अल-सद्दीक अल-रद्दी की कविताएं ::
अनुवाद और प्रस्तुति : विपिन चौधरी
वर्ष 1969 को सूडान के ओमदुर्मन शहर में जन्मे अल-सद्दीक अल-रद्दी अरबी भाषा के प्रमुख अफ्रीकी कवि हैं. उनकी कविताएं कल्पनाशील दृष्टिकोण और भावनात्मक सरलता की व्यापकता के कारण संसार भर के कविता-प्रेमियों के बीच सराही जाती हैं. सूडान की समृद्ध सांस्कृतिक और भाषाई विविधता और उसके जटिल इतिहास के साथ आपसी संबंध उनकी कविताओं में अक्सर देखने को मिलता है. सूडान की समृद्ध आध्यात्मिकता और शानदार पौराणिक साहित्य की उपजाऊ परंपरा के बीच सामंजस्य स्थापित करने का काम सद्दीक बड़ी बारीकी से करते हैं. उनकी कविताओं में मृदुलता, विरह, दुःख-दर्द और कल्पना को भेदने वाला सौंदर्य और उसकी उठान की बारीकी पाठकों को आश्चर्यचकित करती है. ‘सांग्स ऑफ सोलीट्यूड’ (1996), ‘द सुल्तान्स लैबिरिंथ’ (1996 ), ‘द फार रीचेस ऑफ द स्क्रीन’ (2009) उनके कविता-संग्रहों के नाम हैं.
कुछ भी तो नहीं
पढ़ना शुरू करने से पहले
कलम को नीचे रख
स्याही पर ध्यान दो
कैसे शामिल कर लेती है
अपने भीतर वह इस बहाव को?
आंखें संकुचित कर
दूर क्षितिज की ओर देखते हुए
दृष्टि के विस्तार और हाथों के छल को जानो
मुझे या किसी दूसरे को भी दोष मत देना
भले ही पढ़ने से पहले
या लहू को समझने से पहले
चल निकलो तुम
मृत्यु के नजदीक!
स्वप्न
कविता
तुम हरे रंग की देह
हो सकती हो
हो सकती हो तुम
एक भाषा
पंखों और खुद को संग लिए
भटकता जिसमें मैं,
बन जाओ न मेरी जीभ की प्रेरणा
ताकि बन सकूं मैं
अपने कबीले की आवाज का चरागाह
अगरचे वे खामोश
अस्थिर और अकेले हैं
देख रहा हूं मैं
नहीं हो तुम हरे रंग की देह
मोल-भाव करने में माहिर उस्ताद नहीं हो
न ही हो कोई गंभीर विचार
कविता तुम तो हो
प्रलाप के इंतजार में
रहने वाली मेरी स्मृति!
सहानुभूति
जब भी तुम्हारा नाम
देने लगता है कई कानों पर दस्तक
झिझक उठता हूं मैं
तुम्हारे रहस्य को
बने रहने देना चाहता हूं रहस्य
( इच्छाओं ने तुम्हारे चेहरे को परिपक्व कर दिया है, तुम्हारी आंखें मृदुलता से चमक रही हैं, पुकारने पर तुम्हारी देह कंपकंपाने लगती है)
तुम्हारा जिक्र
मेरा अंतःकरण चीर देता है
और इसी कारण
दुपहर की इस गर्मी में आ गया हूं मैं
तुम्हारे करीब
सुनाने सुबह का अफसाना
तुम…
तुम…
मेरा एकमात्र मज़हब!
प्रार्थना
स्याही और आंसुओं के बीच
शब्द
सिर को ऊंचा उठाकर
करता है साष्टांग प्रणाम
उसके इस दिव्य आह्वान से जगमगा उठता है
पन्ना!
कविता
मैंने फरिश्ते को देखा और
गा रहे पक्षियों को मारे जाते हुए
मैंने घोड़े को देखा,
सैनिकों, दुःखी स्त्रियों को शोक मनाते हुए, जड़हीन हो चुके पेड़ों को, और चीख और रुदन से तपी महिलाओं को, सड़कों को, प्रचंड आंधी, दौड़-प्रतियोगिताओं की कारों, नौकाओं को देखा करीब से, देखा निर्दोष बच्चों को
मैंने कहा : ‘‘जल के स्वामी, चीजें इस रूप मे हैं’’
मिट्टी के बारे में मुझे बताओ, आग, धुआं, परछाइयों, गंध की सच्चाई के बारे में बताओ
जानबूझकर ही,
अपने घरों के बारे में मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा!
प्राणहीन
तुम्हारा हृदय इस तरह धड़कता है मानो
वह पहले ही मौजूद हो तुम्हारी देहरी पर
या जैसे कि मुझे हो उसका इंतजार
ठीक वैसे ही जैसे दुपहर के समय
ढेरों पक्षी आकर तुम्हारे दरवाजे पर करते हैं प्रहार
धैर्य की उम्र—
धड़कता हुआ एक वन!
लेखन
उसने स्वयं को एक कोरे पन्ने के हवाले कर दिया है
इसके भीतर एक स्त्री के लिए घर बनाया है
अपने भीतर के संसार को यहीं अनावृत करता है वह
इस संसार में चमकता है जिसके लिए तड़पता था वह
रिहाइश बनाता है इसमें
अभी तक जो संसार नहीं है उसका!
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यहां प्रस्तुत कविताएं हिंदी अनुवाद के लिए poetrytranslation.org/poets/al-saddiq-al-raddi से ली गई हैं. विपिन चौधरी हिंदी की सुपरिचित लेखिका और अनुवादक हैं. उनसे vipin.choudhary7@gmail.com पर बात की जा सकती है. यह प्रस्तुति ‘सदानीरा’ के 19वें अंक में पूर्व-प्रकाशित.