चैताली चट्टोपाध्याय की कविताएँ ::
बांग्ला से अनुवाद : जोशना बैनर्जी
मुफ़स्सल
मैं मुफ़स्सल को तुम्हारी आँखों से देखती हूँ,
जैसे ट्राम की खिड़की से मोड़ के घूमने से
पुरानी किताबों की दुकान,
व्हिटमैन पर धूल जम गई है
सूर्यास्त के समय खेल का मैदान देखती हूँ,
भले ही पेड़ के कोटर में साँप हों। मैं देखती हूँ।
शंख और हारमोनियम एक साथ बज उठे,
घर की स्त्रियाँ साफ़ धुली हुईं साड़ियाँ पहनकर
पड़ोस में घूमने जा रही है,
एक युवक अपने बीमार पिता को लेकर
सदर अस्पताल की ओर भाग रहा है,
मैंने देखा, रेलवे गेट के पास स्टेशनरी की दुकान में
एक बूढ़े दुकानदार ने उस छोटी लड़की के हाथ में गुदगुदी की,
साइकिल छोड़कर ट्रेन पकड़ने दौड़ा कोई, शहर की रोशनी लाने के लिए
साढ़े पाँच फ़ुट का घना अँधेरा कच्ची नालियों के किनारे
सामाजिक व्यवस्था को गाली देता हुआ चलता है
असमय ही बच्चे हाथ-मुँह धोकर टीवी चलाकर बैठ गए हैं।
मलिनता और प्रसन्नता देखी
तुम्हारी आँखों से।
परिवार
लोकतंत्र को बहुत दूर तक खींचकर नहीं ले जा सकती,
मैं उससे पहले ही उसे मार देती हूँ और शव को दफ़ना देती हूँ
अगर तुम फल खाना चाहते हो तो चाक़ू से तुम्हारी उँगली काटकर,
छोटे टुकड़े करके खाने में मिला देती हूँ
अगर मैं बात करना चाहूँ,
तुम मेरी गर्दन में फंदा डालकर अधमरा करके मुझे छोड़ देते हो,
मेरा सारा अवैध सामान फ़्रीजर में है
तुम्हारी गोपनीयता अलमारी में
हमारी बाध्यताएँ नहीं हैं
हम एक साथ वोट देने जाते हैं
रास्ते में मारपीट, ख़ून-ख़राबा होता है
तब हवा दुर्गंध से काँप उठती है
इसके बाद कॉलेज, अस्पताल बंद होने पर
हम फिर से जुनूनी हो उठते हैं
कहती हूँ—
देखो, घर ने राज्य की ओर कैसे अपने पंजे फैलाए हैं…
आओ प्यार करे!
पश्चिम बंगाल
चारों ओर से लोमड़ियों और कुत्तों की आवाज़ें आ रही हैं…
लड़कियो, रास्ते पर मत निकलना
घर में बैठकर छोटे-छोटे टुकड़े करके लवंगलतिका तोड़कर खाओ
चिपचिपे होंठ, सूखी योनि के साथ घर पर ही रहो
हो सकता है तुम्हारे पेट में संतान हो
हो सकता है तुम्हारे प्रेमी हों
घर की शर्म को घर में ही रहने दो!
फिर भी अगर तुम बाहर निकलती हो,
प्रकाश और हवा तुम्हें बलात्कारियों के हाथ में सौंप देंगे।
जब तुम पहाड़ों से समुद्र तल पर उतरते हो,
तो जो कुछ भी होता है…
मेघ मेरा पसंदीदा राग है,
मेघ बार-बार मेरी दुनिया मिटा देते हैं,
मेघ मुझसे छल करते हैं,
मेघ मेरी ग्रीष्मकालीन छुट्टियाँ हैं।
एक दिन मेघ छँट गए,
मैंने निरन्न को निरन्न की तरह पहचानते हुए लिखा
मैंने तुम्हें उदास देखा,
और रात में लकड़ी की छत से
जल्दबाज़ी में कई लोग कूद पड़ते हैं,
मुझसे बहुत प्यार किया उन्होंने
जो लोग बहुत पहले गुज़र गए
फिर, बारिश हुई।
चैताली चट्टोपाध्याय बांग्ला की सुप्रसिद्ध कवि हैं। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के समकालीन बांग्ला स्त्री कविता अंक में पूर्व-प्रकाशित। जोशना बैनर्जी से परिचय के लिए यहाँ देखिए : जोशना बैनर्जी