कविताएं ::
अमन त्रिपाठी
नाम के बारे में
अपने नाम से बहुत लगाव नहीं रहा कभी
ठीक-ठीक नहीं जानता
कि क्यों एक नाराजगी-सी होती है
मेरा नाम रखने वालों से
अभी अपना नाम लेता हूं तो अजीब लगता है :
अमन! त्रिपाठी!
याद है एक अध्यापक की बात
कक्षा में एक और लड़का था इसी नाम का
अध्यापक ने कहा :
ये कैसा नाम है
हिंदू की औलाद हो, पता कैसे चलेगा!
उस दिन
अपने नाम से तो वितृष्णा नहीं हुई
लेकिन नामों से और नाम रखे जाने की मजबूरियों से चिढ़ हुई
यह भी सुना शुरू से
कि प्रभाव व्यक्तित्व पर नाम का भी पड़ता है
इसके पीछे कैसा विज्ञान, नहीं जान पाया
अक्सर देखे आदर्शवान नामधारियों के शर्मनाक नाम-विपरीत कृत्य
और खत्म होता गया इतना लगाव भी
नाम उपकरण था अब अमुक को बुलाने का
लेकिन जब मैंने पुकारा किसी को
बहुत कम हुआ कि जिसे मैं पुकार रहा था
वह आया हो उसी तरह
जैसा मैंने उसे बुलाया था
दीवाली में
पता चला है
दीये लाने की कवायद में
श्रीराम कंहार ने अब दीये बनाना बंद कर दिया है
सुरेंदर चपरासी के घर भी दीवाली आएगी
और सवेरे से चार बार रिरिया चुका है पैसे को
पैसे मिलें तो उसके घर कुछ सामान आ जाए
पांचवीं बार रिरियाने के लिए फिर काम में लगा है
अखबार में खबर है सीमा पर जवानों की मौत की
त्यौहारी माहौल खराब होने का
एक भद्दा-सा अभिनय
बाहर के सामान उपयोग में नहीं लाएंगे
दीये जलाएंगे
और गरीबी दूर करेंगे इस तरह
सुन रहे हैं ताकते हुए
कंहार, चपरासी…
खुशी
मैं एक बार अपने एक पुराने दोस्त से मिला
थोड़ी बातचीत के बाद जाते हुए उसने कहा :
यार! तुम बिल्कुल बदल गए हो
यह सुनकर मैं मन में खुश हुआ कि मैं कामयाब रहा
मैं एक बार अपने एक और पुराने दोस्त से मिला
थोड़ी बातचीत के बाद जाते हुए उसने कहा :
यार! तुम तो बिल्कुल नहीं बदले
यह सुनकर भी मैं खुश हुआ कि इस बार भी मैं कामयाब रहा
दोनों बार खुशी एक ही थी, लेकिन दोस्त बदल गए थे
मरीचिका
अंदर बैठे हुए मैंने खिड़की से किसी को दरवाजे की तरफ आते देखा
मैंने जल्दी से खुद को मेजबानी के लिए तैयार किया
जल्दी-जल्दी चाय पी
काफी देर हो चुकी थी
लेकिन
जिसे मैंने खिड़की से दरवाजे की तरफ आते देखा था
वह नहीं आया
अमन त्रिपाठी हिंदी कवि हैं. उनसे laughingaman.0@gmail.com पर बात की जा सकती है. यहाँ प्रस्तुत कविताएँ ‘सदानीरा’ के 16वें अंक में पूर्व-प्रकाशित हैं।