जॉयस मन्सूर की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अखिलेश सिंह

जॉयस मन्सूर

मैं यह रात हूँ

मैं यह रात हूँ
चाँद की ठंडी जड़ता से जमे हुए
इस अंतरिक्ष की रात

मैं पैसा हूँ
पैसा ही पैसे को कमाता है
न जाने क्यूँ!

मैं पुरुष हूँ
जो ट्रिगर दबाता है
और भावनाओं को शूट कर देता है
बेहतर जीवन जीने के लिए।

कोई शब्द नहीं है वहाँ

कोई शब्द नहीं है वहाँ
बिखरे हुए सिर्फ़ बाल
एक दुनिया में
जहाँ कोई हरियाली नहीं है
जहाँ मेरे स्तनों की हुकूमत है
कोई काम नहीं है
सिर्फ़ मेरी चमड़ी है और
वे चींटियाँ जो रेंगती हैं
मेरी चिपचिपाती टाँगों के मध्य
चुप्पी का मुखौटा पहने
रात—तुम्हारा आनंद
और मेरी अतल देह—
एक बेदिमाग़ ऑक्टोपस की तरह
निगल जाती है
तुम्हारे उत्तेजित शिश्न को
जन्मते ही।

अभी-अभी
एस. के लिए

यह सब इसलिए क्योंकि
मुझे पसंद है—
पानी के भीतर रति
कुहासे और झाग में लिथड़े मेरे केश
और मुझे जाने दो बिस्तर की गहराइयों में
साथ में हो मेरे ऊपर आरोहित एक लड़का
और जगह-जगह फिरती हुई एक उँगली
यह सब इसलिए क्योंकि
तुम जानते हो—
मै कभी एक चोर थी।

एक झिलमिलाती इच्छा है रौशनी

क्यों आँसू बहाएँ
बोरियत के गंजे सिर पर
यह घृणित है या कुछ और…
सौंदर्यशास्त्र, तार्किकता… उफ़्!
भाषा में बोरियत
मैं अपनी पलकों पर
नक़ली पलकें सिलने में माहिर हूँ
गोमेद की पीतवर्णी झलक
सारी घृणा ख़त्म कर देती है
मै जानती हूँ परछाईं बुनना
जोकि दरवाज़ा बंद कर देती है
जब प्यार
दालान में खड़े होकर
होंठों से दस्तक देता है
तुम्हारे पत्रों को दुबारा पढ़ते हुए
मैं हमारी यात्राओं के बारे में सोचती हूँ

गर्मियों के सारे वायदे
डफ़ीन1फ़्रांस में एक नुक्कड़ का नाम में अटके हुए हैं—
घंटियों के नीचे जम्हाई लेते हुए
अब पाँच बज चुके हैं
पतंगें, फ़र्श के पत्थर, बिखरी धूल…
कुछ भी नहीं दीखते
रूमाल की तरह बेतरतीब फ़र्श
सारा दृश्य उलझा हुआ और कामुक
कोट के हुक पर ऊन चढ़े हुए
मंथर बीतती रात
अपना गला साफ़ करती है
इधर मेरी मेज़ पर सुंदर बेतरतीबी
आँसू क्यों बहाना ख़ून की दावत पर?
उस बूढ़े की जाँघों के बीच क्यों तलाश करना?
ओ वेनिस !
मैं तुम्हें ढक लेने के लिए तैयार हूँ—
मेरे नर्म घेरे की मेरी गुलखैरी जीभ के साथ
चोरी के फ़र को तराशने के लिए तैयार
तुम्हारी बकवास बाँहों में नम होकर
गिरने को तैयार
क्यों बहना, मेकअप करना, गुलछर्रे उड़ाना
उत्तर क्यों देना?
भागना क्यों?
तुम्हारी जमी हुई नींद की स्मृति
हरदम मेरा पीछा करती है
अब फिर तुमसे कब मिलूँगी
अपनी हालत पर बिना आँसू बहाए।

मैं तुम्हारे साथ सोना चाहती हूँ

मैं तुम्हारे साथ सोना चाहती हूँ
कुहनी से कुहनी फँसाकर
बालों को उलझाकर
यौनांगों को गुत्थमगुत्था कर
तुम्हारे मुख को अपना तकिया बनाकर
मैं तुम्हारे साथ बार-बार सोना चाहती हूँ
हमें अलगा सकें उन साँसों के भी बिना
हमें भटका सकें उन शब्दों के भी बिना
झूठ कहती हैं जो उन आँखों के बिना
वस्त्रों के बिना
मैं तुम्हारी छाती से छाती लगाकर सोना चाहती हूँ
अकड़ते हुए
पसीने से तर-ब-तर
सिहरती देह की दीप्ति में
उन्मुक्त जंगली आनंद में जड़ीभूत होकर
तुम्हारी परछाईं में ढकी हुई
तुम्हारे जिह्वाघात से होकर चूर-चूर
और मरना चाहती हूँ
एक खरहे के विगलित दाँतों के बीच
होकर तृप्त।

• सभी कविताएँ Poetry Foundation पर उपलब्ध मूल फ़्रेंच से अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधृत


जॉयस मन्सूर से परिचय के लिए यहाँ देखिए : मैं चाहती हूँ, मेरे उरोज तुम्हें उत्तेजित कर दें
और अखिलेश सिंह से परिचय के लिए यहाँ : तकलीफ़ें उससे गुज़रती हैं अपनी पहचान के लिए

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