सिसिलिया कार्व्हालो की कविताएँ ::
मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा

सिसिलिया कार्व्हालो

यह राह जाती है सिर्फ़ मंदिर तक ही

यह राह जाती है मंदिर तक
पर ज़रूरी नहीं कि वह ले जाए तुम्हें
स्वर्ग की तरफ़

देखिए तो सही
रास्ते पर पड़ा फ़रिश्ते का सुनहरा जूता
बिखरा-सा फैला रूपहला चोग़ा
नोचकर उखाड़ी हुई उसके बालों की लट
बाघ के पंजों के निशान दिखाई देते हैं रास्ते पर
हिरण के पग छपे हुए दीखते हैं न… छटपटाते हुए…
भाग चुके हैं बाघ जंगल में सकुशल
फ़रिश्तों की नरम-नरम देह लेकर

रास्ते के किनारे
लहलहाता इमली का बौर
किस तरह से कुम्हला गया है
मधुमालती ने डाल दी हैं नीचे गर्दनें
भाग चुकी है फूल-पत्तियों से गंध
हहराती हवा के संग

धूल के कण भी पड़े हैं चुपचाप
बैठे हैं चिपक कर
माँ से लिपटे सहमे हुए बच्चे की मानिंद

रास्ते के किनारे की मूर्तियों के गले से
निकली ये दीप-मालाएँ
छूना चाहती हैं आसमान के तारों को

मूर्ति के पाँव बनते जा रहे हैं ढेर
इसका भान भी कहाँ है मूर्ति को
हर दिन की आवाजाही से
गढ़ चुकी है यह मंदिर की ओर निकलती राह

मंदिर की ओर ले जाने वाली यह राह
ज़रूरी नहीं कि ले जाए तुम्हें
स्वर्ग की तरफ़।

बात

किस सूरज की बात कर रहे हैं आप?
रास्ते अभी भी पटे हुए हैं अँधियारे से
रास्ते-रास्ते पर बसते हुए ये अंगारे
टिसटिसा रहे हैं
भीतर ही भीतर धधक रहे हैं

कितनी बार भड़की ज्वालाएँ
कई-कई हो गए स्वाहा
पर ज़रा-सा भी सुराख़
नहीं हुआ अँधेरे में
फिर किस सूरज की बात कर रहें हैं आप?

कितनी बरसी बारिश की झड़ियाँ
कितनी बार छाया कुहासा
पतझड़ का यह ऐसा फैलारा
आसमान का इस धरा पर का
फिर भी नहीं आई एकाध भी तो ख़राश
किस सूरज की बात कर रहें हैं फिर?

लहुलूहान प्रेतों का ढेर होती है रात
स्याह पड़ चुके होते हैं दिशाओं के भी गात
लज्जित-सा एक प्रकाशमान बिंदु
छुपकर बैठा होता है
झाँकता है
हट जाए झुलसा-काला परदा
ख़ून के थक्कों के दाग़ झटक कर
उगता है सूरज ख़ुद को ही लटका कर

किस सूरज की कर रहे हैं बात आप?

बाढ़ की कविताएँ

एक

पहले पानी की तरह
पैसा घर में आया
फिर पानी ही घर में आ गया

दो

माँ के चेहरे पर हँसी खिले
इसलिए लहू का पानी किया
घर खड़ा किया
मेरे घर में
पानी ने घर किया
तब
माँ की विषण्ण हँसी
घर भर में फैले
पानी को भी
लहू बना गई

तीन

उसकी देह पर सिलवटें
जमकर बैठी हुईं
हरहराती बाढ़ की तरंगें
जैसे उसकी देह से लिपटी हुईं

चार

बाढ़ ने घेरा शहर को
काल-सर्प ने किया दंश
नहीं बचा वंश

बाँध टूटा है

काले ठस्स बादलों से अटा हुआ है आसमान
या यह कोई धुआँ है उठा हुआ
धरती पर के जंगलों के जलने का?
यह कौन बरसा रहा है धुआँधार
बारिश…

धरती की देह नोचने वाले भेड़िए कहाँ गए?
जंगल की मुश्कें बाँधने वाले ये भेड़िए गए कहाँ?

फटे आसमान को बस में करेगा कौन?
वे किस घर में बैठे हैं छुपकर घात लगाए?
किस पेड़ के आले में वे छुपे हुए हैं?

आसमान का बाँध फट पड़ा है
धरती को बाँध डाल सकें
नहीं है पर्याप्त पेड़ों के हाथ
इंसान ने ही इंसान को
फँसाया है यूँ हाथों-हाथ!

घर के पिंजड़े में

घर के पिंजड़े में
स्वयं को क़ैद कर चुके ये पशु
रास्तों पर आकर कुहराम मचाते हैं
रक्त से सने मुँह उठाए
भागते रहते हैं इधर-उधर…

अपने बचपन में ही इन्होंने
दुलराया हुआ होता है
एक जंगल…
बाघ, शेर, हाथी, सियार, डायनासोर
सभी पशु जमे हुए होते हैं ढीठता से

ये अपने घरों में भी
उपजाते हैं जंगल ही…

इस जंगल में नहीं पहुँचती है
सूरज की कोई किरण जड़ों तक
नहीं होती है किसी तरह की कोई नमी
फिर भी घना होता जाता है जंगल…
बढ़ती रहती है पशुओं की पैदावार
घूमते हैं जो रास्तों पर
ख़ून की प्यास मिटाने की ख़ातिर!

सिसिलिया कार्व्हालो (जन्म : 1956) सुप्रसिद्ध मराठी कवयित्री हैं। उनकी ‘उन्मेष’, ‘अंतर्यामी’ और ‘पंख’ शीर्षक पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनसे drceciliacar@gmail.com पर बात की जा सकती है। सुनीता डागा मराठी-हिंदी लेखिका-अनुवादक हैं। उन्होंने समकालीन मराठी स्त्री कविता पर एकाग्र ‘सदानीरा’ के 22वें अंक के लिए मराठी की 18 प्रमुख कवयित्रियों की कविताओं को हिंदी में एक जिल्द में संकलित और अनूदित किया है। यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 22वें अंक में पूर्व-प्रकाशित।

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