मिशियो माडो की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयन वाजपेयी

मिशियो माडो का एक रेखांकन │ सौजन्य : iromegane

मैं कई बार चकित होता हूँ कि क्यों

कई बार मैं चकित हो जाता हूँ कि
ऐसा क्यों नहीं है

युग-युगांतर से
अरबों-खरबों सालों से
हम धूप में रहते आए हैं
जो इतनी निर्मल है
हवा में साँस लेते आए हैं
जो इतनी निर्मल है
पानी पीते आए हैं
जो इतना निर्मल है

तब क्यों
आख़िर क्यों
हम और
काम हमारे
पहुँच नहीं पाते
कैसे भी
निर्मलता तक?

पानी गाता है

नदी में बहते बहते
पानी गाता है

उस दिन के विराट वितान को जब वह सागर हो जाएगा
उन दिनों के विराट वितान को जब वह सागर था

उस दिन के विश्राम को जब वह मेघ हो जाएगा
उन दिनों के विश्राम को जब वह मेघ था

उस दिन के मूसलाधार को जब वह बरसात हो जाएगा
उन दिनों के मूसलाधार को जब वह बरसात था

उस दिन की उल्लसित दूरियों को जब वह इंद्रधनुष हो जाएगा
उन दिनों की उल्लसित दूरियों को जब वह इंद्रधनुष था

उस दिन के अटूट शीतल मौन को जब वह बर्फ़ हो जाएगा
उन दिनों के अटूट शीतल मौन को जब वह बर्फ़ था

नदी में बहते-बहते
पानी गाता है
पानी गाता है

उस उद्दाम शक्ति को जो नदी होकर उसके पास है
उस पानी को जो चिरंतन है


मिशियो माडो (1909-2014) समादृत जापानी कवि हैं। यहाँ प्रस्तुत उनकी कविताएँ ‘रज़ा पुस्तक माला’ के अंतर्गत संभावना प्रकाशन से प्रकाशित ‘सूखी नदी पर ख़ाली नाव’ (विश्व कविता पर एकाग्र पत्रिका ‘तनाव’ में प्रकाशित काव्यानुवादों का तीसरा खंड, संपादक : वंशी माहेश्वरी, प्रथम संस्करण : 2020) से साभार हैं। उदयन वाजपेयी से परिचय के लिए यहाँ देखें : कीता करूईज़ावा की डायरी

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