कविताएँ ::
श्रीया
डेढ़ साल नौकरी करने के बाद निकाल दिए गए कनिष्ठ अभियंताओं के संदर्भ में
मैं सोचती हूँ कि उनका क्या दोष था जो नौकरी से निकाल दिए गए
या उनका जिन्हें बिना किसी कारण के दस्तावेज़ीकरण के बाद योग्य होने पर भी नौकरी नहीं दी
क्या जब पहले वालों को नौकरी मिली तो उन्हें लगा होगा कि दूसरे के साथ अन्याय हुआ?
या अब जब उनकी नौकरी चली गई है और दूसरे को नौकरी मिल गई है
तो क्या दूसरे वालों को लग रहा है कि पहले वालों के साथ भी अन्याय हुआ है
हम सब जो अपनी-अपनी नौकरी में हैं
और इस अन्याय को समझने की क्षमता भी रखते हैं
हम इतने मजबूर क्यों हैं कि एकजुट होकर अन्याय के विरोध का साहस भी नहीं रखते हैं
या हम डरते हैं अगर कुछ कहेंगे तो हमें ही बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा?
या हमें कोई फ़र्क़ नहीं है इस सबसे
लेकिन आज यह किसी और के साथ है
कल आपके साथ होगा
हमारे साथ होगा
और हो भी रहा होगा
सरकार हमें अपनी शर्तों पर नौकरी देती है
क्या हमें भी अपनी शर्तें नहीं रखनी चाहिए?
अपनी-अपनी लड़ाई लड़ते रहने पर कोई भी जीत नहीं पाएगा
सब हार रहे हैं—हम सब।
— एक कनिष्ठ अभियंता, जिसकी नौकरी अभी बची है।
उम्मीद
मेरे मन और तुम्हारे मन की दूरी एक प्रकाशवर्ष की है
दूरी बराबर है गति गुना समय के
गति नगण्य है तो समय अनंत
लेकिन मुझे उम्मीद है—
इस दूरी के तय होने की :
जैसे असंख्य तारों की रोशनी
कई प्रकाशवर्ष की दूरी तय कर पृथ्वी पर आ पहुँचती है
मेरे तन और तुम्हारे तन की दूरी कुछ मिलीमीटर की ही है
दूरी बराबर है गति गुना समय के
समय अनंत है तो गति नगण्य
लेकिन मुझे उम्मीद है—
अनंत समय के बीतने की :
जैसे ब्रह्मांड के बनने के अनंत समय बाद आज हम वर्तमान में हैं।
लड़कियों जैसी
यह याद रखना तुम—
तुम्हारा मन से लड़की होना ज़्यादा ज़रूरी है
तुम्हारे कपड़े तुम्हारे मन के बारे में कैसे बता सकते हैं
बिंदिया पायल झुमका तुम्हारे दिल का पता कैसे बता सकते हैं
क्या शरीर की कोमलता ज़रूरी है
क्या शृंगार करना ज़रूरी है
आँखों का काजल उसके नज़रिए का पता कैसे बता सकता है
लड़की हो लड़कियों जैसी दिखा करो
और मन!
उसका क्या?
यह याद रखना तुम…
कुछ पंक्तियाँ
इस दुनिया के नंगेपन को जब देखती हूँ—
सभ्य समाज के सभ्य लोग मुझे बिना कपड़ों के नज़र आते हैं
उनके कुरूप अंगों को देख मुझे घिन आती है
और मैं आँखें मूँद आगे बढ़ जाना चाहती हूँ।
दब जाना एक गुण है—
उनके हिसाब से जो अवगुणों से भरे हैं।
श्रीया की कविताओं के कहीं प्रकाशित होने का यह प्राथमिक अवसर है। वह सिरमौर (हिमाचल प्रदेश) से हैं और सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक हैं। फ़िलहाल लोक निर्माण विभाग में कनिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत हैं। उनसे shriyachauhan28@gmail.com पर बात की जा सकती है।