कवितावार में ध्रुव शुक्ल की कविता ::

ध्रुव शुक्ल

चीटियों को देखते हुए

चली आ रही है धरती पर
निर्भय कविता
कविता के पीछे कविता
साथ छोड़ती नहीं किसी का

धरती के भीतर रखकर
शब्दों के अंडे
बार-बार आती है बाहर
चला आ रहा कविता के पीछे
शब्दों का जूलूस
धरती के भीतर से

किसी कुतरे फल को देख
कुछ देर उसी पर बैठ
अपना अर्थ खोजते शब्द
अचानक फिर चलने लगते
अन्न-कणों को सिर पर रख

माटी को भुरभुरी बनाकर
गोलबंद हो बैठे रहते शब्द
बड़ी देर तक गुनताड़े में

धरती के भीतर जाकर बार-बार
कुछ पूछ-पूछकर बाहर आते
और कभी सबके सब
धरती में छिप जाते
कभी अचानक एक साथ
फिर बाहर आ आते

चला आ रहा शब्दों का जुलूस
अंत नहीं है जिसका

ध्रुव शुक्ल (जन्म : 1953) हिंदी के हिंदी के सुपरिचित कवि-कथाकार हैं। उनकी दस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। वह भोपाल में रहते हैं। उनसे kavi.dhruva@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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