कविताएँ ::
शुभांकर
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भागती हुई लड़कियों से
भागती हुई लड़कियों
तुम्हारे भाग जाने से
मिट नहीं जाएँगे तुम्हारी पीठ पर
धँसे हुए नाख़ूनों के निशान!
मुझे नहीं पता कि कैसे मिटेंगे
तुम्हारी पीठ के निशान
मगर फिर भी भागो मत
तुम्हारा भागना उन्हें
नाख़ून बढ़ाने की इजाज़त देता है।
यात्राएँ
यात्राएँ बोझिल होती हैं
उनका बोध और
पहुँचने की आकांक्षा ही
सरस बनाती है उन्हें
प्रेमी जोड़ों की यात्रा में होता है
छिप जाने का भाव
हनीमून की यात्रा है
महज़ घर का कमरा
बदल लेने की इच्छा
पिकनिक की यात्रा है
समस्याओं से भागना
तीर्थ-यात्राएँ हैं महज़
पापों की पोटली
तैरा देने की कोशिश
अकेले की यात्रा
है सच्चाई और सच
जिससे भागती है
पूरी दुनिया…
अक्सर
मानवता अक्सर मरती है
जब बिन कपड़ों के छोटे बच्चे
हथेली फैलाते हैं
और हम कहते हैं :
छुट्टा नहीं है।
मानवता अक्सर मरती है
जब देर रात स्टेशन पर
रिक्शे पर सोते अधेड़ को
कहते हैं : कटरा चलोगे
और देते हैं आधे पैसे।
मानवता अक्सर मरती है
जब घने कोहरे में मज़दूरन को
खींच ले जाते हैं बसवाड़ी के पीछे
धर्मसमाजी ठेकेदार
और कहते हैं : बस एक बार।
हमारा प्यार
तुम मुझसे प्यार करना
लेकिन असीमित नहीं
सिर्फ़ लोकतांत्रिक नियमों के तहत
तुम मुझसे मिलना
जैसे मिलते हैं सदन में सदस्य
तय अवधि के अंतराल में
शून्यकाल की तरह।
तुम मुझसे वादे करना
जैसे करते हैं घोषणा-पत्रों में
तमाम राजनीतिक दल।
और शादी के लिए बैठेगी सभा
अध्यक्ष कराएगा वोटिंग
बहुमत से फ़ैसले का इंतज़ार
और अंततः अल्पमत में
मर जाएगा हमारा प्यार।
शुभांकर की कविताओं के प्रकाशन का यह प्राथमिक अवसर है। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के शोधार्थी हैं। उनसे sshubhankar05@gmail.com पर बात की जा सकती है।
बेहद सुंदर अभव्यक्ति शुभांकर जी आप की ये नवीन रचनाएं समाज को नवीन आयना दिखलाएगी (अक्सर) जो आपकी द्वितीय रचना मैंने पढ़ी ये अटूट वेदना है जिसकी भरपाई हर रोज कोई न कोई बेसहारा मनुष्य करता है बाकी आपकी सारी रचनाएं बहुत अच्छी हैं आपकी लेखनी और प्रबल हो यूं ही आप नित नवीन रचनाओं से समाज को गति प्रदान करें यही आशा के साथ शुभामनाएं आपको।
सच से भागती है पूरी दुनिया 👌👌👌👌
बहुत खूबसूरत लिखे हैं …
wow, sir ji
हमारा प्यार, भागती हुई लड़कियों से, अक्सर यह पूरी कविता पढ़ी है बहुत अच्छी थी और आप हमें अच्छी 2 कविताएँ लिखकर भेजें….