शू तिंग की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : तुषार पांडेय

शू तिंग | तस्वीर सौजन्य : fujian

तुम्हारी याद

एक बहुरंगी चार्ट
जिसकी कोई सीमाएँ नहीं
बोर्ड पर लिखा एक समीकरण
जिसका कोई हल नहीं
इकतारा जो बस अब बनाता है
बारिश की बूँदों से मनके
अपनी तार पर
किसी नाव के ख़राब चप्पू
जो कभी पार नहीं उतरेंगे

इंतिज़ार करती कलियाँ
एक रुके हुए एनिमेशन में
डूबता हुआ सूरज देखता है दूर से
जबकि मेरे मन में हो सकता है
एक विशाल समुद्र
जो जुड़कर होता है सम्मुख
आँसू के जोड़े में

हाँ, इन विस्तारों से
इन गहराइयों से
मात्र यही।

परी-कथाएँ

आप अपनी कहानी पर भरोसा कर
उसके भीतर चले जाते हैं
एक नीलकमल
पर आपने देखा पुराना बेजान पेड़
पुरानी ढहती हुई दीवार
और ज़ंग लगी रेलिंग
आपके एक इशारे मात्र से
नज़दीक आ जाता है
समूह जंगली घासों, टिड्डों और तारों का
आपको एक बेदाग़ दूरी में
लेकर जाने के लिए

दिल छोटा हो सकता है,
लेकिन दुनिया है बहुत बड़ी

और बदले में लोग यह मानते हैं कि
देवदार के पेड़ में बारिश के बाद
दस हज़ार छोटे सूरज
शहतूत की एक शाखा
मछली पकड़ने वाले काँटे की तरह
पानी में डूबा हुआ
एक उलझा हुआ बादल
पतंग की पूँछ में
धूल झाड़ते हुए
आकर्षक स्वरों में
दस हज़ार स्मृतियाँ
तुम्हारे स्वप्न से गाती हैं

दुनिया हो सकती है छोटी
लेकिन दिल है बहुत बड़ा।

गिफ़्ट्स

मेरा सपना—सपना है एक तालाब का
जो न केवल करता है प्रतिबिम्बित आसमान को
बल्कि वह जो ख़ुद को देता है सुखा
जलकुम्भी और नीलगिरी के लिए

मैं चढ़ जाऊँगा जड़ों से नसों तक
और जब पत्तियाँ मुरझाकर लगेंगी झरने
तब मैं नहीं करूँगा शोक
चूँकि मैं मरा था जीवन के लिए

मेरी ख़ुशी—ख़ुशी है सूर्य किरण की
जो सृजन के क्षणों में
छोड़कर जाएगी चमकते शब्द
जो चमकेंगे एक स्वर्णिम लौ की तरह
बच्चों की आँखों की पुतलियों में

जब भी अंकुर फूटेगा
मैं हरियाली के गीत गाऊँगा
गहन-गहन कहकर देखो
मैं सरल-सरल बहता हूँ!

मेरा दुःख—दुःख है पक्षियों का
जिसे समझेगा वसंत :
असफलताओं के मध्य कठिनाइयों से उड़ना
एक सुनहरे और उज्ज्वल भविष्य के लिए

मेरे ख़ून से सने पंख
जो खरोंच देंगे एक चित्रलेख
आने वाले हर साल के लिए
हर इंसान के दिल पर

क्योंकि
मैं जो कुछ हूँ
वह एक है उपहार धरती से मिला।


शू तिंग चीन की सुपरिचित लेखिका हैं। उनका मूल नाम गोंग पेइयू है। उनके शहर में पिता के कुछ राजनीतिक मतभेदों के कारण लेखिका और उनके पूरे परिवार को अपना जीवन गाँव में व्यतीत करना पड़ा, नतीजतन उनकी शिक्षा अधूरी रह गई। लेकिन तब तक कविता का बीज उनमें पड़ चुका था। वह विश्व कविता को पढ़ने लगी थीं। इस बीज का अंकुर फूटा 1979 में, जब उनका पहला काम प्रकाशित हुआ। कुछ समय बाद 1981 और 1983 दोनों ही वर्षों में कविताओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। शू तिंग की कविताएँ भावनाओं और प्रतीकों से ओत-प्रोत स्वयं से दूर होकर, स्वयं के इर्द-गिर्द ही स्वयं के संकेतों की खोज करती हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करने के लिए Selected Poems of Shu Ting से चुनी गई हैं। तुषार पांडेय को भोपाल में इंजीनियरिंग के दौरान लिखने की आदत थी, अब हिंदी साहित्य से मास्टर्स करने के दौरान पढ़ने की आदत है। वह कॉलेज के ही अनुवाद विभाग में अनुवाद का कार्य करते हैं और विश्व साहित्य का अध्ययन भी। उनसे tushar10898@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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