दावा करते हैं
पांच
आपने कहा कि कविता रियाज से आती है, हमने मान लिया
लिख-लिखकर हमने कविता को कवि का नहीं छोड़ा
हमने कहा कि हम कवि हैं
तो एक अध्यापक, एक फिल्मकार, एक आर्टिस्ट, एक कबाड़ी और कुछ लोग खुश हुए
हमने कहा कि हम पत्रकार हैं और कविता भी लिख लेते हैं
तो सभी ने कहा कि पढ़ना तो बनता है
उसी समय आपका जवाब मिला कि लोकतंत्र खतरे में है
छह
हमने कहा कि चीजों को व्यवस्थित करना होगा
जवाब मिला कि समाज को ही व्यवस्थित करना होगा
हमने कहा लोग भयभीत हैं
जवाब मिला : वह सब छोड़िए,
हम व्यवस्था बनाकर आपको व्यवस्था का शिकार घोषित करेंगे
सात
हमने कहा देश में सूखा पड़ा है
जवाब मिला किस देश में
हमने कहा आपके देश में
जवाब मिला क्या वो आपका नहीं है
हमने कहा क्यों नहीं है?
जवाब मिला : तो बोलो भारत माता की जय!
आठ
हमने कहा कि हम पत्रकार हैं
उन्होंने कहा ‘तो’
तो बस हमने भी कहा कि ये ‘तो-ता’ क्या होता है
वे मुस्कुराए और कहा
आप इक रोग हैं नादां, पाल लेते हैं या खत्म कर देते हैं
***
सिद्धांत मोहन हिंदी के कुछ मेधावी व्यक्तित्वों में से एक हैं. पत्रकारिता, सर्जनात्मक गद्य और कविता के संसार में सक्रिय हैं. बनारस में रहते हैं. उनसे ssiddhantmohan@gmail.com पर बात की जा सकती है.
बहुत ही सुंदर और प्रतिरोधी कविता। अपने समय से टकराती और उसे फिर फिर से रचती हुई।
मार देंगे बीहड़ में
या नृशंस तरीकों से आपके मोहल्ले में ही आपको
तो हमने कहा
साहब, क्यों डराते हो
हम तो वैसे ही लिबरल होने का दावा करते हैं