कैरोल एन डफ़ी की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुशीलनाथ कुमार
अनुवाद अंतत: भाषा का ही होता है। वाल्मीकि, कालिदास, भवभूति, सूरदास या गुरु गोविंद सिंह की कविताओं के अनुवाद जिन भी भाषाओं में होते हैं; वे कविताएँ वहीं पर सुंदर और हृदयग्राही लगने लगती हैं। ऐसा क्यों होता होगा? ऐसा इसलिए है कि ये सभी रचनाकार जीवन से ओत-प्रोत हैं। केवल भाषा के बल पर दुनिया का कोई बेहतर साहित्य नहीं सृजित हुआ है; बल्कि वह मनुष्य के प्रेम, घृणा, भय, मृत्यु, बहादुरी और कायरता के मेल-जोल से लिखा जाता रहा है। जहाँ तक कैरोल एन डफ़ी की बात है, उनकी कविता का केंद्रीय तत्त्व प्रेम है। उन्हें पढ़ते समय बरबस लगता है : वाह! क्या कविता है… और जब अनुवाद करने बैठिए तो उनके प्रेमातुर शब्द पकड़ में नहीं आते हैं और कहना पड़ता है : क्या मुश्किल कविता लिखी है कि अनुवाद नहीं हो पा रहा है। इस कठिन काम को सुशीलनाथ कुमार ने किया है। कहना ही होगा कि उनका यह काम आग की लौ से गुज़रने जैसा है, क्योंकि इसके लिए एक मज़बूत दिल और समझदार दिमाग़ चाहिए।
— रमाशंकर सिंह
परवाह करने वाले
उन रहस्यमय मशीनों में घूमते हुए
मुझे तुम्हारी फ़िक्र होती है।
हर रोज़ आसमान से गिरते हैं लोग, बेजान से।
बार-बार साँस लेना और छोड़ना आसान है
सुरक्षा के एहसास से पूर्ण, घर जैसा सुरक्षित।
घर के फ्रिज में तुम्हारी फ़ोटो है,
बिजली के आते ही मुस्कराने लगती है।
खुली जगहों पर धूप में झुलसते लोग
नम दरख़्तों की नरम छाँव में सुकून पाते हैं
सुरक्षा के एहसास से पूर्ण, घर जैसा सुरक्षित।
आसमान में वो जो छेद है
उसके नीचे बालू पर मत सोना।
बहुत से लोगों को कुतरकर फेंक दिया गया है।
सागरों के पार से आती हुई तुम्हारी आवाज़,
उसे मेरे पास आने दो।
सुरक्षा के एहसास से पूर्ण,
घर जैसा सुरक्षित।
प्यार से वंचित और बेघर लोग
ग़ुस्से में भटक रहे हैं।
जिन्हें अँधेरा पसंद है
वे शॉर्टकट की चाह में जीवन गँवा देते हैं।
उजाले में कोई तेज़-तेज़ चलता हुआ
मेरी ओर आ रहा है
सुरक्षा के एहसास से पूर्ण,
घर जैसा सुरक्षित।
तैल रंगों में कविता
मैंने जो भी सीखा हवा से सीखा,
और प्रकाश की अनंत विविधताओं से।
मौन रंग बादलों की आकृतियों की भाँति
धीरे-धीरे बदलते रहते हैं,
जब तक स्याह बादलों में दूधिया चमक
मेरी आँखों में चकाचौंध न भर दे।
यहाँ किसी सागर तट पर आकृतियाँ निरंतर बदल रही हैं
लहरों के पृथ्वी को प्रेम करने से पहले
मुझे हिचकिचाहट हो रही है
क्या यह वही है जो मैं देख रही हूँ
नहीं, यह तो सिर्फ़ देखना है
मेरा यक़ीन मानिए, छायाएँ ब्रश की कूँची की तरह आवाज़ किए बिना पेड़ों से गिरती हैं। एक चित्रकार तट पर खड़े होकर होनी पर संदेह कर रहा है, बहुत नीचे आलिंगनबद्ध सागर और आकाश एक हो गए हैं।
नदी
