चार्ल्स बुकोवस्की की कविताएँ ::
अनुवाद और प्रस्तुति : रंजना मिश्र

american poet charles bukowski
चार्ल्स बुकोवस्की

एक हाथ की उँगलियों में शेर छाप बीड़ी और दूसरे हाथ में वाइन की बोतल पकड़े कवि कहता है : ‘‘वन मोर बियर एंड आइ विल टेक यू ऑल…’’

सुनने वाले कहकहे लगाते हैं और कवि मुस्कुराता है…

‘‘प्यार क्या है?’’ पूछने पर वह कहता है : ‘‘प्यार? प्यार सुबह की धुंध सरीखा है…’’

”सुबह की धुंध सरीखा??”

‘‘हाँ सुबह की धुंध सरीखा, जो सूरज की पहली किरण पड़ते ही तितर-बितर हो जाती है। ज़िंदगी की सच्चाइयाँ प्यार को इसी धुंध की तरह ग़ायब कर देती हैं।’’

अपने लेखन के बारे कवि की बेबाकी का एक और अंदाज़ : ‘‘ऐसा नही कि मैं बहुत अच्छा हूँ, पर वे इतने बुरे हैं कि मैं अच्छा नज़र आता हूँ।’’

‘‘तुम्हें कई बार मरना होगा, इससे पहले कि तुम जी सको।’’

अपनी अतिशयोक्तियों, ‘अश्लील’ कविताओं, आवारगी और मुश्किलों से भरी ज़िंदगी में भी चार्ल्स बुकोवस्की (16 अगस्त 1920-9 मार्च 1994) मरते दम तक कवि ही रहे, इसके सिवा और कुछ भी नहीं। अपनी कविताओं और गद्य में उन्होंने उसी जीवन को शब्दों में पिरोया जो उन्होंने जिया। बेहिसाब शराबख़ोरी के बावजूद उनकी मेधा की धार में, न ही हास्यबोध में कोई कमी आई। उनके रूखे और उद्दंड से नज़र आने वाले व्यक्तित्व के पीछे एक कवि का बेहद कोमल मन था, जो अपने एकांत की बेहद हिंसक होकर रक्षा करता था :

‘‘कभी-कभी मैं उसे रात में बाहर आने देता हूँ
जब लोग सो चुके होते हैं
मैं कहता हूँ,
मैं जानता हूँ तुम वहाँ हो
इसलिए मत हो
उदास
फिर मैं उसे वापस भीतर रख देता हूँ’’

यहाँ वह उन भावनाओं की बात करते हैं, जिनकी आँखों में आँखें डाल देखने से तथाकथित सभ्य समाज की कई वर्जनाएँ ध्वस्त हो जाएँगी।

कई सालों तक उन्होंने लोगों से दूरी बनाए रखी। यह और बात है कि आर्थिक तंगी की वजह से बाद में उन्हें लगातार पोएट्री रीडिंग सेशंस में जाना पड़ा, जहाँ वह सराहे जाते रहे।

रचनात्मकता के क्षणों को इतने गूढ़ पर साथ ही सरल नज़रिए से देखने की क़ूव्वत में बुकोवस्की अपने समकालीनों से बेहद आगे नज़र आते हैं :

‘‘जैसे कि
ऊपर बिजली के तार पर बैठी चिड़िया
इतनी उदात्त लगती है
जैसे बीथोवन का संगीत
फिर आप इसे भूल जाते हैं’’

यह बात निश्चित है कि बुकोवस्की के जीवन और जहाँ से वह आते थे, को समझे बिना उनकी कविताओं को समझना मुश्किल है, ख़ासकर उन्हें तो वह बिल्कुल निराश कर सकते हैं जो साहित्य में श्लील और अश्लील की कुंठाओं से अभी तक मुक्त नहीं हो पाए हैं और जीवन की विद्रूपताओं को जो उसके सबसे रूखे और ज़मीनी रूप में स्वीकार नहीं सकते। भारतीय कवियों की अगर बात करें तो मराठी के चर्चित कवि नामदेव ढसाल थोड़ा-सा उनके क़रीब पहुँच पाते हैं।

