फ़्योदोर दोस्तोयेवस्की के कुछ उद्धरण ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद : आसित आदित्य
एक
जानते हो, प्यारे बच्चे, अठारहवीं सदी में एक बूढ़ा पापी हुआ करता था जिसने घोषणा की कि यदि इस दुनिया में ईश्वर नहीं होता तो उसे निर्मित करने की आवश्यकता पड़ती… दरअसल मनुष्य ने ही ईश्वर का निर्माण किया है। पर अजीब और चमत्कारी बात यह नहीं है कि ईश्वर का अस्तित्व होना चाहिए या नहीं; चमत्कारी है ये विचार, ईश्वर की आवश्यकता का विचार भला कैसे मनुष्य जैसे निर्दयी, निष्ठुर, अनैतिक प्राणी के दिमाग़ में प्रवेश कर गया।
इवान, अल्योशा से; द ब्रदर्स करमाज़ोव से
दो
…और इसलिए मैं कहता हूँ कि मैं पूरी तरह ईश्वर को स्वीकार करता हूँ। लेकिन तुम्हें ध्यान देना चाहिए कि यदि सच में ईश्वर का अस्तित्व है और यदि सच में उसने सृष्टि का निर्माण किया है तो, जैसा कि हम सभी जानते हैं, उसने इस सृष्टि को यूक्लिड के रेखागणित और अंतरिक्ष में मानव-मस्तिष्क के त्रिविमीय अवधारणा के अनुसार बनाया है। फिर भी कुछ रेखा-गणितज्ञ एवं दार्शनिक एवं कुछ असाधारण लोग इस बात पर संदेह करते हैं कि क्या संपूर्ण ब्रह्मांड या मोटे तौर पर कहें तो संपूर्ण अस्तित्व यूक्लिड के रेखागणित के अनुरूप निर्मित है; वे तो यह भी सोचते हैं कि दो समांतर रेखाएँ, जो यूक्लिड के अनुसार इस धरती पर कहीं नहीं मिलती, कहीं अनंत पर मिल सकती हैं। मैं इस निष्कर्ष पर पहुँच चुका हूँ कि जब मैं इतनी छोटी-सी चीज़ नहीं समझ सकता तो मैं ईश्वर को समझने की उम्मीद भी नहीं कर सकता। मैं नम्रतापूर्वक स्वीकार करता हूँ कि मेरे पास ऐसे प्रश्नों को हल कर पाने की योग्यता नहीं है। मेरे पास यूक्लिड के रेखागणित को समझने वाला मस्तिष्क है, मैं भला कैसे उन समस्याओं को हल कर सकता हूँ जो इस दुनिया की हैं ही नहीं?
इवान, अल्योशा से; द ब्रदर्स करमाज़ोव से
तीन
वह स्विट्ज़रलैंड में उसके पहले वर्ष के आरंभिक दिनों की बात थी। तब वह क़रीब-क़रीब बौड़म (इडियट) था; यहाँ तक कि वह सही से बोल भी नहीं पाता था―और कभी-कभी तो यह भी नहीं समझ पाता था कि उसे किस चीज़ की आवश्यकता थी। एक बार एक उजले धूप वाले दिन वह पहाड़ी की तरफ़ चला गया और काफ़ी देर तक चलता रहा, उसका मस्तिष्क एक अत्यंत दुखदायी; लेकिन अनिरूपित विचार से ग्रस्त था। उसके सामने चमकीला आकाश था, नीचे झील थी और चारों तरफ़ क्षितिज था—चमकीला और असीम जिसका कोई अंत नज़र नहीं आता था। काफ़ी देर तक दुःखी मन से वह उसे निहारता रहा। उसे याद आया कि किस प्रकार उसने चमकीले, नीले आकाश की तरफ़ अपनी बाँहें फैलाई थीं और उसकी आँखों से आँसू बह चले थें। वह चीज़ जो उसे प्रताड़ित कर रही थी, वह यह थी कि वह पूरी तरह से इन सबके बाहर था। वह उल्लास क्या