कविताएँ ::
नरगिस फ़ातिमा

नरगिस फ़ातिमा

दहशत-ए-मर्ग

मौत
धागों की मानिंद
उलझ पड़ी पहियों से
और थम गई रफ़्तार

चप्पलें
घर की सरहद से
बाहर निकलना भूल गईं
और रुक गए पैर

जहाँ पूरा मुल्क थम-सा गया
दहशत-ए-मर्ग से
लोग दरवाज़ों के पीछे छिप गए
साँकलें चढ़ा लीं

वहीं चल दिए थे सद हज़ार पा
इक लाज़वाल सफ़र पर
लादे हुए कंधों पर
भूख
तिश्नगी
मौत!

सुकूत

बाज़ार बंद हो गए,
दुकानों के शटर गिर गए,
सड़कें थम कर रह गईं
पेड़ों की मानिंद,
पुरहौल सन्नाटा
पसरा था चार सू,

मानो रास्तों पर
ज़ुल्फ़ें खोले सो रही थी मौत,
फ़िराक में रोज़-ब-रोज़
नए शिकार की,

लोगों ने साँकल चढ़ा ली
अपने घरों की,
दहशत से
शहर बियाबान बन गए
और गाँव जंगल,

परिंदों का चहकना
दरिंदों, चरिंदों की आवाज़ें
हवा की सरसराहट
ये सब भी तरन्नुम में न होकर
बेसुरे-से हो गए

दहशत का साया
क़ायम था महीनों
इंसानों के साथ-साथ
इन बेज़ुबानों पर भी

अक्टूबर

अक्टूबर
जाते-जाते
हमारे गूश की लवें
थाम कर
फुसफुसाता है
आहिस्ता से

सुनो ना,
मेरी जान!
महफ़ूज़ कर लो
ज़रा-सी हरारत हवाओं की
ज़रा-सी धूल
ज़रा-सा पसीना
ज़रा-सा लम्स धूप का
ज़रा-सी नमी शाम की
अपने क़ल्ब में
सर्दियों के लिए

जैसे
भालू जमा करता है
शहद
जंगल दर जंगल

चीटियाँ जमा करती हैं
दाना
क़तार दर क़तार

परिंदे जमा करते हैं
तिनके
शजर दर शजर

इंसान जमा करते हैं
यादें
सालहां साल

ज़िंदा रहने के लिए

मोजिज़ा

जब तक
हम तुम हैं बाहम

ऐसी कोई सख़्ती-ए-संग नहीं
जिसे नरमी-ए-गुल में न बदला जा सके

ऐसी कोई नदी नहीं
जिसका रुख़ न मोड़ा जा सके

ऐसा कोई कोह-ए-गिरां नहीं
जिसके बदन को काट कर रास्ता न बनाया जा सके

आप लिखिए

लिखिए लिखने के लिए
लिखिए हम सबके पढ़ने के लिए

लिखिए ख़ुदा से गुफ़्तगू करने के लिए
लिखिए उस बेनियाज़ को रूबरू करने के लिए

लिखिए चाँद-सा चमकने के लिए
लिखिए सूरज-सा दहकने के लिए

लिखिए फूलों-सा महकने के लिए
लिखिए कलियों-सा चटकने के लिए

लिखिए चिड़ियों-सी आवाज़ के लिए
लिखिए परिंदों-सी परवाज़ के लिए

लिखिए अपनी अज्दाद के लिए
लिखिए लंदन ओ बग़दाद के लिए

लिखिए नौशाबह से ख़ुमार के लिए
लिखिए ग़मों से फ़रार के लिए

लिखिए काँटों-सा चुभने के लिए
लिखिए अनकहा कहने के लिए

लिखिए समंदर-सा बहने के लिए
लिखिए दिलों में रहने के लिए

लिखिए ज़ालिम को ज़ुल्म से रोकने के लिए
लिखिए मज़लूम को सहने से टोकने के लिए

लिखिए कोहसारों-सा ज़मीन से ऊपर उठने के लिए
लिखिए आबशारों-सा तरन्नुम में नीचे गिरने के लिए

लिखिए ज़िंदा रहने के लिए
लिखिए बाद मौत ताबिंदा रहने के लिए

नरगिस फ़ातिमा की कविताओं के प्रमुखता से प्रकाशित होने का यह प्राथमिक अवसर है। वह बनारस की रहने वाली हैं। उनकी पैदाइश मऊ ज़िले के एक छोटे से क़स्बे मुहम्मदाबाद गोहना में हुई। वह इन दिनों बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के एक विद्यालय में गणित का अध्यापन कर रही हैं। उनसे fatma.huma@gmail.com पर बात की जा सकती है। प्रस्तुत कविताओं के पाठ में मुश्किल लग रहे शब्दों के मानी जानने के लिए यहाँ देखें : शब्दकोश

1 Comment

  1. रजनीश पाण्डेय नवम्बर 17, 2020 at 9:12 पूर्वाह्न

    बहुत सुंदर मैम

    Reply

प्रतिक्रिया दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *