कविताएँ ::
अशोक कुमार पाण्डेय
एक आवाज़ बेआवाज़
एक
मानसबल झील पर मुँह उचका कर देखती होंगी मछलियाँ
डोंगियों में बहते उदास चेहरे
पचास दिनों से कहकहे के इंतिज़ार में
मछलियों को तो कुछ समझ नहीं आता
रात के सन्नाटे में खीर भवानी से आती होगी कोई आवाज़
तो उदास हो जाती होंगी मछलियाँ?
दो
वलरहामा के पुराने शिव मंदिर में
क्या प्रार्थना करते होने इन दिनों रतनलाल?
तीस साल पुरानी वह उदास रात
सपनों में आती होगी रंग बदलकर
गूँजते होंगे कानों में नारे नए-पुराने
सस्ती शराब के टूटते हुए नशे में उभरता होगा कौन-सा दृश्य?
चिल्लाँ के लिए जुटाते लकड़ियाँ
किसी चिता की याद
जाने तोड़ रही होगी
या कि जोड़ रही होगी।
तीन
मेरी अँगुलियों की तरह बेचैन होंगी उसकी आँखें
आख़िरी सिगरेट मसलता एश-ट्रे में
किस निगाह से देखता होगा कैमरे को रात के तीसरे पहर
कैमरा… जिसमें दफ़्न है तीस सालों का तरबतर इतिहास
श्रीनगर, माछिल, वंधामा, शोपियान…
धूल और धुएँ से भरी कार में भटकता यहाँ से वहाँ
पथरीली आँखों में मुस्कुराता होगा शायद
कितने असहाय होते हैं एक मुर्दा शहर के ज़िंदा बाशिंदे!
चार
उधर से आती है एक आवाज़ पहचानी
और भीग जाता हूँ
अपना हाल बताने से पहले पूछते हैं मेरा हाल
मैं देश की राजधानी में हूँ
चौबीस घंटे बिजली
सुरक्षित सड़कें
एक डंडी कम होती है सिग्नल की तो गरियाता हूँ सिस्टम को
तिरालिस दिन बाद उनकी बैठक में बजा था फ़ोन
तिरालिस दिन बाद खुली थी धूल भरी खिड़की
तिरालिस दिन बाद पूछा था उन्होंने दोस्तों का हाल
और आप लोग?
गाढ़ी उदास हँसी में
हिंदी के उस कश्मीरी कवि ने कहा—
ज़िंदा हैं बस
और किताबों से भरी मेरी आलमारी ख़ामोश हो गई।
पाँच
लिद्दर बहती होगी उसी ग़ुस्से से
वैसे ही उठती होगी कराह और गुर्राहट की आवाज़
मट्टन पर वैसे ही छाया होगा भूरा आबशारी आकाश
वैसे ही खिले होंगे फूल हरियाली की वैसी ही क़ालीन
वैसे ही उदास होगी पत्थर मस्जिद उस पार देखती ख़ानक़ाह को
वैसे ही फ़ौजी कहकहे मुजाहिद मंज़िल में
वैसे ही मकान ख़ाली हब्बा कदल के
बंद दुकानों में वही चीज़ें पुरानी
बंद होंठों में वही ग़ुस्सा पुराना
वही पुरानी उदासी वीरान आँखों में
सब वैसा ही दिल्ली में
वैसा ही होगा लाहौर
जो बदलता है
कहाँ बदलता है?
अशोक कुमार पाण्डेय (जन्म : 24 जनवरी 1975) हिंदी के सुपरिचित कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनकी कविताओं की दो और कहानियों की एक किताब प्रकाशित है। ‘कश्मीरनामा’ शीर्षक से प्रकाशित उनकी किताब इधर के वर्षों में हिंदी की सबसे महत्त्वपूर्ण और चर्चित पुस्तक है। वह दिल्ली में रहते हैं। उनसे ashokk34@gmail.com पर बात की जा सकती है।
शानदार कविताएँ सर।
बस दिल दुखा गयी, किस हाल पहुँच गये है हम चाह कर मदद नही कर पा रहे है। 😢