बुकोवस्की को पढ़ते और सुनते हुए आप उन तथाकथित अश्लील शब्दों, जीवन की विसंगतियों, कटुताओं पर भी अनायास ही मुस्कुरा उठते हैं जो उनकी कविता का एक बड़ा हिस्सा हैं। कुछ लोग उन्हीं शब्दों और रूपकों में ठहर जाते हैं और बुकोवस्की उनके हाथ से निकल जाते हैं। कमोबेश यही बात नामदेव ढसाल के साथ भी है, दोनों की कविताओं का विषय हाशिए का जीवन था, पर ढसाल की कविताओं का स्वर कहीं-कहीं क्रुद्ध होकर करुण हो उठता है, जबकि बुकोवस्की की कविताएँ जीवन की विद्रूपताओं की हँसी उड़ाती चलती हैं, अगर और गहरे उतरें तो उनमें दुख भी पूरी सघनता के साथ नज़र आता है। लेकिन बुकोवस्की उस दुख को हावी नहीं होने देते, वह दुखों को अपने शब्दों से बराबर की चोट देते चलते हैं—अपने भीतर बैठे उस कोमल कवि को बचाते हुए जो अंत तक ज़िंदा रहा। नामदेव ढसाल ने अपने क्रोध को लेखन के बाद राजनीति से संबोधित करने की कोशिश की और शायद यहीं वह हार गए। कवि की नियति, प्रारब्ध और मुक्ति अंततः कवि होने में ही है।

american poet Charles Bukowski's Grave
चार्ल्स बुकोवस्की की क़ब्र

दो तरह के नर्क

मैं उसी बार में बैठता था, सात सालों तक, पाँच बजे सुबह से
(दिन वाला बारटेंडर मुझे दो घंटे पहले अंदर आने की इजाज़त दे देता था)
रात के दो बजे तक
कभी-कभी मैं अपने कमरे में वापस जाना भी भूल जाता
जैसे मैं हमेशा से बार स्टूल पर बैठा होऊँ
पैसे नहीं होते पर शराब मिलती रहती
उनके लिए मैं बार का भाँड नहीं था
बार में बैठने वाला एक मूर्ख था
पर कई बार एक मूर्ख को अपने से बेहतर मूर्ख मिल जाते हैं
और वह एक भीड़ भरी जगह थी

दरअसल, मेरा एक नज़रिया था
मैं कुछ असाधारण होने की प्रतीक्षा में था
सालों बर्बाद हुए
पर ऐसा नहीं हुआ
जब तक मैंने ख़ुद ऐसा कुछ नहीं किया
बार के टूटे आईने, सात फ़ुटे दैत्य के साथ मार-पीट
समलिंगी औरत से लगाव
बहुत-सी चीज़ें
जैसे कि दो-दो हाथ करने की क्षमता
उन बहसों के ख़ात्मे में जिन्हें मैने शुरू नहीं किया
वग़ैरह वग़ैरह वग़ैरह

एक दिन मैं उठा
और उस जगह से बाहर आ गया
बस ऐसे ही
फिर मैं अकेले पीने लगा
और उस साथ को ठीक-ठाक पाया

तब, जैसे ईश्वर मेरे मन की शांति से उकता गया हो
मेरे दरवाज़े पर दस्तक शुरू हुई—औरतें
ईश्वर ने मूर्ख के पास औरतें भेजनी शुरू कर दीं
वे एक-एक कर आती रहीं
और जैसे ही एक का साथ ख़त्म होता
ईश्वर तुरंत ही, बिना मुझे मोहलत दिए
दूसरी भेज देता—
वह बिल्कुल चमत्कार की झलक के साथ शुरू होता
बिस्तर भी
और अच्छा बुरे में तब्दील हो जाता
मेरी ग़लती, हाँ, यही बतातीं वे मुझे
पर मुझे याद था
बार के उन सात सालों में
मैं शायद किसी के साथ हमबिस्तर नहीं हुआ था

ईश्वर किसी इंसान को अकेले पीने देना क्यों नहीं चाहता
वह उसकी सरल ताक़त और संगत से जलता है
वह दरवाज़े पर दस्तक देती हुई औरतें भेज देता है

