कविताएँ :: प्राची
Posts tagged लोक
रोटी की त्रिज्या पृथ्वी की त्रिज्या से हमेशा बड़ी रही है
कविताएँ :: संस्कार उषा
यह कैसी विडंबना है कि हमारी गर्दन पर रखे पाँव पर हम फूल चढ़ाते हैं
कविताएँ :: रूपेश चौरसिया
जरत्कारु
लंबी कविता :: प्रज्वल चतुर्वेदी
जहाँ एक जीवन के लिए जीवन भर जंगलों में भटकते चरवाहों की प्रेम-कहानियाँ लोकगीतों में ढलकर अमर हो जाती थीं
कविताएँ :: अशोक कुमार
पृथिवी पर एक बच्चे की लाश
कविताएँ :: शिवदीप