कविता ::
राजुला शाह

राजुला शाह

तीस्ता रंगीत

एक

घने बन में गूँजता
तीस्ता का गान

प्रार्थना में रंगीत

दो

तपस्वी हिम शिखर तले
घाटी की खुली हथेली पर
तीस्ता का निर्बंध नाच

प्रार्थना में रंगीत

तीन

माला के मनकों पर
हाथ
मंत्र पढ़ती हवा
दृश्य में खुलकर बिखरती
तीस्ता

प्रार्थना में रंगीत

चार

मंत्रमुग्ध हिमशिखर
अवाक् आकाश
गोद लिए धरा

प्रार्थना में रंगीत

पाँच

नदी के जल में प्रतिबिम्बित
आकाश का नीला दुहराव
नित नया
झिलमिल
तीस्ता का
तरल मन

प्रार्थना में रंगीत

छह

जल को
जल का
अर्घ्य

प्रार्थना में रंगीत

सात

पहाड़ी नदी में ज्वार
प्रार्थना में रंगीत

आठ

नदी की आँख में
आकाश का अक्स

तीस्ता की…
प्रार्थना में रंगीत

नौ

नदी की मुँदी आँख पर
झुका आसमान।
बुदबुदाता स्वप्न।

प्रार्थना में रंगीत

दस

नदी की चौड़ी छाती पर
बौराए बुरांस झर झर
तीस्ता की पाती
जाए रंगीत के घर

ग्यारह

घर चहारदीवारी के बाहर
आँगन में वृंदावन।

मेघजल से छू
हवि से उठ
धरती की सौंधी गंध।

कंधे पर पहाड़ उठाए पिपीलिका
चावल के एक दाने में
जिमाएगी आज सृष्टि

कल कल कल कहेगा
पहाड़ी नदी का संगीत

तीस्ता संग रंगीत
तीस्ता संग रंगीत

बारह

ना जाने कहाँ से
कहाँ को
भटकते
नदी के प्रान

कौन सुने
बीहड़ में
यह गान?

प्रपात बन पछाड़ खाए तीस्ता
प्रार्थना में रंगीत

तेरह

अपनी धुरी पर फिरकती
कच्चे सूत के भँवर डालती
तकली सी चकराती नदी
चरखा निःशब्द

प्रार्थना में रंगीत

चौदह

नदी की उजली देह पर
स्वर्ण लुटाता सूर्य

तीस्ता के पाट को
लाल पाड़ देता बुरांस

हवा में घुलती ऋचाएँ

प्रार्थना में रंगीत

पंद्रह

बन में
प्रांतर में
चढ़ाई में
ढलान में
सूने में
मेले में
भीड़ में
अकेले में
तीस्ता!

प्रार्थना में रंगीत

सोलह

नदी का शोर
नदी का मौन

जल में प्रकाशित
सूर्य नक्षत्र गगन

पारदर्श नदी का मन

जल में जल सा
दुर्निवार
नदी का प्यार

प्रार्थना में रंगीत

सत्रह

नदी निर्बंध
प्रेम निर्द्वंद्व
असंभव गीत
तीस्ता रंगीत

अठारह

रेत पर
दिन ढले
रात भर
चाँद तले
नदी का मछली मन

स्वप्न में तीस्ता
प्रार्थना में रंगीत

उन्नीस

नील गगन छल छल
पृथ्वी उथल पुथल
अपने ही में
मग्नजल तीस्ता

प्रार्थना में रंगीत

बीस

बरसों बरस ठहरा
प्रतीक्षा का जल गहरा

स्वप्न में तीस्ता
प्रार्थना में रंगीत

इक्कीस

नद की जागती आँख में
आसमानी आब

स्वप्न में तीस्ता
प्रार्थना में रंगीत

बाईस

घिरती साँझ
डूबते उतराते जल में
काले मेघों का दल

झुटपुटे में ढूँढ़ती नदी
अपना किनारा…

स्वप्न में तीस्ता
प्रार्थना में रंगीत

तेईस

नीले जल में
रंगीन मछलियाँ

तीस्ता का लहरिया रंगीत
प्रार्थना का संगीत

चौबीस

दिशा वही जहाँ
धवल पहाड़ों के पार
आँख भर बिछलता नीला
उतरता चला है घाटी
भेंटने हरियाला जल

घाट में तीस्ता
बाट में रंगीत

पच्चीस

छू कर होगा धन्य
जल को जल

स्वप्न में तीस्ता
प्रार्थना में रंगीत


राजुला शाह (जन्म : 1974) सुपरिचित कवि-गद्यकार-अनुवादक और फ़िल्मकार हैं। ‘परछाईं की खिड़की से’ (2005) उनकी कविताओं की एक पुस्तक का शीर्षक है। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ उन्होंने ‘सदानीरा’ को एक प्रतीक्षा के बाद दी हैं, इस संदेश के साथ :

‘‘कविताओं का इंतज़ार करने का शुक्रिया…

जैसा आप समझ चुके होंगे, मैं छपाने के विषय में कुछ अकर्मण्य कही जा सकती हूँ!

अक्सर अपने लिखे को, संसार में छोड़ने से पहले, एक लंबे वक़्त अपने पास ही रखे रहने की प्रेरणा रहती है।

ये जो कविताएँ ‘सदानीरा’ (सुंदर नाम) के निमित्त आपको भेज रही हूँ, ये कुछ वक़्त पहले की रचनाएँ हैं। किंतु अब तक प्रकाश में नहीं आई हैं।

…सिक्किम में प्रवहमान नदी तीस्ता और नद रंगीत की प्रेमकथा से प्रेरित कविताओं की यह शृंखला, अपने में संपूर्ण स्वतंत्र है।’’

राजुला शाह से shahrajula@gmail.com पर बात की जा सकती है।

1 Comments

  1. सत्यव्रत रजक दिसम्बर 5, 2023 at 12:42 अपराह्न

    बहुत सुंदर कविताएँ। अपने तरह के आनूठ्य में बसी कथा की कविता।

    Reply

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