मुझे वे सारे सस्ते होटल याद हैं
वे उन औरतों की तरह ही थे
लकड़ी पर नाज़ुक-सी खट-खट और फिर—
‘ओह मैंने आपके रेडियो पर वह संगीत सुना,
हम पड़ोसी हैं, मैं नीचे 603 में हूँ, पर आपको मैंने कभी हॉल में नहीं देखा…’
‘…अंदर आ जाओ’
लो, फिर तुम्हारे अंडकोष और पवित्रता की लग गई

इंसान को, वे कहते हैं, स्वतंत्रता की कोई ज़रूरत नहीं
और फिर आपको बार याद आता है
जब आप सात फ़ुटे दैत्य के पीछे से उसकी काऊ बॉय टोपी गिरा देते हैं, चिल्लाते हुए :
‘ज़रूर तुम बारह बरस के होने तक अपनी माँ की चूचियाँ चूसते रहे हो’
बार में कोई कहता है—
अरे महाशय, उस पर ध्यान मत दीजिए
‘वह सिरफिरा और चूतिया है, उसे नहीं पता वह क्या कह रहा है’
‘मुझे बिल्कुल पता है कि मैं क्या कह रहा हूँ और मैं यह दुबारा बोलूँगा’
‘ज़रूर तुम बारह…’

वह जीत गया पर तुम मर नहीं गए
उस तरह तो बिल्कुल नहीं जब ईश्वर ने तुम्हारे दरवाज़े पर औरतें भेजनी शुरू की थीं
और तुम चमत्कार की पहली ही झलक में चल पड़े थे…
दूसरी लड़ाई ज़्यादा न्यायोचित थी
वह धीमा था, मूर्ख था और थोड़ा डरा हुआ भी
और यह थोड़ी देर अच्छा चलता रहा था
उन औरतों के साथ की तरह ही
जिन्हें ईश्वर भेजता था
फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि
मैं समझता था औरतों के साथ कोई संभावना है…

एक मुस्कुराहट की याद

हमारे पास सुनहरी मछलियाँ थीं और वे टेबल पर रखे बाउल में गोल-गोल घूमा करतीं
वे हमारे सामने की तस्वीरों वाली खिड़की के बैंगनी परदे के पास थीं
मेरी माँ, बेचारी मछली, हमेशा मुस्कुराती हुई, ख़ुश रहने की कोशिश करती नज़र आती
वह हमेशा मुझसे कहती—ख़ुश रहा करो, हेनरी…

वह सही थी
ख़ुश रहना अच्छा है, अगर तुम रह सको तो

मेरे पिता हफ़्ते में दो-तीन बार उसकी पिटाई किया करते—
अपनी छह फ़ुट दो इंच की काठी की प्रचंडता के साथ, क्योंकि
वह उससे जीत नहीं पाते थे जो उन्हें हराता था
मेरी माँ, बेचारी मछली, बेचारी सुनहरी मछली, बेचारी नाचीज़ मछली, ख़ुश रहने की कोशिश करती—
हफ़्ते में दो-तीन बार पिटती हुई, मुझे ख़ुश रहने को कहती—‘मुस्कुराओ हेनरी, तुम मुस्कुराते क्यों नहीं?’
और फिर वह मुस्कुराते हुए मुझे मुस्कुराना सिखाने की कोशिश करती
वह सबसे उदास मुस्कुराहट थी जो इस धरती पर मैंने देखी
वह नर्क, नर्क, नर्क और सिर्फ़ नर्क, और कुछ भी नहीं थी
एक दिन सारी सुनहरी मछलियाँ मर गईं, सारी की सारी, पाँचों
वे पानी की ऊपरी सतह पर तिरती रहीं, उनकी तली ऊपर थी और आँखें खुली हुईं
जब मेरे पिता घर आए उन्होंने उन्हें बिल्ली के आगे फेंक दिया
रसोई के फ़र्श पर
और हम माँ को मुस्कुराता हुआ देखते रहे।

