विजय नाम्बिसन की कविताएँ ::
अनुवाद और प्रस्तुति : शिवम तोमर
विजय नाम्बिसन [1963-2017] एक भारतीय कवि, निबंधकार और उपन्यासकार हैं। वह अपनी व्यावहारिक और आत्म-निरीक्षणात्मक लेखन-शैली के लिए जाने जाते हैं। वर्ष 1992 में उन्होंने अपना पहला कविता-संग्रह ‘लैंग्वेज़ एज़ एन एथिक’ प्रकाशित किया, जिसे आलोचकों और पाठकों द्वारा समान रूप से सराहा गया। ‘बिहार इज़ इन द आइज़ ऑफ़ बीहोल्डर्स’, ‘फ़र्स्ट इनफ़िनिटीज़’ और ‘दीज़ वर माई होम्स’ उनकी अन्य उल्लेखनीय पुस्तकें हैं। वह अपनी कविता के अलावा एक विशिष्ट निबंधकार और उपन्यासकार भी रहे। यद्यपि उनका जीवन दुखद रूप से छोटा था, उनकी विरासत उनके शक्तिशाली और विचारोत्तेजक लेखन के माध्यम से जीवित है। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ उनकी पुस्तक ‘दीज़ वर माई होम्स’ और ‘अलीपुर पोस्ट’ से ली गई हैं।
— शिवम तोमर
आधी उम्र
आधी उम्र पहले
हम आख़िरी बार मिले थे
और तब से अब तक
अपनी असफलताओं को लगातार
क़ालीन के नीचे छिपाते रहे
अगर अब फिर मिलें
तो इस विरह का दोष किसे दोगी तुम?
या फिर मुझे वही बेतुका खेल खेलना होगा
जिसमें मुझे याद करने की कोशिश करनी होगी
कि हम क्यों एक न हो सके!
तुम्हारे लिए जो कविताएँ मैंने तब लिखीं
अभी तक बासी नहीं हुई हैं :
रेडियम क्षय होता है
धीरे-धीरे
कण-कण करके
वे कविताएँ जल गईं
पंक्ति-दर-पंक्ति
आधी पंक्ति।
वे शब्द जो तब सुलग रहे थे
अब भी सुलग रहे हैं
जहाँ आधी उम्र पहले तुमने
उन्हें शुभकामनाएँ दी थी।
वे मेरे घर थे
वे सब मेरे घर थे, हालाँकि तब उन्हें नहीं जानता था—
एक फूला हुआ गर्भाशय, माँ के उदार स्तन,
एक खिलौना-घर की मामूली-सी नीरवता,
बिस्तर का कंबल, जिसमें रात भर का आराम समाया होता था,
और उसके बाद वह मीठी हवा, जिसमें मैं सुबह जागता था
मेरे कुछ घर इस बात से अनजान थे कि वे मेरे घर हैं,
जैसे पिता के वे खेत
जो हरी-भरी जीर्ण-शीर्णता में ढके हुए थे
उन युद्धों और लड़ाइयों से भी पुराने थे,
जिनमें वे जीते गए थे
सुस्ती के वे सारे दिन जो पूर्व-नियोजित थे
और वे घर जिन्हें मैं जल्द ही जानूँगा :
एक किताब जिसमें हमेशा रहना होगा—
उसके एक निष्कपट पन्ने में
एक चेहरा जिसे सुबह, दुपहर और रात
तीनों पहर मिलना होगा
एक तूफ़ान जिसे शांत करना होगा—
फिर एक विस्मृति, एक मंच,
और एक बिस्तर जिसमें अंतिम साँस लेनी होगी।
आख़िर में वे घर जो दूसरे रास्तों पर बने हैं :
उनके बारे में मैं नहीं जानता
जब तक वे मेरे घर नहीं बन जाते, मैं चुप रहूँगा।
चाय बनाना
एक चुटकी चाय की पत्ती भी कितनी दमदार होती है
पानी की सतह पर टिमटिमाती हुई,
उसे कांस्य-सा बनाती, निखारती, सोने में बदलती
कप में उभारती एक जादुई सरोवर
किनारों पर ख़ुशनुमा, हँसी से लबालब,
अपने मेनिस्कस1घुटने में पाया जाने वाला एक सी-आकार का टुकड़ा, जो कार्टिलेज का बना होता है। यह पिंडली की हड्डी और जाँघ की हड्डी (फ़ीमर) के बीच कुशन का काम करता है। को मुकुट की तरह धारण किए
चलो, पी लो इसे
पीने के बाद कुछ नहीं बचेगा
मुँह में एक कड़वाहट के सिवाय
और कप में, जैसा कुछ लोग कहते हैं
हमारी ज़िंदगी का नक़्शा छपा रह-रह जाता है
अगर आपमें उसे उलटकर देखने का साहस हो।
बारिश फिर से पड़ रही है
बारिश फिर से पड़ रही है,
और घास ख़ुशी से खिल उठी है।
स्वाभाविक है कि
वह उन जबड़ों के बारे में नहीं जानती
जो उसकी शान को चबा डालते हैं,
न ही उस छलिया धातु के बारे में
जो उसकी जवानी को
एक झटके में दो हिस्सों में तोड़ देती है।
ऐसे विचारों के साथ,
फिर इसे क्यों बढ़ना चाहिए?
