कविताएँ :: आंशी अग्निहोत्री
Posts tagged स्त्री विमर्श
क्या अब भी पाठ-योग्य नहीं हुआ समय!
बेबी शॉ की कविताएँ :: बांग्ला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
रात में प्रेम चढ़ जाता है चाँद पर और उछाल देता है मछलियाँ पानी के आसमान में
कविताएँ :: सुजाता गुप्ता
रूखे मौन के आवरण से ढक लिया अपना आप
प्रोमिला मन्हास की कविताएँ :: डोगरी से अनुवाद : कमल जीत चौधरी
अब तक मुझे हराए रखा है तुम्हारी ताक़त ने नहीं, तुम्हारी दहशत ने
सलमा की कविताएँ :: अनुवाद : जे सुशील
जन्म के वक़्त मैं रोई थी किस भाषा में अब याद नहीं, पर वही थी शायद मेरी भाषा
कविताएँ :: मनीषा जोषी