बधाइयाँ, चिनास्की

सत्तर के क़रीब पहुँचते
अजनबी मुझे चिट्ठियाँ, कार्ड्स और छोटे-मोटे उपहार भेजते हैं
बधाई
वे मुझे कहते हैं
बधाई
मैं जानता हूँ कि उनका मतलब क्या है
जिस तरह मैं जिया
मुझे इससे आधी उम्र में मर जाना चाहिए था
मैंने ख़ुद को ज़लालत के ढेर से ढँक लिया
पागलपन की हद तक ख़ुद की बेक़दरी की
मैं अब भी यहाँ हूँ
इस मशीन पर झुका हुआ
धुएँ से भरे इस कमरे में
बड़े से नीले कचरे के डिब्बे की बाईं तरफ़
जो ख़ाली डिब्बों से भरा हुआ है
डॉक्टरों के पास कोई जवाब नहीं
और ईश्वर है
मौन
बधाइयाँ, मौत
तुम्हारे धीरज के लिए
मैंने तुम्हारी यथासंभव
मदद की
अब एक और कविता
और बालकनी तक की चहलक़दमी
बाहर कितनी सुंदर रात है
अपने घुटन्ने और मोज़े पहने
मैं अपनी बूढ़ी तोंद धीरे से खुजाता हूँ
वहाँ देखो
वहाँ के इर्द-गिर्द देखो
जहाँ अंधकार से अंधकार मिलता है
यह एक बेहूदा पागलपन से भरा
अलग ही खेल है…

कारण और परिणाम

सबसे बेहतर लोग ख़ुद के हाथों मारे जाते हैं
सिर्फ़ दूर जाने के लिए
पीछे रह जाने वाले
कभी पूरी तरह नहीं समझ पाते
क्यों कोई
दूर
जाना चाहेगा
उनसे।

महानता के क़रीब

अपनी ज़िंदगी के किसी मोड़ पर
मैं एक आदमी से मिला
जो सेंट एलिज़ाबेथ में पाउंड से मिलने का
दावा करता था

फिर मैं एक औरत से मिला
जो ए.पी. (एज़रा पाउंड) से मिलने का ही नहीं
उसके साथ सोने का भी दावा करती थी
उसने मुझे ‘कैन्टोस’ के कुछ हिस्से भी दिखाए
जहाँ एज़रा ने संभावित रूप से उसका ज़िक्र किया था

तो यहाँ यह आदमी था और
यह औरत
औरत ने मुझे बताया
पाउंड ने कभी भी
इस आदमी से मुलाक़ात का
ज़िक्र
नहीं किया
और आदमी ने दावा किया कि उस्ताद से
इस औरत का कोई संबंध नहीं रहा
वह एक
ठग थी

चूँकि मैं पाउंड विशेषज्ञ नहीं
मुझे नहीं समझ आया
किसका करूँ
यक़ीन
पर एक बात मैं जानता हूँ
जब तक ज़िंदा होता है
इंसान
बहुत से लोग उससे संबंध का दावा करते हैं
जो वैसा नहीं होता
और जब वह मर जाता है
फिर तो हो जाती है सबकी
मौज

मेरा क़यास है कि पाउंड
न तो उस औरत को जानता था न
इस आदमी को

अगर वह जानता था
इनमें से एक को भी
या दोनों को

यह शर्मनाक बर्बादी थी
पागलख़ाने में
समय की।

एक पल

मैं नहीं जानता यह तुम्हारे लिए सच हो पर मेरे लिए
कभी-कभी यह इतना बुरा होता है
कि और कुछ भी
जैसे कि
ऊपर बिजली के तार पर बैठी चिड़िया
इतनी उदात्त लगती है
जैसे बीथोवन का संगीत
फिर आप इसे भूल जाते हैं

और वापस आ जाते हैं
फिर से।

ब्लू बर्ड1Bluebird : उत्तर अमेरिका में पाई जाने वाली एक नीली चिड़िया जो गाती है और जिसे नीलमी भी कहते हैं।

मेरे दिल में गाने वाली एक नीली चिड़िया है
जो बाहर आना चाहती है
पर मैं उसके साथ सख़्त हूँ
मैं कहता हूँ, वहीं रहो, मैं किसी और को
तुम्हें देखने की इजाज़त नही दूँगा

