बेबी शॉ की कविताएँ ::
बांग्ला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
निशाना
आजकल ऐसा लगता है
कि सभी शब्दों के लक्ष्य हो
एकमात्र तुम
प्रत्येक बात के शरीर पर रखती हूँ हाथ
स्नेह और प्यार से अगोरकर रखती हूँ सारा दिन
समय के समक्ष नत हो कहती हूँ,
अवसर दो…
युद्ध-विमान के समक्ष नत हो कहती हूँ,
अवसर दो…
क्षुधा और पीड़ित पृथ्वी के समक्ष
हाथ जोड़कर कहती हूँ,
तनिक रुको…
पंख फड़फड़ाकर उड़ जाता है पालतू तोता
निर्जन बागान में द्रुत उग आती है दीमकों की बाँबी,
रात का तक्षक
शिलालिपि बन चुके शब्द
जमते हैं…
सोचती हूँ
क्या अब भी पाठ-योग्य नहीं हुआ समय!
मृत्यु
चले जाने की भी
एक गंध होती है
एक रंग
एक हवा
हम धूप जलाकर
नमकीन जल से
उस हवा के साथ
गंध के साथ
युद्ध करते हैं
मिटा देना चाहते हैं
उसे।
पितृ-परिचय
एक
पिता हमारे परिवेश की तरह हैं…
जब भी कोई कवि
प्रकृति-विषयक कविता लिखता है
मैं उससे पिता का मिलान करती हूँ
प्रकृति की तरह हैं वह निर्लिप्त, शांत
और असहाय…
दो
पिता और मैं,
मैं और पिता
दोनों दोनों से कन्नी काटते हैं…
जैसे कि दो शत्रुजात देश
सीमारेखा के भीतर परमाणु बम बनाना सीख रहे हों
हमारी वह अमीमांसित, अप्रयोजनीय लैंडलाइन है माँ
असहाय
चुपचाप दृश्य देखती है।
तीन
माँ के समक्ष पिता हमेशा ही म्रियमाण लगे…
माँ का रूप ठीक दुर्गा जैसा है
बातचीत सरस्वती जैसी
और हर अनुशासन जैसे माँ चामुंडा…
उनके समक्ष अनुज्ज्वल पिता मेरे…
भिखारी, भिखारियों में भी भिखारी जैसे…
बेबी शॉ नई पीढ़ी की सुपरिचित-सम्मानित बांग्ला कवि-गद्यकार-अनुवादक हैं। उनकी बारह से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनसे babyshaw36@gmail.com पर बात की जा सकती है। सुलोचना वर्मा से परिचय के लिए यहाँ देखें : यहाँ नदी थी