जॉयस मन्सूर की कविताएँ ::
अनुवाद और प्रस्तुति : अखिलेश सिंह
जॉयस मन्सूर (25 जुलाई 1928–27 अगस्त 1986) का जन्म इंग्लैंड में हुआ और पालन-पोषण इजिप्ट में, कविताएँ उन्होंने फ़्रेंच में लिखीं। उनकी कविताएँ बीसवीं सदी में साहित्य के सुर्रियलिस्ट और अवाँगार्द आंदोलन से संबद्ध हैं। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ उनकी कविताओं के इंटरनेट पर मौजूद अँग्रेज़ी अनुवादों पर आधृत हैं। ‘स्ट्राबेरीज़ एंड ब्लैक पुडिंग’ शीर्षक से उनकी कविताओं का एक संग्रह फ़्रेंच से अँग्रेज़ी में अनूदित हो चुका है, जिसकी संपादक और अनुवादक कैरोल मार्टिन स्पेरी हैं। वह पेशे से सायको थेरेपिस्ट और सेक्स थेरेपिस्ट हैं।
यहाँ प्रस्तुत आठ कविताओं में से शुरुआती पाँच कविताएँ फ़्रेंच से कैरोल मार्टिन स्पेरी के अँग्रेज़ी अनुवाद पर और आख़िरी की तीन फ़्रेंच से हेनरिक ऐशना के अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधृत हैं। यह हिंदी में जॉयस मन्सूर की कविताओं की संभवतः प्रथम प्रस्तुति है।
जॉयस मन्सूर की कविताओं की अनुवादक कैरोल मार्टिन स्पेरी कहती हैं, ‘‘जॉयस की कविताएँ इरोटिक होने के बावजूद प्रेम और कामनाओं की क्रूर ताक़त को अभिव्यक्त करती हैं। ये कविताएँ बेहद कठोर और दर्द भरी हैं, कुछ-कुछ डरावनी और परपीड़क हो जाने की सनक से युक्त भी। वह अपनी असाधारण चित्रात्मकता में सेक्स और मृत्यु की आदिम शक्तियों का समन्वय करती हैं। उन्होंने कठोर साहस और क्रूरतम ईमानदारी के साथ सभी तरह के ख़तरे उठाए। उन्होंने कुछ भी छोड़ा नहीं। हालाँकि, वह अब तक अँग्रेज़ी दुनिया के लिए अज्ञात थीं, क्योंकि उनकी अधिकांश कविताएँ फ़्रेंच में हैं। साल 2014 में, फ़्रांस में उनकी कविता पुनर्जीवित हुई, जब उनकी पुत्रवधु ने उनकी आत्मकथा लिखते हुए उनका रचना-संचयन प्रकाशित करवाया। वह दो बच्चों की माँ थीं और पत्नी तथा माँ की रूढ़ भूमिका के साथ ही उन्होंने कविताओं को भी सिरजा। अगर किसी के साथ उनकी सीधी साहित्यिक तुलना हो सकती है तो वह हैं—सिल्विया प्लाथ। लेकिन जहाँ सिल्विया प्लाथ अपने जीवन के भूत-प्रेतों की ओझाई अपनी रचनात्मकता के माध्यम से करने में आंशिक रूप से ही सफल हो पाईं, वहीं जॉयस मन्सूर इस मामले में पूरी तरह सफल भी हुईं और बची भी रहीं।’’
— अखिलेश सिंह
क्या तुम्हें उन केले के वृक्षों की मधुर सुगंध अभी तक याद है?
क्या तुम्हें उन केले के वृक्षों की मधुर सुगंध अभी तक याद है?
एक अलगाव के बाद कितनी विचित्र हो सकती हैं अपनी ख़ुद की चीज़ें
भोजन से उचाट
और बिस्तर भी कितना नीरस
और बिल्लियाँ
क्या तुम्हें बिल्लियों के ख़ूँख़्वार पंजों की स्मृति है?
छत पर वे चीख़ पड़तीं ज्यों तुम्हारी जिह्वा मुझे तलाशती
वे मुड़कर अपनी पीठ खुजातीं, जैसे तुम्हारे नाख़ून मुझे उकेलते
वे सिहर उठतीं, जैसे ही मैं झुकती
कैसे प्यार किया जाए मैं अब नहीं जानती
मेरे होंठों से मूर्छा के दर्दनाक बुलबुले भी ग़ायब हो चुके हैं
मैंने अपना पत्तियों का मुखौटा उतार फेंका है
गुलाब की झाड़ियाँ बिस्तर के नीचे तकलीफ़ देती हैं
मैं अपने कूल्हे पत्थरों पर नहीं सरका पाती
छत से बिल्लियाँ भाग गई हैं।
मैं चाहती हूँ, मेरे उरोज तुम्हें उत्तेजित कर दें
मैं चाहती हूँ तुम्हारी उन्मादी कामना
मैं देखना चाहती हूँ उत्तेजना में गहराती जा रही तुम्हारी आँखें,
विरंजित होकर धँसते हुए तुम्हारे गालों को,
मैं चाहती हूँ, तुम्हारा अकड़ता हुआ बदन
तुम मेरी जाँघों के बीच बरस पड़ो
तुम्हारी निर्लज्ज देह के उपजाऊ प्रदेश में
मेरी कामनाएँ बुत जाएँ।
मैंने तुम्हारी खोपड़ी खोल दी
मैंने तुम्हारी खोपड़ी खोल दी
तुम्हारे विचार पढ़ने के लिए
मैं तुम्हारी आँखे चबा गई
तुम्हारी नज़र का स्वाद चखने के लिए
मैंने तुम्हारा ख़ून पिया
तुम्हारी कामनाओं से परिचय के लिए
और इस तरह तुम्हारी सिहरती हुई देह
मेरा भोजन बन गई।
अपने बिस्तर में
अपने बिस्तर में लेटी हुई
मैं तुम्हारे चेहरे को दीवार पर चमकते देखती हूँ
तुम्हारी छायाविहीन देह मुझे डराती है
तुम्हारी उन्मत्त और लयबद्ध आवाजाही
और मैं देखती हूँ
कमरे में फ़र्नीचरों का पीछा करते हुए तुम्हारा-बनता बिगड़ता चेहरा
सिवाय उस बिस्तर के,
जहाँ अपने झूठ के पसीने का लंगर डाले
नाउम्मीदी में
यातना की प्रतीक्षा करती हुई मैं हूँ।
तुम्हारी गाती हुई आँखों में मैं अनावृत्त रहना चाहती हूँ
तुम्हारी गाती हुई आँखों में मैं अनावृत्त रहना चाहती हूँ
मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे आनंद में रोते हुए देखो
मेरे अंदर की ओर मुड़े हुए स्थूल, भारी अंग
तुमको बेईमान बनने को प्रेरित करें
मेरे झुके हुए सिर के नरम बाल उलझ जाएँ
तुम्हारे उद्धत मुड़े हुए नाख़ूनों में
तुम खड़े रहो सीधे, अँधराए और
मेरी टूट कर छटकी हुई देह पर तिरस्कार की भावना में।
मैंने चुरा लिया है मिथकों से उस पीत पक्षी को
मैंने चुरा लिया है मिथकों से उस पीत पक्षी को
जो शैतान के साथ रति में थी
इससे मैं वह कला सीखूँगी जिससे
पुरुष, हरिण और दो डैनों वाले देवदूतों को कामातुर कर सकूँ
यह मेरी प्यास को, मेरे आवरण को, मेरे भ्रम को उधेड़ देगी
यह सो जाएगी
लेकिन इससे, मेरी नींद
छतों के सबसे ऊपर
बुदबुदाती हुईं, घात लगाती हुईं और
ख़ूँख़्वार प्यार करती हुई बिल्लियों से टकराएगी।
मुझे रात बिताने के लिए आमंत्रित करो
मुझे रात बिताने के लिए आमंत्रित करो
अपने मुख के बीचोंबीच
मुझसे नदियों की जवानी के बारे में कहो
मेरी जीभ अपनी काँच-आँखों में घुसने दो
एक धाय की तरह अपनी टाँग मेरी तरफ़ कर दो
तदनंतर, आओ सो जाएँ, मेरे भ्राता के भ्राता
क्योंकि रात बीते कि उसके पहले ही हमारे चुंबन शांत हो जाएँगे।
मुझे प्यार करने दो, तुम्हें
मुझे पसंद है तुम्हारे गाढ़े रक्त का स्वाद
मैंने इसे लंबे समय तक अपने दंतहीन मुँह में चुभलाती हूँ
इसकी गर्मी से मेरा गला जल जाता है
मुझे तुम्हारे पसीने से प्यार है।
आनंद और उन्माद के बहाव में
मुझे अच्छा लगता है तुम्हारी काँख में हाथ फेरना
मुझे प्यार करने दो, तुम्हें।
मुझे अपनी बंद आँखों को चाटने दो
अपनी तीखी जिह्वा से उन्हें फोड़ डालने दो मुझे
और उस रीती जगह में मेरी लार को विजयोन्माद करने दो
अँधरा जाओ तुम मुझसे।
अखिलेश सिंह हिंदी की नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक हैं। उनकी कुछ कविताएँ, अनुवाद और आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। वह इन दिनों दिल्ली में रह रहे हैं। उनसे akhianarchist22@gmail.com पर बात की जा सकती है।
Acche anuvad…
मैं चाहती हूँ, तुम्हारा अकड़े बदन
तू मेरी जाँघों के बीच बरस पड़ो
तुम्हारी निर्लज्ज शरीर
मेरी उपजाऊ प्रदेश में बुत जाएँ।
मैं आपके स्थान पर होता तो अनुवाद ऐसा होता।
बहुत सुंदर कविताएँ…प्रेम में आरक्त डूबी हुई…💐💐🎂🎂
Bahut hi khubsurat
अखिलेश सिंह जी हमेशा से ही बहुत अच्छा लिखते आए हैं I वे जौयस मंसूर से कुछ कम क्रांतिकारी नही I अनुवाद के लिए आपके चुनाव से इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है I अम्मीद है और अधिक पढ़ने को मिलेगा I बेहतरीन I
अद्भुत कविताएंं हैं।