मेरे दिल में गाने वाली एक नीली चिड़िया है
जो बाहर आना चाहती है
पर मैं उस पर शराब उँड़ेल देता हूँ और
सिगरेट के कश लगाता हूँ
रंडियाँ, शराब परोसने वाले और किराने का हिसाब रखने वाले क्लर्क
कभी नहीं जान पाएँगे
कि वह
भीतर है

मेरे दिल में गाने वाली एक नीली चिड़िया है
जो बाहर आना चाहती है
पर मैं उसके साथ सख़्त हूँ
मैं कहता हूँ
वहीं रहो
तुम मुझे झमेले में डालना चाहती हो?
तुम मेरा काम चौपट करना चाहती हो?
यूरोप में मेरी किताबों की बिक्री फूँक में उड़ा देना चाहती हो?

मेरे दिल में गाने वाली एक नीली चिड़िया है
जो बाहर आना चाहती है
पर मैं बहुत चालाक हूँ
कभी-कभी मैं उसे रात में बाहर आने देता हूँ
जब लोग सो चुके होते हैं
मैं कहता हूँ,
मैं जानता हूँ तुम वहाँ हो
इसलिए मत हो
उदास
फिर मैं उसे वापस भीतर रख देता हूँ
तब भी वह थोड़ा-सा गाती रहती है मेरे भीतर
मैंने नहीं दिया है उसे
पूरी तरह मरने
हम ऐसे ही सो जाते हैं, अपने गुप्त समझौते के साथ
और कभी-कभी अच्छा है
किसी इंसान को रोने देना,
पर मैं नहीं रोता

क्या तुम
रोते हो?

उस रंडी के लिए जो मेरी कविताएँ ले गई

कुछ लोग कहते हैं कि हमें व्यक्तिगत पछतावे दूर रखने चाहिए
कविता से
और, कोई कारण होगा इसका
पर हे भगवान!
बारह कविताएँ चली गईं, और मैने प्रतियाँ भी नहीं रखीं इनकी
तुम्हारे पास मेरी पेंटिंग्स भी हैं
सबसे बेहतर पेंटिंग्स, यह दम घोंटने वाला है
क्या तुम मुझे औरों की तरह ही बर्बाद कर देना चाहती थीं?
तुम मेरे पैसे क्यों नहीं ले गईं? जो वे अक्सर निकाल ले जाते हैं
सोते हुए बीमार पियक्क्ड़ के कोने में पड़े पतलून से
अगली बार मेरा बायाँ हाथ ले जाना या पचास रुपए
पर मेरी कविताएँ नहीं
मैं कोई शेक्सपियर नहीं
किसी समय वे नहीं होंगे
गूढ़ या अन्यथा
रुपया, रंडियाँ और शराबी तब भी होंगे
आख़िरी बम के गिरने तक
और जैसा कि
ईश्वर ने कहा,
अपने पैर सिकोड़ते हुए
‘देखता हूँ कवि तो मैंने बेशुमार बनाए
पर कविता
उतनी नहीं…’

***

यहाँ प्रस्तुत चार्ल्स बुकोवस्की की कविताएँ हिंदी अनुवाद के लिए bukowski.net से चुनी गई हैं। इस प्रस्तुति में प्रयुक्त तस्वीरें गूगल से साभार हैं। रंजना मिश्र हिंदी कवयित्री और अनुवादक हैं। वह पुणे में रहती हैं। उनसे ranjanamisra4@gmail.com पर बात की जा सकती है। ‘सदानीरा’ पर प्रकाशित उनकी कविताओं के लिए यहाँ देखें :

पुरानी तस्वीरों में

अनुवादकीय में चार्ल्स बुकोवस्की से संबंधित जिस प्रसंग का ज़िक्र है, उसके लिए यहाँ देखें :

1 Comments

  1. Sorabh saini अप्रैल 10, 2019 at 2:52 अपराह्न

    जिंदगी और शायरी के खुलेपन संदर्भ में आप जौन एलिया(पाकिस्तान) को इनके मुकाबले कैसे देखते है ।।

    Reply

प्रतिक्रिया दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *