हब्बा ख़ातून की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : शाहिद अंसारी
मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए
मेरे दोस्त, ये जवानी बेकार है,
मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए।
हम क्यों पैदा हुए थे?
हम क्यों नहीं मरे?
ये इतने सुंदर नाम क्यों?
हमें फ़ैसले का दिन का इंतज़ार करना चाहिए।
और मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए।
दुनिया की रीत एक बेमानी आँधी है
मैंने एक मुश्किल तक़दीर पाई
और मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए।
बहुत-सी बुलबुलें चमन में आईं
और उन्होंने अपने खेल खेले,
फूलों ने बाग़ छोड़ दिए
ताकि बुलबुलों को जगह मिले
और मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए।
मेहरबानी करके मुझे उस दिन से बचाना
जिस दिन दोज़ख़ की आग जलेगी
हब्बा ख़ातून तुम्हें बुलाएगी
और मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए।
मैं घर से खेलने निकली
मैं घर से खेलने निकली और उसमें खो गई,
जब तक कि दिन पश्चिम में डूब गया।
मैं एक ऊँचे घराने से आती हूँ,
जिसने मुझे दिया सम्मान और नाम,
कई सारे आशिक़ मेरे ऊपर लट्टू हुए,
जब तक कि दिन पश्चिम में डूब गया।
जब तक मैं घर थी, मैं दुनिया की नज़रों से दूर थी,
एक बार जब मैं बाहर निकली, मेरा नाम सबकी ज़बान पर था,
साधुओं ने मुझे देखने की चाहत में,
अपनी सधुक्कड़ी जंगल में छोड़ दी।
जब तक मेरी दुकान सामान से भरी थी,
तब तक पूरी दुनिया उसे देखने को बेताब थी,
जैसे ही मेरे अनमोल धरोहर सबके सामने आई,
उसका भाव गिर गया,
जब तक कि दिन पश्चिम में डूब गया।
मैं तड़पती हूँ उसके लिए
मेरा प्यार
जिसने मेरे रोम-रोम को
सुलगा रखा है।
उसने दीवार के ऊपर से
मुझ पर एक नज़र डाली,
मैं पहनाऊँगी उसे
शहतोश की शाल,
किस बात पर वह रूठा है?
मैं बहुत देर से तड़प रही हूँ।
उसने दरवाज़े से झाँका,
भला किसने उसे मेरे घर का रास्ता दिखाया,
मेरे शरीर का हर हिस्सा मचल रहा है,
मैं बहुत देर से तड़प रही हूँ।
हब्बा ख़ातून (1554-1609) का जन्म कश्मीर में हुआ। वह एक प्रसिद्ध कश्मीरी कवयित्री हैं। बचपन में उनका नाम जून था। बाद में उनकी शादी युसुफ़ शाह चक से हुई जो कश्मीर के आख़िरी कश्मीरी राजा थे। युसुफ़ शाह से शादी के बाद उनका नाम हब्बा ख़ातून पड़ा। यहाँ प्रस्तुत उनकी कविताएँ एस. एल. साढ़ू कृत अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधृत हैं। शाहिद अंसारी दिल्ली में रहते हैं और उनके अनुवाद में कहीं कुछ प्रकाशित होने का यह प्राथमिक अवसर है। उनसे mskansari@gmail.com पर बात की जा सकती है।