सू-कुंग शू की कविताएँ ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद और तस्वीरें : देवेश पथ सारिया
हान-शेन को युन-यांग सराय में अलविदा
नदियों और दरियाओं के द्वारा कब से बँटे हुए
हम कितने सालों से नहीं मिले
और अचानक तुम्हें मिलना सपने जैसा लगता है
भर आए गले से हम पूछते हैं—
हमारी उम्र क्या हुई है
वर्षा में भीगे हुए बाँस के झुरमुट में
सर्द गीलेपन के बीच हमारी रोशनी इकलौती चमकती है
कल आने वाले दुःख को भूलकर
अलविदा की घड़ी में मज़ा लेते हैं शराब का
जब मेरा चचेरा भाई लू लुन रात में मिलने आया
शांत रात के सिवा नहीं है कोई और पड़ोसी,
मैं एक पुराने कॉटेज में रहता हूँ;
बारिश की बूँदें पीली पत्तियों पर चमकती हैं,
रौशनी चमका देती है मेरा सफ़ेद सर
इतने बरस दुनिया में भटकने के बाद
तुम्हें यहाँ पाकर मुझे संकोच होता है
पर तुम नहीं आ सकते रोज़-रोज़
भाई से ज़्यादा, जीवन भर के दोस्त
बग़ावत के बाद उत्तर चले गए मित्र के लिए
ख़तरे के दिन थे वे, जब हम दक्षिण चले आए थे
अब तुम जाते हो उत्तर दिशा में, मेरे बिना
जब तुम घर जाकर पर्वत के नीलेपन को देखोगे
याद रखना कि मेरा सिर सफ़ेद हुआ जाता है
…एक तबाह क़िले के पीछे डूबता है चाँद
एक पुराने दरवाज़े के पीछे तारा-समूह को छोड़ते हुए
मैं जिस भी दिशा में देखता हूँ
काँपते हुए पंछी और मुरझाती घास है
सू-कुंग शू तांग राजवंश के शासनकाल (618-907) के दौरान हुए कवियों में से एक हैं। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ अँग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद के लिए वर्ष 1929 में प्रकाशित पुस्तक ‘द जेड माउंटेन ए चायनीज़ एन्थोलॉजी’ से ली गई हैं। इन कविताओं का संभावित रचनाकाल 766-779 के बीच है। इनका मूल चीनी से अँग्रेज़ी अनुवाद विटर बायनर ने किया है। इसके लिए उन्होंने किआंग कांग-हु द्वारा उपलब्ध कराई गई दस्तावेज़ों का उपयोग किया है। देवेश पथ सारिया हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : ईश्वर तुम पर कोई उपकार नहीं करता