अंतोनियो ग्राम्शी के कुछ उद्धरण ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : गार्गी मिश्र

अंतोनियो ग्राम्शी │ तस्वीर सौजन्य : Ivan Canu / salzmanart.com

मैं अपने विवेक से निराशावादी हूँ, लेकिन अपनी इच्छाशक्ति से आशावादी हूँ।

आधुनिकता का अर्थ है—मोहभंग न होते हुए बिना भ्रम का जीवन जीना।

सत्य कहना, क्रांतिकारी होना है।

विनाश कठिन है। यह निर्माण जितना ही कठिन है।

वास्तव में संकट इस तथ्य में है कि पुराना निष्प्राण हो रहा है और नया जन्म नहीं ले सकता।

मनुष्य हर विवेक से ऊपर है—एक चेतना, जो प्रकृति का नहीं बल्कि इतिहास का उत्पाद है।

सभी मनुष्य बुद्धिजीवी हैं, लेकिन सभी मनुष्य समाज में बुद्धिजीवियों का कर्म नहीं करते।

समग्रता में भाषा, रूपक की सतत प्रक्रिया है। अर्थ-मीमांसा का इतिहास, संस्कृति के इतिहास का एक पहलू है। भाषा एक ही समय में एक जीवित वस्तु, जीवन और सभ्यताओं के जीवाश्मों का संग्रहालय है।

लोकप्रिय तत्त्व—महसूस करता है, लेकिन वह हमेशा जानता या समझता नहीं। बौद्धिक तत्त्व—जानता और समझता है, लेकिन वह हमेशा महसूस नहीं करता।

संघर्ष में हार की कल्पना हमेशा होनी चाहिए। इसलिए अपने हार के उत्तराधिकार की तैयारी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, जितनी अपनी विजय।

संस्कृति एक विशेषाधिकार है। शिक्षा एक विशेषाधिकार है। पर हम नहीं चाहते कि ऐसा हो। संस्कृति के सामने सभी युवा एक समान होने चाहिए।

मैंने कितनी ही बार सोचा है कि क्या व्यक्तियों से संबंध बनाना संभव है, जब किसी के मन में किसी के लिए भी कोई भावना न रही हो; अपने माता पिता के लिए भी नहीं। अगर किसी को कभी भी गहराई से प्यार नहीं किया गया, तो क्या उसके लिए सामूहिकता में रहना संभव है? क्या इन सबका मेरे जैसे युद्धप्रिय के ऊपर कोई प्रभाव नहीं रहा? क्या इस सबसे मैं और बंध्य नहीं हुआ? क्या इन सबसे एक क्रांतिकारी के रूप में मेरी गुणवत्ता कम नहीं हुई? मैं जिसने हर चीज़ को बौद्धिकता और शुद्ध गणित के पैमाने पर रख दिया।

मेरी व्यावहारिकता इसमें निहित है—इस ज्ञान में—कि अगर आप दीवार पर अपना सिर पीटते हैं, तो वह आपका सिर है जो कि चोटिल होता है; दीवार नहीं। यही मेरी ताक़त है—मेरी एकमात्र ताक़त।

सामान्य ज्ञान दर्शन का लोकगीत है।

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अंतोनियो ग्राम्शी (1891-1937) विश्वप्रसिद्ध इतालवी मार्क्सवादी लेखक-विचारक-दार्शनिक हैं। उनके यहाँ प्रस्तुत उद्धरण उनकी मशहूर पुस्तक ‘प्रिज़न नोटबुक्स’ से चुने गए हैं। हिंदी में ग्राम्शी का नामवर सिंह के हवाले से आया यह उद्धरण भी अत्यंत लोकप्रिय है : “युद्ध के मोर्चे पर दुश्मन के सबसे कमज़ोर पक्ष पर आक्रमण करना भले ही सफल रणनीति हो, लेकिन बौद्धिक मोर्चे पर दुश्मन के सबसे मज़बूत पक्ष पर आक्रमण करना ही सफल रणनीति है।” गार्गी मिश्र कविता, कला और अनुवाद के इलाक़े में सक्रिय रहती हैं। ‘सदानीरा’ पर उपलब्ध संसारप्रसिद्ध साहित्यकारों-विचारकों के उद्धरण यहाँ पढ़ें : उद्धरण

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