नारायण सुर्वे की कविताएँ ::
मराठी से अनुवाद : प्रकाश भातम्ब्रेकर

नारायण सुर्वे

छलांग

बेचते-बेचते उन्होंने सूरज को भी बाज़ार दिखाया!
घर-बार फूँक कर निकले लोग दंग रह गए
ऐसे समय में भला स्वस्थ बैठे रहें?

गाहे-बगाहे उन्होंने हाथ को भी बाज़ार दिखाया!
हाथ बाँधकर भला कैसे बैठे रहें?

इसलिए मैं उठ खड़ा हुआ
बस्ती से बाहर निकला
कारख़ानों के कानों में फुसफुसाया,
‘अब हमें कूच कर देना चाहिए!’

काश

एक ख़ूबसूरत घरौंदा बसा रहता गुलमोहर तले
तो कंगनों की खनक से सराबोर रहता समा
हर रोज़ अठखेलियाँ करता चंद्रमा खिड़की में
नक्षत्रों के पार की दुनिया उतर आती आह!

भरपेट आँखों से देख पाते चाँद को काश!
तो हम भी किसी को याद कर लेते।

इतना ज़रूर करो

जब अस्तित्व के अवकाश में न रहूँ मैं
तब इतना भर ज़रूर करो
बेखटके आँखें पोंछ लो
अलबत्ता दो-चार दिन जी मचलेगा
अदबदाएगा ज़रूर!
उफनती सिसकियों को क़ाबू करो
उमंगों पर नज़र रखो,
हरे नए कंगन पहन लो
चिर वेदना को न सहलाओ यूँ ही!
बेशक! बेशक अपनी पसंद का
बसा लो एक नया घर
मुझे याद कर सको,
या न सको तो भी!

कुछ पंक्तियाँ

अभी भी संगदिल क़साई
बख़्तरबंद गाड़ियों पर सवार हैं
संगीनें तानकर मुझे
पँवारा गाने को कहते हैं
वाणी उन्हें बेचूँ अगर
तो अपराधी कहलाऊँगा।

ब्यौंती हुई ज़िंदगी

ब्यौंती हुई ज़िंदगी, जन्म लिया
तो उजाला भी ब्यौंता हुआ
बोलना भी ब्यौंता हुआ। कुनमुनाते हुए
ब्यौंते रास्ते पर ही चला; लौट आया
ब्यौंते कमरे में; ब्यौंत में ही जी लिया
बताते हैं! ब्यौंते रास्ते पर चलो तो
जन्नत मिलेगी। ब्यौंती हुई चौहद्दी में
थू… थू:

वर्षाकाल

तुम्हारी मतवाली लरज-गरज
हाँक लाती है सुर्ख़रू, चितकबरे
लबालब रेवड़ को
ताड़न समय कड़कते-कौंधते हो
उगाहते हो विद्युत गिलोटिन
भंग-दुभंग पथ-वीथी
आँका-बाँका सैलाब लीलता है नाबदानों को
रुँधे जल-प्लावन से गिरे रास्ते, सदन
और ज्वार जलधि में।
सतह पर आ जाता है कूड़ा-कर्कट
और मेरी आँखों में आग की लपट
अब इस रास्ते
अपने दो नन्हे-मुन्नों के साथ
भला कैसे गुज़र सकेगी?

उठो

ज़िंदगी से मुँह मोड़ लूँ तो जाऊँ कहाँ?
आस्मानी आक़ा से तो पुरानी दुश्मनी थी
अपने तईं बंधमुक्त छलांग लगाऊँ;
उतना ज़मीर कहाँ?
पूरे रास्ते क़दम-क़दम पर पहरे लगे थे।

शोर मचाकर पा लूँ ऐसी जन्नत ही कहाँ?
जिसके लिए कलेजा तार-तार हो रहा होता।
उठो! कोने में रखी तेग ढूँढ़ निकालो,
उस पर मैंने कभी अपनी तक़दीर को तौला था।

सावधान

वर्गाक्षरो! सावधान, कड़े पहरे लगे हैं
तुम्हारे दिए चाँद-सितारे
साल रहे हैं उनकी आँखों में
सावधान हे आशय! सावधान मेरे आक़ा!
तुम्हारे बख़्शे सत्य से औंधा गए हैं उनके उजाले।

सावधान हे मेरे जिगर! सदियों से कंगाल हो
सुना है, वे साँकल ला रहे हैं;
सावधान मेरी सखी! सावधान नन्हे-मुन्नों,
फटीचरी में भी मधुकोष सँजोए तुमने।

नारायण सुर्वे (1926-2010) मराठी कविता के समादृत हस्ताक्षर हैं। प्रकाश भातम्ब्रेकर सम्मानित मराठी लेखक और अनुवादक हैं। इस प्रस्तुति से पूर्व वह ‘सदानीरा’ के लिए संदीप शिवाजीराव जगदाले की कविताओं का अनुवाद कर चुके हैं : कांधे पर ढो रहा हूँ मैं लाश अपने गाँव की

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