जहाँ इसके हत्यारे चाहेंगे,
वहाँ इसके बीज बिखर जाएँगे,
और कुछ दिनों में,
फिर से अंकुरित हो जाएँगे।
हम जो सिर झुका कर
अपनी उम्मीदों को दबाए रखते हैं,
हम भी वह जानते हैं,
जो घास आंशिक रूप से समझती है,
जो घास में झलकता है :
उन सूरजों के बारे में,
जो बिना विदा लिए अस्त हो गए,
इस सूखी धरती के बारे में,
और उन भटकती हवाओं के बारे में,
जो किसी का इंतिज़ार नहीं करतीं।
फिर भी, हमारी गर्वीली जड़ें चिपकी रहती हैं
उस नाज़ुक मिट्टी से,
जो हमारे जीवन को जोड़े रखती हैं
और जो हल्के से छूने पर
भुरभुराने को तैयार रहती है।
एलिज़ाबेथ ऊमनशेरी
एलिज़ाबेथ ऊमनशेरी
प्रसिद्ध कवयित्री
गईं एक कोने की दुकान पर
ब्रेड ख़रीदने के लिए।
दुकानदार ने कहा, ‘‘माफ़ कीजिए,
क्या आप एलिज़ाबेथ ऊमनशेरी तो नहीं,
वही प्रसिद्ध कवयित्री?’’
तो एलिज़ाबेथ ऊमनशेरी घर चली गईं।
एलिज़ाबेथ ऊमनशेरी
एक शाम अपनी मेज़ पर बैठीं
अपने लिए एक कविता लिखने।
कविता ने पूछा, ‘‘माफ़ कीजिए,
क्या आप एलिज़ाबेथ ऊमनशेरी तो नहीं,
वही प्रसिद्ध कवयित्री?’’
एलिज़ाबेथ ऊमनशेरी ने कहा, “हाँ…”
तो कविता घर चली गई।
ह्विटमैन हास्य की एक झलक
एक बच्चे ने मुझसे पूछा : घास क्या है?
मैंने जवाब दिया, यह एक खरपतवार है,
ज़्यादा काम की नहीं; लेकिन अगर तुम
सावधानी से इसे तोड़ो,
और कई दिनों तक धूप में सुखाओ
तो इसे एक चिलम में प्यार से भर कर
उपयोग में ला सकते हो!
‘‘नहीं…’’ उसने टोका,
सूखी घास नहीं! वह हरी घास!
क्या आपको नहीं लगता
कि यह क़ब्रों में दफ़्न लोगों के बढ़े हुए बाल हैं?
मैंने उस पर एक किताब फेंकी और
धूम्रपान करता रहा।
प्लवनशीलता
पानी में तैरते हुए बत्तख़ें लगातार नीचे देखती हैं
यह सुनिश्चित करने के लिए कि
उनके निचले अंग जो पानी के भीतर है
वह पानी के बाहर
उनके पंखों से अलग तो नहीं हो गए
मैं भी कभी-कभी
ख़ुद को अपने पैरों को देखते हुए पाता हूँ
मैं भी देखता रहता हूँ कि
मेरे पैर अभी भी ज़मीन पर हैं या नहीं
फिर जब मैं वापस ऊपर देखता हूँ
तब एक लंबे अलगाव के बाद
मैं वहाँ लौट आता हूँ
जिस जगह से मैं संबद्ध हूँ।
शिवम तोमर से परिचय के लिए यहाँ देखिए : क़ैद की इच्छा करो और तुम क़ैद हो जाओगे