फेदेरीको गार्सिया लोर्का की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुघोष मिश्र

फेदेरीको गार्सिया लोर्का │ तस्वीर सौजन्य : wikipedia

रंग

पेरिस के ऊपर
चाँद का रंग बैंगनी है
और मृत शहरों में पीला।

एक हरा चाँद है—
किंवदंतियों का चाँद,
एक चाँद है मकड़ी के जाले का
एक चाँद है दरके हुए रंगीन काँच का,
और एक गहरा रक्तिम चाँद है
रेगिस्तानों के ऊपर।

लेकिन श्वेत चाँद
वह सच्चा चाँद
चमकता है केवल छोटे क़स्बों में
बेआवाज़ क़ब्रों के ऊपर।

चमगादड़

चमगादड़—
परछाइयों का रस है
तारे का सच्चा प्यार,
वह दिन की एड़ी पर काट लेता है।

घड़ियों के जंगल में

मैंने घड़ियों के जंगल में
प्रवेश किया।
पत्तियाँ टिकटिक कर रही थीं,
घंटियाँ गुच्छों में लटकी हुई थीं
एक बहुमुखी घड़ी के नीचे,
तारों के समूह और पेंडुलम थे।

काली परितारिका,
मृत घंटे।
काली परितारिका,
नए घंटे।
सब एक जैसे!
और प्यार का स्वर्णिम घंटा?

केवल एक घंटा,
एक घंटा।
बहुत ठंडा घंटा।

पृथ्वी

हवा की लड़कियाँ
लम्बी रेलगाड़ियों के साथ भागती हैं।

आकाश

हवा के लड़के
चाँद पर कूदते हैं।

प्रथम प्रदर्शन

तुम तुम तुम तुम
मैं मैं मैं मैं
कौन?…
तुम नहीं!
मैं नहीं!

हवा

हवा
इंद्रधनुषों के साथ गर्भवती है,
वह अपनी छाया
उपवन पर उड़ेल देती है।

प्रतिकृति

केवल एक ही चिड़िया
गा रही है।
हवा उसका प्रतिरूप बना रही है।
हम आईनों से सुनते हैं।

आईना

मेरी सोने की अंगूठी
आईने में
खो गई। (इसका अर्थ है :
वह कभी थी ही नहीं)

आईने में वे चीज़ें खो जाती हैं
जो होती ही नहीं हैं।

और क्या मेरी अंगूठी का सुनहला
सूरज या गुलबहारों का था?

क्या किसी स्त्री ने
इसे मुझे दिया?
पूछो मेरे आईने से।

कोई… बात… नहीं… कि
मुझे कोई आईना नहीं मिला!

छह तार

गिटार
स्वप्नों को रुलाता है।
खोई हुई आत्माओं की सिसकियाँ
इसके गोल मुख से बच जाती हैं।
और मकड़ी की तरह
यह बुनता है
एक बड़ा सितारा
अपनी काली लकड़ी के कुंड में तैरती
आहों को फँसाने के लिए।

आकस्मिक भेंट

सूर्य पुष्प।
नदी पुष्प।

मैं :
यह तुम थी? तुम्हारे सीने की धधकती
चमक में, मैं तुम्हें देख ही न पाया।

वह :
और ये फीतों वाला मेरा कपड़ा
इसने कितनी बार तुम्हें छुआ?

मैं :
तुम्हारे कंठ में सुन सकता हूँ, अनखुली,
शुभ्र किलकारियाँ अपने बच्चों की।

वह :
मेरी आँखों में तिरते हैं तुम्हारे बच्चे
वे हैं बिल्कुल हीरे जैसे चमकीले।

मैं :
यह तुम थी? अपने अंतहीन सुदीर्घ बालों को
लहराती कहाँ चली जा रही थी, मेरी प्यारी?

वह :
चाँद पर–क्या तुम्हें हँसी आ रही?
फिर नरगिस फूल की परिक्रमा भी की।

मैं :
मेरे सीने में एक साँप है जो सोता नहीं
लेकिन पुराने चुम्बनों से सिहर उठता है।

वह :
वे लम्हें खुल गए और जड़
जमा लिए मेरी आहों पर।

मैं :
एक ही साँस से जुड़े हुए
आमने-सामने, हम अजनबी हैं!

वह :
शाखाएँ फैल रही हैं,
मुझसे दूर जाओ!
हम दोनों ने ही जन्म नहीं लिया अभी।

सूर्य पुष्प।
नदी पुष्प।

भ्रांति

मेरे दिल में
तुम्हारा दिल?
मेरे ख़यालों का अक्स कौन बना रहा है?
कौन दे रहा है मुझे यह मूलहीन अनुराग?
मेरे वस्त्र रंग क्यों बदल रहे हैं?
सब कुछ एक चौराहा है!
यह कीचड़
तारों से भरा हुआ क्यों है?
भाई! तुम तुम हो
या मैं मैं हूँ?
और ये बूढ़े हाथ—
क्या ये उसके हैं?
मैं ख़ुद को सूर्यास्तों में देखता हूँ
और लोगों का झुंड
मेरे सीने से गुज़रता जाता है।

फेदेरीको गार्सिया लोर्का (1898–1936) संसारप्रसिद्ध स्पैनिश कवि हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करने लिए Federico García Lorca : Collected Poems से ली गई हैं। सुघोष मिश्र हिंदी की नई पीढ़ी के सक्रिय कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : पानी की स्मृति भी प्यास बुझाती है

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