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रिया रागिनी — प्रत्यूष पुष्कर

riya ragini and pratyush pushkar 880
रिया रागिनी — प्रत्यूष पुष्कर
मल्लोक के विक्टोरियन उपन्यास ‘अ ह्यूमन डॉक्यूमेंट’ के मूल text की ड्राइंग, ओवरपेंटिंग और कोलॉजिंग के ज़रिए टॉम फिलिप्स के द्वारा तैयार किया गया एक काउंटर डॉक्यूमेंट—‘अ हुमुमेंट’, जो मूल text को मिटाते हुए भी पुनर्रचना का नया संवाद लिखता है।

संवाद दृश्य से पृथक भला कैसे हो सकते हैं?! हमारे देखने का सारांश ज़्यादातर दृश्य द्वारा नियंत्रित होता है। संस्कृत साहित्य से लोगों के जुड़े होने के पीछे का एक बड़ा कारण दृश्य काव्य भी हो सकता है, जिसकी तुलना कई मायनों में विजुअल पोएट्री से की जा सकती है।

जापानी भाषा और विजुअल पोएट्री के विचार-सम्मिलन से उपजे कुछ ऐनीम की दुनिया में सबसे उर्वर कल्पनाएँ फलती-फूलती हैं। विजुअल पोएट्री क्या है, यह निर्धारित करने से पहले विजुअल पोएट्री क्या नहीं है, यह निर्धारित करना एक मुश्किल काम है। विजुअल पोएट्री कंक्रीट पोएट्री का ही विस्तार है।

साल 1950 के आस-पास जन्मे कंक्रीट काव्य में पहचानी जा सकने वाली आकृतियों का समावेश किया गया, दृश्य पर फ़ोकस रखकर यह तय किया गया कि बोल कर या ज़ोर से पढे जाने पर ये कविताएँ अपना प्रभाव खो देंगी। कंक्रीट पोएट्री में माध्यम का प्रतिनिधित्व रोज़ाना के प्रतिनिधियों से भिन्न, कंक्रीट आकृतियों और दृश्यों ने किया। कई जगहों पर कंक्रीट काव्य और विजुअल पोएट्री एक ही प्रतीत होते हैं, लेकिन विजुअल पोएट्री एक नई चीज़ है और इसमें असीम संभावनाएँ हैं।

नए को देखना विजुअल पोएट्री है। काव्य और दृश्य का मिलन जो संवाद की नई धारणाएँ खोलता है और जिसका फोकस हमेशा एक नित बदलते कलाकार के नित बदलते माध्यमों पर रहता है, जिसमें कविता को प्रस्तुत करने के लिए किन चिन्हों, वस्तुओं, आकृतियों का प्रयोग हो… यह केवल कलाकार या कवि की कल्पनाओं पर निर्भर है।

विजुअल कविता के माध्यम से कविता और कला पर प्रश्न खड़े करने का एक नया अवसर भी हमें प्राप्त हुआ है… जैसे कविता क्या-क्या हो सकती है? साहित्यिक कला के नए आयाम क्या-क्या हो सकते हैं? क्या कला तब भी नेप्थ्य या मंच पर आसीन रह सकती है जब वहाँ कविता हो?

कविता की असंख्य विधाएँ हैं, और किसी विधा की पवित्रता के समर्थक इसके विपरीत सोच सकते है, लेकिन पवित्रता से और विस्तार की मनाही से कविता की प्रामाणिकता नहीं साबित हो जाती। टिएगे कहते हैं, ‘‘हम कविता को किसी आधुनिक तस्वीर-सा पढ़ते हैं और एक आधुनिक तस्वीर को कविता की तरह…’’

कविता लिखी चली जाने से पहले भी विजुअल पोएट्री के रूप में ठीक वैसे ही विद्यमान हो सकती है, जैसे केवमेन के सम्मुख आकाश।

तारामंडल विजुअल पोएट्री कहे जा सकते हैं। बादलों का विचित्रतम रूप लेकर बरसना विजुअल पोएट्री का सत्व अपने भीतर रखता है।

फिओना बैनी कृत ‘शाय न्यूड’

काव्य जो कला से, संगीत के पठन से दूर भटक जाता है कभी-कभी, विजुअल पोएट्री के माध्यम से अपना दायरा बढ़ा सकता है। अपनी अनुभूतियों से, केवल दृश्य से समझी गई कविता को काट सकने की क्षमता लिए हुए कला-कविता करना विजुअल पोएट्री है। इसकी नई धारणाएँ भाग-दौड़ में लगे एक मिलेनियल रीडर के लिए एक अद्भुत सरप्राइज़ का, और काव्य की जनवादी-ऊर्जा का सोर्स हो सकती हैं। वे जिसे हम अक्सर मीम कहते हैं, वह भी एक क़िस्म की विजुअल पोएट्री हो सकती है।

अनातोल नोतेक कृत ‘अ ब्रा’

