अत्तिला योझेफ की एक कविता ::
अनुवाद : विष्णु खरे
सातवां
अगर तुम इस दुनिया में चल पड़े हो
तो अच्छा होगा सात बार जन्म लो
एक बार एक जलते हुए मकान में
एक बार ठिठुरती हुई बाढ़ में
एक बार एक पागलखाने में
एक बार पके हुए गेहूं के खेत में
एक बार एक सूने मठ में
और एक बार सूअरों के बीच एक बाड़े में
छह नन्हे-मुन्हे रोते हुए काफी नहीं :
तुम्हें खुद सातवां होना होगा.
जब तुम्हें जिंदा रहने के लिए लड़ना पड़े
तो अपने दुश्मन को सात देखने दो
एक इतवार काम से छुट्टा
एक सोमवार को अपना काम शुरू करता हुआ
एक जो बगैर पैसे लिए पढ़ाता है
एक जो डूबकर तैरना सीखा
एक जो जंगल का बीज है
और एक जिसकी रक्षा बीहड़ पुरखे करते हैं
लेकिन उन सबकी चालाकियां काफी नहीं :
तुम्हें खुद सातवां होना होगा.
अगर तुम एक औरत को पाना चाहते हो
सात आदमियों को उसे खोजने दो
वह जो शब्दों पर अपना दिल देता है
वह जो अपनी रखवाली खुद करता है
वह जो सपने देखने का दावा करता है
वह जो लहंगे में से उसे छू सकता है
वह जो बटनों और हुकों को जानता है
वह जो उसके गुलूबंद पर पैर रखता है :
उन्हें उसके आस-पास मक्खियों की तरह भिनभिनाने दो
तुम्हें खुद सातवां होना होगा.
अगर तुम लिखते हो और वैसा कर सकते हो
तो सात आदमियों को अपनी कविता लिखने दो
एक जो संगमरमर का गांव बनाता है
एक जो अपनी नींद में पैदा हुआ था
एक जो आकाश को मापता है और जानता है
एक जिसे शब्द उसके नाम से बुलाते हैं
एक जिसने अपनी आत्मा आदर्श बना ली
एक जो जिंदा चूहों की जर्राही करता है
दो बहादुर हैं, चार अक्लमंद :
तुम्हें खुद सातवां होना होगा.
और अगर सब वैसा ही हुआ जैसा लिखा गया था
तो तुम सात आदमियों के लिए जान दे दोगे
एक जो झुलाया गया है और जिसे स्तन पिलाया गया
एक जो सख्त जवान छाती पकड़ता है
एक जो खाली रकाबियां नीचे फेंकता है
एक जो गरीबों को विजयी होने में मदद करता है
एक जो पागल होने तक काम करता है
एक जो बस चांद की तरफ घूरता है
दुनिया ही तुम्हारी कब्र का पत्थर होगी :
तुम्हें खुद सातवां होना होगा.
***
साल 1980 में जयश्री प्रकाशन,दिल्ली से शाया और अब अप्राप्य ‘यह चाकू समय’ (अत्तिला योझेफ की रचनाएं, संपादन और अनुवाद : विष्णु खरे) से साभार.
Bahut badhiya kavita. Padhte hue bheetar ka ‘saatvan’ khojne lga.
अद्धभुत❣️❣️