लोरना गुडिसन की कविताएं ::
अनुवाद और प्रस्तुति : यादवेंद्र

साल 1947 में जमैका में जन्मी कवि और कलाकार लोरना गुडिसन कैरिबियाई समाज की नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि डेरेक वालकॉट के बाद दूसरी सबसे सशक्त और मुखर प्रतिनिधि मानी जाती हैं. शुरुआती शिक्षा अपने देश में लेने के बाद लोरना अमेरिका और जमैका के बीच अपना वक्त बांटती रही हैं. गए कई वर्षों से वह मिशिगन यूनीवर्सिटी में अध्यापन कर रही हैं. उनके ग्यारह कविता-संग्रह, दो कहानी-संग्रह और कुछ अन्य पुस्तकें प्रकाशित हैं. कई देशों में उनकी कला प्रदर्शनियां भी आयोजित की गई हैं. अपने समाज की लोक परंपराओं, इतिहास-बोध और संघर्षशीलता को स्वर देने के लिए उन्हें कई बार अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान भी प्राप्त हुए हैं.

लोरना गुडिसन

जब मैं बन जाती हूं बाघ

जिस दिन उन्होंने चुराया उसकी बाघ जैसी आंखों का छल्ला
उसी दिन बन गई वह खुद बाघ…
उसने रिल्के की इस मामले में सलाह मानी
जिसने कहा था : जब पीना पिलाना बन जाए जी का जंजाल
और घुल जाए इसमें खूब कड़वाहट
तब करना यह चाहिए
कि खुद ही बन जाओ शराब

दरअसल, बाघ सोता रहता है
सारे समय उसके अंदर
वह महसूस करती है उसका करवटें लेना
ऊंघना और शिथिल पड़ जाना
जब लेटती है वह उसके बगल में

सात दिनों तक लगातार
वह उसको देखती रही सामने के लंबोतरे आईने में
उसकी निगाहें खंगालती रहीं आस-पास का सारा विस्तार
लेकिन जब अंत में उसने झांका अपने अंदर
तब सामने दिखने लगा
कविताओं और स्मृतियों से लबालब भरा हुआ विशाल रक्तिम परिदृश्य

उसके दिल के अंदर घुसा हुआ एक दिल
और उसके अंदर कद्दावर,चमकदार और गहरी सुनहरी धारियों वाला
पसरा हुआ था एक बाघ

रात में सपने में उसकी मां उतारती है जब उसके कपड़े
तब महसूस होती हैं उसको बेटी के अंदरूनी अंगों पर
चौड़ी और ताजा उभरी हुई बाघ की धारियां
और अंगारे-सी दमकती हुई सुनहरी पारदर्शी आंखें

वह पहनने लगी है एड़ी तक लंबे परिधान
ताकि ढंके रहें गोलाई लिए हुए दुम-स्थल
उसने बाघ जैसी धारियों वाले पुष्प खोंस रखे हैं गुलदस्ते में
और अपनी बिल्ली को भगाकर घर में
बांध लिया है बाघ के छोटे संस्करण वाला जानवर
भोर में चार बजे उठ कर
अभ्यास करती है वह अकड़ कर चलने का
बड़े से हॉल के अंदर लंबे-लंबे डग भरते हुए

बाघ के दूध में कौन-कौन-से अवयव होते हैं?
क्या बाघ भी जोड़ों की तरह मैथुन करते हैं?
क्या कोई अ-बाघ बाघ को अपनी पत्नी बना सकता है?

ऐसे तमाम सवालों के जवाब
इसी वक्त मांग रही है वह…
जाहिरा तौर पर जो जी रही है
एक बाघमय जीवन

बेलगाम स्त्री को विदाई

मैंने जान-बूझकर दूरी बनाए रखी
उस बेलगाम स्त्री और खुद के बीच
क्योंकि उस पर ठप्पा लगा हुआ था चाल-चलन ठीक न होने का

हरदम वह लालच देकर बुलाती
आकर साथ शराब के घूंट लेने को
रक्तिम शराब और वह भी मिट्टी के भांड में
फिर दुबले-पतले अश्वेत मर्दों के झूठे वायदों और झांसों के आगे
घुटने टेक समर्पण कर देने को

ऐसा भी होता है कई बार
जब मैं रात में जल्दी बंद करने लगती हूं घर
और इतराने लगती हूं अपनी शुचिता पर
कि एक और दिन जी लिया मैंने बगैर मुंह लटकाए उदास हुए
तभी वह दिख जाती है अड़हुल के पीछे खड़ी हुई
फूलों के लाल रंग को मात करते लाल परिधान में
बिल्ली की आंखों सरीखी अंगूठी में बंधी चाभियां अल्हड़ता से घुमाती
और मुझे ललचाती आवाज देती
कि घर से बाहर निकलो
आओ, चलते हैं कहीं मस्ती करने…

***

यादवेंद्र सुपरिचित अनुवादक हैं. मुंबई में रहते हैं. उनसे yapandey@gmail.com पर बात की जा सकती है.

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