काव्य की अनुभूतियाँ अनंत हो सकती हैं, काव्य का प्रक्षेपण दृश्य है। विजुअल पोएट्री केवल कंक्रीट पोएट्री से भिन्न ही नहीं, बल्कि पारंपरिक काव्य से भी बहुत अलग है। क्वांटम मैकेनिक्स को परिभाषित करने के लिए जैसे एक्सपेरिमेंटल फ़िलॉसफ़ी से बेहतर शब्द नहीं, ठीक वैसे ही विजुअल पोएट्री भी अभी ख़ुद को परिभाषित करने के पथ पर है। यही वजह है कि दुनिया भर के कलाकार और कवि इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं और रोज़ नए प्रयोग कर रहे हैं। कई जगहों पर ये प्रयोग पारंपरिक काव्य की अवहेलना भी करते हैं। विजुअल पोएट्री केवल ऑडियो सेंसेटिव नहीं है, बल्कि विजुअली सेंसेटिव भी है।

सेसिल ब्योरगा जोर्थेम कृत ‘वी बिल्ट दिस सिटी’

इंटरनेट, कंप्यूटर और डिजिटल संवाद का विजुअल पोएट्री पर प्रबल प्रभाव दिखता है। उदाहरण के लिए सेसिल ब्योरगा जोर्थेम के ‘वी बिल्ट दिस सिटी’ में स्टारशिप बैंड के एक गाने के लिरिक्स का गूगल पर बारंबार अनुवाद कर, पन्नों को पलटकर, मर्ज कर देने से, एक शहर का विजुअल तैयार होता है। गाने का नाम है—‘वी बिल्ट दिस सिटी ऑन रॉक एंड रोल…’

एक उदाहरण संगीत से भी लिया जा सकता है… सुरों के पैटर्न्स, शृंखलाएँ और उनसे उपजती मेलोडीज़ का निरूपण भी विजुअल पोएट्री का ही हिस्सा है। हर संगीतज्ञ ने अपने कंपोजीशन की किताब में गाहे-बगाहे अपना काव्य ढूँढ़ा है।

विजुअल कवि सरकन आइज़ीन अपनी वेबसाइट ‘जिन्हार’ पर लिखते हैं कि उनके लिए काव्य एक ऐसा तंत्र है जो हमें एंटी कोड्स बनाने में मदद करता है, जिनके माध्यम से हम उन कोड्स में दख़ल दे सकते हैं जो हम पर हमारे शहर या हमारा जीवन थोपते रहते हैं।

नई पीढ़ी विजुअल पोएट्री को एक सामूहिक विसंबंधन/विखंडन के आंदोलन के रूप में देखती है। हरमान्यूटीकल कैथार्सिस या व्याख्यात्मक विरेचना इसका एक अभिन्न घटक है, जो हमें अपने पुराने, अत्यधिक गंभीर और धार्मिक साहित्यिक काम को मिलेनियल हास्य के माध्यम से देखना भी सिखाती है। जो निष्क्रिय शिक्षित की आँखों में चुभता भी है और अशिक्षित का आमोद भी पाता है, और अभिव्यक्ति की शक्ति किसी ले-पर्सन के हाथों सौंपने से घबराता भी नहीं है।

यॉर्ग पीरिंगर कृत ‘फॉलेन‘

यॉर्ग पीरिंगर अपनी विजुअल पोएट्री ‘फॉलेन‘ में कम्युनिस्ट मेनीफ़ेस्टो के अँग्रेज़ी अनुवाद से सभी शब्दों को उठाकर एक पेज के नीचे गिरा देते हैं, जिससे वह न पढ़ने के लायक़ रह जाता है और न उससे उसका कोई मौलिक अर्थ ही निकाला जा सकता है।

विजुअल पोएट्री दृश्यों की एक अंतहीन खोज है, जिसकी शुरुआत संभवत: वैदिक काल से ही हुई हो, जब मंत्र सुने या पढ़े नहीं गए थे, केवल देखे गए थे।

सबसे प्रिय और सबसे उबाऊ किताबों के बीच, दृश्यों की उर्वरता या बोरियत से प्रभावित, गाँजे गए, सजाए गए पन्ने आपकी अपनी विजुअल पोएट्री हो सकते हैं। नव उदारवादी समय में अपने नेताओं के कैंपैन्स आपको एक बेहद हास्यास्पद विजुअल पोएट्री जॉनर मालूम हो सकते हैं!

1912 में एक्के पोएटा ‘साहित्य पूर्वजानुरूपता है’ में लिखते हैं, ‘‘सहित्यिक कला जो हमेशा कल्पनाओं का कार्य रहा है, ख़ुद को किसी पीढ़ी-विशेष की फंतासियों से एकदम अलग पा सकती है… यहाँ उस पीढ़ी को यह समझने की ज़रूरत है कि इसका अर्थ यह नहीं कि लेखक ग़ायब हो गए हों, यह केवल कई कवियों के जन्म का द्योतक है।’’

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रिया रागिनी दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज में संस्कृत की छात्रा हैं। वह संगीत सीख रही हैं और क्वीयर एक्टिविस्ट के रूप में भी सक्रिय हैं। प्रत्यूष पुष्कर हिंदी कवि-कलाकार और अनुवादक हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है और बतौर फ्रीलांस फ़ोटो जर्नलिस्ट पूरा देश घूमा है। इन दिनों वह संगीत के साथ-साथ कला और अध्यात्म के संसार में रम रहे हैं। रिया और प्रत्यूष दोनों ही दिल्ली में रहते हैं। दोनों से क्रमशः riyaraagini@gmail.com और reachingpushkar@gmail.com पर बात की जा सकती है। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 20वें अंक में पूर्व-प्रकाशित।

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