कविताएँ ::
पार्वती तिर्की
हँड़िया
उस समय जब ‘हँड़िया’
बाज़ार में बेचे जाने वाली वस्तु नहीं थी।
आदिवासी गाँव के एक पहान ने
प्रकृति की वंदना में
धरती पर हँड़िया के बूँद चुआये!
धरती पर हँड़िया का रस चुआने की परंपरा कई भारतीय आदिवासी समूह में प्रचलित है, यह धान से बनाया जाने वाला पेय पदार्थ है।
बैगा
जंगल में राजाओं और अँग्रेज़ों के प्रवेश के समय
जंगल के पास बसे गाँव के अगुवा ने कहा—
राजा का राज रहेगा
लेकिन धरती हमेशा
गाँव के बैगा की होगी!
आदिवासी गाँव में धरती पूजा के लिए एक बैगा नियुक्त किया जाता है, जो सामूहिक प्रार्थना की अगुवाई करता है और धरती की हमेशा सेवा के लिए प्रतिबद्ध होता है।
कोंहा बेंज्जा
दुलो की अंतिम यात्रा में
लोगों ने गीत गाए
और उत्सव मनाए,
मरने के बाद
यहाँ मनुष्य का समाज से
विवाह होता था,
यह उनके सामाजिकता की परिभाषा थी,
बोले-अबोले वे हमेशा एक परिवार थे।
कोंहा बेंज्जा अर्थात् बड़ा विवाह, यह किसी के मृत्यु पर निभाया जाने वाला रीति-नेग है।
चिल्पी
चिल्पी बेचती हुई स्त्रियाँ
लोगों के घर को
अपने होने के
सौंदर्य से काढ़ रही थीं,
अभी-अभी खेत से काटे गए
पके धान से
उन्होंने सुंदर आकृति बनाई थी,
यह उनके हाथों का भी सौंदर्य था,
वे अपने हाथ धान की बालियों में
बड़े सलीक़े से नचा रही थीं,
वे चिल्पी गाँथ रही थीं
जैसे धरती पर फूल खिल रहे थे।
चिल्पी सजावट की वस्तु है, इसे धान से बनाया जाता है।
अखड़ा
‘हमें इस धरती पर
शांति चाहिए’
कहते हुए उन्होंने कहा—
यह युद्ध के बिना संभव है।
उनके गीत इस बात का भरोसा देते हैं।
‘पहाड़ के बीच
लोगों का एक झुंड
हमेशा कोई गीत गाता है।’
गाँव के बीचोबीच एक निश्चित जगह जहाँ लोग एकत्रित होते हैं, उसे अखड़ा कहते हैं।
चाक
राह चलते हुए
एक मनुष्य ने कहा—
‘यह धरती कितनी बदल गई है!’
तब गाँव के किसी बुज़ुर्ग ने
कहा—
वही सूरज, वही चाँद,
चाँद की रोशनी भी वही है।
धरती नहीं बदली,
यह मनुष्य बदल गया है।
चंद्रमा के चारों ओर फैले प्रकाश घेरे को चाक कहा जाता है।
बेक
जंगल की ओर जाती हुई स्त्री ने
अपने प्रेमी से कहा—
मुझे तुमसे उतना ही प्रेम चाहिए,
जितना मेरी जीभ को नमक,
मात्र…
नमक को कुड़ुख आदिवासी भाषा में बेक कहा जाता है।
पार्वती तिर्की की कविताओं के प्रकाशन का ‘सदानीरा’ पर यह दूसरा अवसर है। इस बीच गत वर्ष उनकी कविताओं की पहली किताब ‘फिर उगना’ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ ‘सदानीरा’ के बहुभाषिकता अंक में पूर्व-प्रकाशित। संपर्क : ptirkey333@gmail.com