कवितावार में केदारनाथ सिंह की कविता ::

जब वर्षा शुरू होती है
जब वर्षा शुरू होती है
कबूतर उड़ना बंद कर देते हैं
गली कुछ दूर तक भागती हुई जाती है
और फिर लौट आती है
मवेशी भूल जाते हैं चरने की दिशा
और सिर्फ़ रक्षा करते हैं उस धीमी गुनगुनाहट की
जो पत्तियों से गिरती है
सिप् सिप् सिप् सिप्…
जब वर्षा शुरू होती है
एक बहुत पुरानी-सी खनिज गंध
सार्वजनिक भवनों से निकलती है
और सारे शहर पर छा जाती है
जब वर्षा शुरू होती है
तब कहीं कुछ नहीं होता
सिवा वर्षा के
आदमी और पेड़
जहाँ पर खड़े थे वहीं पर खड़े रहते हैं
सिर्फ़ पृथ्वी घूम जाती है उस आशय की ओर
जिधर पानी के गिरने की क्रिया का रुख़ होता है।
केदारनाथ सिंह (7 जुलाई 1934-19 मार्च 2018) हिंदी के समादृत कवि-लेखक हैं। यहाँ प्रस्तुत कविता उनकी कविताओं के प्रतिनिधि चयन (संपादक : परमानंद श्रीवास्तव, राजकमल पेपरबैक्स, पहला संस्करण : 1985) से ली गई है।