कविताएँ ::
सोमेश शुक्ल

सोमेश शुक्ल

एक

न जानना मेरे लिए अज्ञात के साथ जीने का पूर्वाभ्यास मात्र है।

दो

किसी के लिए कुछ इतना निजी हो सकता है कि अपने आपसे भी न बाँट सके।

तीन

क्या ही व्यर्थ है यह जीना कि स्मृतियाँ तक भी उसी की हैं जो हुआ।

चार

आदमी के किए में
आदमी की मृत्यु चल रही है
लगातार
आदमी की ओर

पाँच

कितना जीऊँगा
मेरे लिखे से पता चलता है

कितना कभी मर ही नहीं पाऊँगा
मेरे न लिखे से।

छह

मैं अपने बचाव की हर चीज़ अपने पास में रखता हूँ और अपने पास को अपनी पहुँच से बाहर।

सात

मैं जब नहीं जानता कि क्या लिखना है, सिर्फ़ तभी लिखता हूँ; मुझ पर लिखने की बची यह अंतिम बाध्यता है।

आठ

कहीं पहचान लिया जाता हूँ से मैं और कुरूप हो जाता हूँ।

नौ

किसी के बारे में विचार करना उसे अनुचित तरीक़े से छूना है।

दस

मनुष्य अपनी सीमा में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

ग्यारह

हम जो नहीं जानते उसे जानता तो कवि भी नहीं है, लेकिन फ़र्क़ इतना है कि उसके लिए वह कविता है।

बारह

मैं उन लोगों को समझाना चाहता हूँ जो नहीं समझते।

तेरह

किसी समस्या को पूरी तरह हल करने की दिशा में मेरा पहला क़दम यह है कि मैं आत्महत्या के विचार को स्वीकार लूँ।

चौदह

कम से कम लिखे में मेरा विश्वास अधिक है, न लिखे में अटूट है।

पंद्रह

दु:ख को खोज कर उसे जीना दु:ख से बचने का तरीक़ा है।

सोलह

क्या नहीं था जो था नहीं
दुनिया और समय और प्रेम जितना पाया
उससे अधिक था

मुझमें केवल एक ही कमी थी कि मैं था।

सत्रह

कविता कोई बात कहे बिना सब कुछ कह देने की कला है।

अठारह

जीवन में मिले हर व्यक्ति के भीतर मैंने गुप्त भाषा में बनती हुई एक योजना पाई है कि अंत में यहाँ से बचकर कैसे निकलना है और जाकर ईश्वर की हत्या कर देनी है।

उन्नीस

एक समय ऐसा आता है जब दो लोगों के बीच कुछ भी पुराना बक़ाया नहीं रह जाता और तब वे वहाँ होते हैं जहाँ वे पहली बार एक-दूसरे को जानना शुरू करते हैं।

बीस

लोग मिलते हैं और एक दूसरे को कहते सुनते हैं और जब नहीं मिलते तो अपने से बातें करते हैं। कुछ भी बातों में ही शुरू होता है और हमें नहीं पता कि ख़त्म फिर कहाँ जाकर होता है।

इक्कीस

लिखने की बहुत सारी समस्याएँ हैं
इतनी कि लिखे जाने से भी अधिक हैं

पहली है सबसे बड़ी
हर अक्षर है अनगिनत अक्षर

लिखने की जगह कौन-सा लिखूँगा?

बाईस

मैं अपने इर्द-गिर्द का खोखलापन हूँ।

तेईस

जबकि एक अपने आपमें ही शर्मिंदा हो सकता है तो फिर किसी दूसरे द्वारा अपनी तारीफ़ क्या सुनना।

चौबीस

किसी अज्ञात का साथ निभाने के क्रम में मेरा हर चीज़ से दूरी का रिश्ता बन गया है।

पच्चीस

किसी जगह को छोड़ते हुए मुझे एक अजीब उदासी घेरे रहती है क्योंकि मैं नहीं जानता कि इस जगह को मैं किस जगह छोड़ रहा हूँ।


सोमेश शुक्ल की कविताओं के ‘सदानीरा’ पर प्रकाशित होने का यह सातवाँ अवसर है। उनसे और परिचय तथा ‘सदानीरा’ पर इससे पूर्व प्रकाशित उनकी कविताओं के लिए यहाँ देखें : थोड़े समय से बच गए अनंत समय में │ कुछ ऐसे रहस्य हैं, जिन पर कोई परदा नहीं │ फूल की स्मृति में फूल की गंध चूक जाने पर मात्र चूक जाने वाला ही बचेमेरे होने से एक रास्ता रुका हुआ है इस संसार में सिर्फ़ देखे गए रंग ही फीके पड़ते हैं

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