यानुष षुबेर की कविताएं ::
अनुवाद और प्रस्तुति : उदय शंकर

10 दिसंबर 1948 को जन्मे यानुष षुबेर की कवि-पहचान या कविता-संसार के भीतर घुसपैठ बहुत बाद में, यानी 1995 में हुई. यानुष दक्षिणी पोलैंड के एक छोटे-से सुंदर शहर सनोक में पैदा हुए, और वहीं रहते हुए, कविता लिखने की शुरुआत बहुत पहले कर चुके थे. लेकिन तब संकोची भाव से वह अपनी कविताएं सिर्फ दोस्तों को सुना दिया करते थे. इन्हीं सुनने वालों में नोबेल विजेता चेस्वाव मिवोष भी हुआ करते थे. उन्होंने ही, शायद, पहले पहल पोलैंड से बाहर इनकी कविताओं के अनुवाद को संभव बनाया. आज की तारीख में यानुष षुबेर पोलैंड के प्रतिनिधि कवि हैं, फिर भी फ्रीलांस कवि हैं. उनकी कविताओं के पाठ, जगह-जगह पोलैंड में आम हो चुके हैं, लोग उनकी कविताओं से प्रेरित हो पेंटिंग करते हैं. कई पुरस्कारों और बीसियों अन्य भाषाओं में अनुवाद के धनी हैं. मिवोष और ज़बिग्नियव हर्बर्त की काव्य-परंपरा का हिस्सा होते हुए भी उनसे एक स्तर पर अलगाव के कवि हैं यानुष षुबेर. इनके कवि-व्यक्तित्व का अंदाज इस बात से ही लगाया जा सकता है कि प्रसिद्धि के इस चरम पर पहुंच कर भी वह राजधानी की ओर नहीं लपके. सनोक शहर का लगाव ही ऐसा है कि विश्व-प्रसिद्ध चित्रकार ज़्जिसुअव बेकशिंस्कि भी वॉरसॉ जाने के बावजूद अपना सब कुछ सनोक संग्रहालय को समर्पित कर ही इस दुनिया से विदा हुए.

यानुष षुबेर

जैम फेंटते एक बच्चे के बारे में

कढ़ाही में प्लम्प की चाशनी के
बकवास-से बुलबुले फूटते हैं,
तब, जैम को फेंटने और,
मीठे रवे को उड़ेलने के लिए
लकड़ी के चम्मच ही होते हैं.
इस पूरी प्रक्रिया से नावाकिफ लोगों के लिए
बारीकियों की यादों में ही मुक्ति संभव है.

क्या? उसके बाद क्या? क्या मैं इसके बारे में जानता था?

हीरे-से ठोस यथार्थ को
अमूर्त भविष्य होना था
और यह सब कुछ जो हुआ
वे सिर्फ संकेत-से प्रतीत होते हैं.
अजीब भोलापन है.
अब जाकर पता चला कि असावधानी एक अक्षम्य पाप है
और समय के हर कण के पास एक अंतिम आयाम.

सब यहीं

घुर्राने और थुर्र-थुर्र की आवाजों के बीच,
लगभग काली पड़ चुकी कीचड़ में,
पच्च-पच्च करते रबर के जूते पहने,
सूअरबाड़े की धूसर इमारत के अंदर,
उन्होंने कड़ी मेहनत की,
मेढकों की प्रचुरता के दौर के तौर पर
आई उस गीली गर्मी में,
बौने चीड़ और जुनिपरों के इस गरीब इलाके के
इस बाड़े में,
जो कि सचमुच किसी कायदे का नहीं था,
उनका यहां काम करना एक संयोग ही था,
आंशिक रूप से भीगे ढलान के किनारे पर स्थित,
गीली घास का यह चारागाह,
जहां सप्ताह में एक या दो बार
सीमावर्ती गश्तीदल
हेलीकॉप्टरों के पेटू फतिंगों के भीतर उड़ते थे,
सब कुछ यहीं था,
खालीपन के एहसास के बावजूद वे मीलों तक खुद को खींच रहे थे,
बंजर जमीन, कोई और नहीं, पूरी तरह से खुद की बंजरता भर गया था,
और जब तुम उस कामचलाऊ शराबघर की छत के ऊपर
बिना इस बात की परवाह किए कि तुम्हें कुछ सिद्ध करना है,
बियर पी रहे होते थे
तब सब कुछ यहीं और इन्हीं में स्थित होता था
और जो कभी भी, किन्हीं रूपक-प्रतीकों के जंजाल में नहीं फंसता था.

