कविताएँ ::
शिवम तोमर

सरकारी पुण्य
मैं जिस शहर में रहता हूँ
वहाँ कोई गंगा नहीं बहती
लेकिन अगर आप पुण्य कमाना चाहे
तो मुख्य डाकघर जा सकते हैं
वहाँ आप पाएँगे कि
साक्षरता से वंचित जनों की एक भीड़
आधार कार्ड बनवाने के फ़ॉर्म को
भरने-भरवाने में जुटी हुई है
वे हाथ में फ़ोल्डर लिए
या जेब में पेन खोंसे मनुष्यों को ऐसे देखते हैं
जैसे वे उनके हिस्से की साक्षरता हों
आप चाहे तो जाइए वहाँ
अपनी क़मीज़ की जेब में पेन खुरस कर
फिर देखिए
सरकारी फ़ॉर्म की तमाम जानकारियाँ
और उन्हें समझने की असमर्थता से परेशान
वे लोग कैसे आपकी ओर उम्मीद से देखेंगे
और उनके फ़ॉर्म भरते हुए
आपको यह इल्हाम होगा
कि सरकार कितनी दूरदर्शी है!
उसने पुण्य कमाने का ऐसा ढाँचा तैयार किया है
कि मामूली फ़ॉर्म भरने से
ग़रीब की आँखों में चमक आ जाती है
और आप जैसे भद्र लोग
पुण्य के अधिकारी बन जाते हैं।
एक स्त्री की कामना
एक बड़ी-सी अजंता की घड़ी है
वर्षों से साढ़े आठ पर ठिठकी हुई है
एक शहर के तमाम लोग
अपनी यात्राएँ स्थगित कर
वर्षों से एक प्लेटफ़ॉर्म पर गतिहीन खड़े हुए हैं
यह गतिहीनता
एक स्त्री की कामना थी
एक जाते हुए को रोक लेने के लिए
उसने पूरी दुनिया भर से गति छीन ली
वह रेलगाड़ी जिसमें बैठ कर
मैं उस दुनिया से दूर चला आया
मैंने देखा था
उसकी आँखों में ठहरी रही।
सबसे ठंडी गर्मियाँ
बंदरों की लाशें कुओं के तल में से झाँक रही हैं
मछलियाँ अपने जलघरों में जल कर मर रही हैं
आकाश से पक्षी ग़श खा कर ज़मीन पर गिर रहे हैं
अपनी चोंच में पानी का अधूरा उच्चारण लिए हुए
ग़रीब जन अपनी सहनशीलता की हद को
हर बार की तरह एक डिग्री बढ़ा रहे हैं
इस बार की गर्मियाँ
अब तक की
सबसे अधिक तपती हुई गर्मियाँ हैं
और शायद
यही हमारे शेष जीवन की
सबसे ठंडी गर्मियाँ भी हों।
फ़र्स्ट ड्राफ़्ट
ओ आवेग-से भरी कविताओ,
मैं जानता हूँ तुम्हारी व्यथा
कितनी अनोखी-सी थीं तुम फ़र्स्ट ड्राफ़्ट में
इतनी अनूठी न हुआ करो
कि तुम्हें देख कर संशय से भर जाए कोई कवि
क्या तुम्हें नहीं पता
मान्य कविताओं का बिंब-विधान?
क्या तुम्हें नहीं मालूम प्रकाशन-विज्ञान?
अब यह मत कहना कि
तुम्हें नहीं मालूम था
कि तुम्हें ठोका-पीटा जाएगा
और मानकों के तंग दायरों में ढाला जाएगा
कविता बनने के लिए
इतना तो करना पड़ेगा न
कवि को देखो बेचारा
क्या-क्या नहीं करता!
शिवम तोमर की कविताएँ ‘सदानीरा’ पर प्रकाशित होने का यह दूसरा अवसर है। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखिए—
कविताएँ : आवाज़ लगाने से भी कम होती है दूरी
अनुवाद : मैं वहाँ लौट आता हूँ जिस जगह से मैं संबद्ध हूँ | क़ैद की इच्छा करो और तुम क़ैद हो जाओगे | अगर तुम प्रेमियों की अन्यता से निपटना सीखना चाहती हो तो बिल्लियाँ पालो | इस देश का विशालकाय मुँह दर्द में भिंचा हुआ है | कविता लिखना दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को एक साथ एक ही बार में एक मुख़्तसर पत्र लिखने जैसा है