था? वह भव्य-लीला किसलिए थी जिसका कोई अंत नहीं था, जिसकी तरफ़ वह अपने बचपन के दिनों से ही खींचा जाता था, पर उसमें कभी भाग नहीं ले सका था? हर सुबह वही चमकीला सूरज उदित होता है, हर सुबह झरने में वही इंद्रधनुष, हर शाम दूरस्थ आकाश के विरुद्ध सबसे ऊँचे पहाड़ पर जमा बर्फ़ बैगनी रंग से प्रकाशित हो उठता है, गर्म धूप में उसके इर्द-गिर्द भनभनाने वाले हर छोटे कीट की समवेत स्वरों में गाए गीतों में भागीदारी होती है; वह अपना स्थान जानता है, उससे प्यार करता है और ख़ुश है। घास की हर पत्ती बढ़ती है और प्रसन्न है! हर चीज़ का अपना एक रास्ता है, और सभी अपने रास्ते पहचानते हैं, वे एक गीत के साथ आगे जाते हैं और एक गीत के साथ वापस लौट आते हैं। सिर्फ़ वही है जो कुछ नहीं जानता है, जो कुछ नहीं समझता है, न ही लोगों को और न ही आवाज़ों को; वह इन सबसे बाहर है, निर्वासित है।
प्रिंस मिश्किन के विषय में, द इडियट से
चार
मुझे बताओ, मुझ पर क्यों दया करनी चाहिए? नहीं! मुझ पर दया करने का कोई कारण नहीं है! मुझ पर दया करने के बजाय मुझे सूली पर चढ़ा दिया जाना चाहिए! मुझे सूली पर चढ़ा दो, मुझे सूली पर चढ़ा दो, मेरे न्यायधीश―पर मुझ पर दया करो! और फिर मैं स्वयं ही सूली पर चढ़ा दिए जाने के लिए चला जाऊँगा!
मार्मेलोदोव, शराबख़ाने में उपस्थित लोगों से; क्राइम एंड पनिशमेंट से
पाँच
मैं स्वयं से पूछा करता था—मैं इतना मूर्ख क्यों हूँ? यदि सारे लोग मूर्ख हैं―और मैं जानता हूँ कि वे मूर्ख हैं―तो मैं समझदार क्यों नहीं हो जाता? क्योंकि मैंने देखा सोनिया कि यदि कोई सारे लोगों के समझदार होने की प्रतीक्षा करने लगा तो बहुत देर हो जाएगी… फिर मैं समझ गया कि ऐसा कभी नहीं हो सकता कि लोग कभी नहीं बदलेंगे और कोई उन्हें बदल नहीं सकता और उन्हें बदलने का प्रयास व्यर्थ है। हाँ, ऐसा ही है। यही उनकी प्रकृति का नियम है सोनिया… ऐसा ही है!… और अब मैं जान चुका हूँ सोनिया कि जो मन और आत्मा से मज़बूत होगा उसका ही उनपर अधिकार होगा। जो साहसी होगा वही उनकी दृष्टि में सही होगा। जो इंसान अधिकतर वस्तुओं का तिरस्कार करता है वही उनके मध्य विधिकार (नियम बनाने वाला) होगा और जो उनमें से सबसे साहसी होगा वही सबसे सही होगा। ऐसा ही होता आया है और ऐसा ही होता रहेगा। इसे (इस सच्चाई को) वही नहीं देख सकता है जो अंधा हो!
रस्कोलनिकोव, सोनिया से; क्राइम एंड पनिशमेंट से
फ़्योदोर दोस्तोयेवस्की (1821–1881) संसारप्रसिद्ध रूसी उपन्यासकार हैं। आसित आदित्य हिंदी की नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक और अनुवादक हैं। इस प्रस्तुति से पूर्व वह ‘सदानीरा’ के लिए फ़्रेडरिक नीत्शे के उद्धरणों का अनुवाद कर चुके हैं : आत्महत्या का विचार एक ख़ूबसूरत सांत्वना है