धातुई स्वाद

इस मौसम में
अंतहीन परेशानी का सबब बनती थी हवा,
नदियां काली हो जाती थीं
बर्फ के कटाव के सहारे बने
छिछले रास्ते चमकते थे.
स्मृति को सहलाना
अखरोट के छिलकों में
अखरोट ढूंढ़ना था
उसे प्यार चाहिए था.
किसके लिए प्यार? किसलिए प्यार?
कुत्तानुमा एक सुनहरा पट्टा, एक बोतल बियर या पुराने दिनों के अखबार का एक रद्दी टुकड़ा.
मल्लाह की झोपड़ी में लगी एक कुंडी ही थी,
कि एक कुत्ता गुर्राता था.
थोड़ी देर के लिए ही सही
उसकी जिह्वा ने
धातुई स्वाद के उत्सव का मर्म चखा.
उसका पेट बढ़कर कंठ की ओर चला जा रहा था,
लेकिन वहां कोई कंठ क्या, कुछ भी नहीं बचा था.

टिरेसियास1ग्रीक मिथक का एक नेत्रहीन संत/पैगम्बर, जो भविष्य की सटीक सूचनाएं देता था और सात साल तक औरत के शरीर को धारण किए रहा था. के सबक

एक

भविष्यविद् ओक का वृक्ष, पैगम्बरी प्याले,
हमारे लिए किस तरह के भविष्य को उवाचते हैं
कंप्यूटर किस तरह की कुंडलियों को रचते हैं
और किसे अंत तक पढ़ने की इजाजत देते हैं?
किस महाद्वीप पर, किस द्वीप से किस शहर तक,
अंगारों से बचाते हुए डॉल्फिन हमें ले जाती हैं?

दो

रेतघड़ी से समय मापा गया.
कंप्यूटर पर एक प्रकाश-बिंदु फुदकता है.
तुम कौन थे?
एक मुनीम या एक दलाल.
मुझे याद नहीं.
आदमी होने की तमीज के कारण ही,
औरत होने की लालसा में मैंने सर्प का स्पर्श किया,
और तुम शक्की खलिहरों ने मेरी खिल्ली उड़ाई.

तीन

सुरक्षित यात्रा के लिए मुझे एक ऑबोल2प्राचीन ग्रीक की मुद्रा. दो.
स्तोत्र के ठप्पे से सजे क्षोमवस्र के एक मुखौटे का प्रबंध करो.
यात्री के स्वस्थ होने की सूचना मेडिकल कार्ड पर दर्ज करो.
बारूदी हमले से तबाह बगीचे को सूंघने के लिए,
इलेक्ट्रॉनिक कुत्तों की जंजीरे खोल दो.
मैं, एक नेत्रहीन, चेहरे पर उग आई महान तुच्छताओं का दर्शन करता रहूंगा.

टिरेसियास की विदाई

प्रायश्चित से परे हो चुके पाप ही
कविता की जननी हैं.
तभी तो तुमने
अंधे होने के बावजूद
मुझे इस पृथ्वी पर भेजा.
बीहड़ भरे रास्ते मुझे
धरती पर मौजूद
आभासी गणराज्यों, उदासीन साम्राज्यों की ओर ले जाते हैं.
एक अन्य थेबान3ग्रीक मिथक के प्रसिद्ध शहर थेबेस का वासी. मजदूरिन की प्रतिकृति बनी
वह लड़की सीढ़ियों पर इंतजार कर रही है.
सिर्फ लाउडस्पीकरों से झरता है,
कमानियों का कंपन,
वह भी आग्रहपूर्वक.
जिंदगी अब भी बेरंग होती है,
और एक दिन खत्म हो जाती है,
माली के थके कुत्ते की तरह
मुझमें अब यह इच्छा नहीं बची कि
नाशपाती या अनार तक लपकूं
मैं खुद, या कोई और
कविता की सेवा में संलग्न है,
मैं इस बात का खंडन करता हूं.

मुर्गे की बांग

मौसम के बदलते अंदाज को
सूचित करती है मुर्गे की बांग,
गहरे नीले गगन के तले
चिपचिपी दरारों के संग
लिजलिजे मीठे गोंद की बेतरतीब पपड़ियों से लैस
राख से लिपे गहरे ही रंग के
अंडकोष-से आलूबुखारे.

सालों गुजर गए
जीभ अब भी
खुरदुरे गुठली को खुजलाने के लिए प्रयासरत है
यह अब भी मेरे तलुओं को घायल करते हुए
विश्वास दिलाता है कि मौसम के बदलाव को
सूचित करते मुर्गे की बांग आने तक
मैं इसकी रसीली तहों तक पहुंच ही जाऊंगा.

***

प्रारंभिक तीन कविताएं (‘जैम फेंटते बच्चे के बारे में’, ‘सब यहीं’ और ‘धातुई स्वाद’), इसके बाद की दो कविताएं (‘टिरेसियास के सबक’ और ‘टिरेसियास की विदाई’) और ‘मुर्गे की बांग’ क्रमशः ह्र्निव्यीच यार्व्रा, अलीशा वालेस और चेस्वाव मिवोष के अंग्रेजी अनुवाद पर आधृत हैं. यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 18वें अंक में पूर्व-प्रकाशित. उदय शंकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़े हुए हैं. हिंदी के शोधार्थी और आलोचक हैं. कथा-आलोचक सुरेंद्र चौधरी की रचनाओं को तीन जिल्दों में संपादित किया है. उनसे udayshankar151@gmail.com पर बात की जा सकती है.

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