नदी के मोड़ों पर बदल जाती है भाषा, कलकल ध्वनि बदल जाती है, और बदल जाता है नदी का नाम। पानी सीमाओं को पार करता जाता है, ढाल लेता है ख़ुद को नए परिवेश में, पर शब्द लड़खड़ाकर गिर जाते हैं, और वहीं किसी दरख़्त पर रह जाते हैं, साक्ष्य बनकर।
नई भाषा में, पेड़ पर लगा बुरांश एक संकेत है। एक चिड़िया जिसे पहले कभी नहीं देखा, शाख़ पर बैठी गा रही है। नदी के पास की पगडंडी पर एक औरत, चिड़िया जैसी अबूझ आवाज़ निकालती है, जैसे उसका गीत समझ रही है, फिर उसका नाम पूछती है। लाल फूल को तोड़ने के लिए वह घुटनों के बल झुकती है, इसे सँभालकर वह किसी किताब के पन्नों में छुपा देगी।
अगर तुम वहाँ उसके साथ हो, पानी में अपने हाथों को इधर-इधर हिलाते, जहाँ नीली और स्लेटी मछलियाँ पत्थरों पर ऐसे फिसल रही हैं, जैसे बातों के अर्थ गुम होते हैं, इस सबके मायने तुम्हारे लिए क्या होंगे? शब्दों की वजह से उसे ऐसा लग रहा है, जैसे वह किसी और दुनिया में है, बहुत ही गंभीर और सहज; वह निरर्थक ढंग से ज़ोर-ज़ोर से गाते हुए मुस्कुराने लगती है।
अगर ऐसा हो जाए कि तुम सच में वहाँ हो तो समुद्र के क़रीब जहाँ नदी सागर से मिलती है, किसी काग़ज़ के टुकड़े या रेत पर तुम क्या लिखोगे?
अभिलाषा
तुम्हारी देह से दबी मैं जो धीमी-धीमी आवाज़ें निकालती हूँ, उनका कोई अर्थ नहीं हैं। वे मुझे एक जानवर बना देती हैं, जो उन स्वरों को सीख रही है जिनसे मैं परिचित नहीं
मैं ये सब करते हुए सुनती हूँ
वे स्वर तुम्हारे कंधों पर से होते हुए,
छत से चिपक जाते हैं।
आ…ई…आई…ओह…ऊ…
क्या ये आवाज़ें तुम्हें आश्चर्यचकित करती हैं
जो तुम्हारी नग्नता से उपजे विचित्र प्रेत
मेरे ऊपर से गुज़रते हुए करते हैं,
एक जाल में कितनी रोशनी पकड़ी जा सकती है?
किसे परवाह है। कभी-कभी सदिच्छा से निकली आवाज़ बुरी बन जाती है। यह कहना कि मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ, बहुत ही मुश्किल और कठिन और सच होता है; जब तुम मेरे साथ ये सब कुछ करते हो।
शब्द और लंबी रातें
इस लंबी रात और हम दोनों के बीच की दूरी के किसी दूसरे छोर पर, मैं तुम्हारे बारे में सोच रही हूँ। मेरा कमरा धीरे-धीरे चाँद से ओझल हो रहा है।
यह सुखद है। या फिर इसे मिटा दूँ और कहूँ कि यह दुःखद है। किसी कालखंड में मैं आशा की जिस असाध्य तान को छेड़ रही हूँ, तुम उसे सुन नहीं सकते।
ला लाला ला। देखो? मैं अपनी आँखें बंद करके उन अँधेरी पर्वत घाटियों को देख रही हूँ, जिन्हें पार करना है : तुम तक पहुँचने के लिए।
मैं तुम्हें प्रेम करती हूँ, यह कहना वैसे ही है, जैसे : शब्दों में लिखना।
कैरोल एन डफ़ी (जन्म : 1955) स्कॉटिश कवयित्री हैं। उनकी यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करने लिए Carol Ann Duffy : Collected Poems से चुनी गई हैं। सुशीलनाथ कुमार हिंदी की नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक और अनुवादक हैं।