कविताएँ ::
अमित तिवारी
प्यार
मेरा प्रेम बरगद के पेड़ जैसा हो सकता था—
विशाल, विस्तृत और प्रश्रयी
या कि गिलहरी की पूँछ जैसा—
चंचल, मोहक और संतुलित
वह हो सकता था वैसा,
जैसा कछुआ अपने अंडों से करता है—
गुप्त, आशंकित और एकाकी।
पर मेरे प्रेम ने चुना
इस सबसे इतर
आर्कटिक का कोई हिमखंड होना
गहरा, शांत, विस्फोट को ज़ब्त किए
और इतना नीला
जो चीख़ कर बताता हो
कि वह समय की परिकल्पना जितना पुराना है।
परिधि
सब साफ़ दिखाई देता था
शरद पूर्णिमा की अगली रात भी
ढाबे पर पकती दाल की भाप
चंद्रमा की परिधि पर उभरी
प्रेमिका की ठुड्डी
लौट रही साइकिल
दिख जाता था
मचान पर लटकी
लालटेन का संघर्ष भी
एक अहीर ले आया
दही की कहतरियाँ
सबने देखा
किसी ने नहीं देखे
चमरौटी की लड़की के फटते कपड़े।
चुंबन
तुमको चूमना
हमेशा
ऐसा होता है
जैसे
तरलतम रूप में
आग पी रहा हूँ।
***
अमित तिवारी की कविताएँ कहीं प्रकाशित होने का यह प्राथमिक अवसर है। उन्होंने ये कविताएँ ‘सदानीरा’ को इस परिचय के साथ भेजी हैं—‘‘मैं पेशे से मुंबई की एक फ़र्म में सॉफ्टवेयर डेवेलपर हूँ। जन्म और शिक्षा गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में। जीवन के आरंभिक बाईस वर्ष, जो आगे के सभी वर्षों, व्यक्तित्व, समझ और चरित्र का ताना-बाना बुनते हैं, छोटे क़स्बों और देहात में ही बीते। छोटे-छोटे निबंधात्मक व्यंग्य के साथ इसकी नई पौध ‘वन लाइनर्स’ लिखने की आदत है और ‘दैनिक भास्कर’ के लिए ऐसे व्यंगात्मक वन लाइनर्स का एक कॉलम लिखता हूँ। कविताएँ कुछेक सालों से लिख रहा हूँ, पर उन्हें कुछ कविता-प्रेमी मित्रों को छोड़ न किसी को दिखाया है और न प्रकाशन के लिए कहीं भेजा है। बेतहाशा लिखी, पढ़ी, फ़िल्माई जा रही कविताओं की भीड़ में इन्हें सामने लाने से हिचक होती है। कविताएँ लिखना एक नर्म, नाज़ुक और बेहद संवेदनशील काम लगता है, जिसमें चूक और कृत्रिमता उसको बदमिज़ाज बना सकती है। ओपन माइक कल्चर और कविता को मास प्रोडक्शन/फैक्ट्री उत्पादों की तरह मूल्यहीन, नीरस और एकवर्णी होता हुआ देख बहुत दुःख होता है। कविताएँ इसलिए लिखता हूँ ताकि महसूस की गई चीज़ों के लिए ईमानदार हो सकूँ और इसलिए भी कि हिंदी से बहुत प्रेम है।’’ अमित मुंबई में रहते हैं। उनसे amit.bit.it@gmail.com पर बात की जा सकती है।
शानदार कविताएं अमित
बहुत शुक्रिया दीदी 🙂
nicee n keep it upppp…
शुक्रिया अनीता 🙂
बहुत सुन्दर
बहुत बहुत शुक्रिया 🙂