आख़िरी बातचीत :: आग्नेय और अविनाश मिश्र
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‘भक्ति अपने आपमें एक कलेक्टिव अवधारणा है’
बातें :: दलपत सिंह राजपुरोहित से जे सुशील
‘किसी किशोरवय बालक की तरह लोग हिंदी में प्रयोग करते हैं’
बातें :: डेज़ी रॉकवेल से जे सुशील
जब दो उस्ताद मिले
प्रसंग—लाओत्से और कन्फ़्यूशियस :: अँग्रेज़ी से अनुवाद और प्रस्तुति : योगेंद्र गौतम
‘अगर तथ्यों ने लोगों का दिमाग़ नहीं बदला है तो’
बातें :: अमिताभ घोष से जे सुशील
विश्व रंगमंच दिवस पर
चार्ली चैप्लिन की याद :: स्वर और प्रस्तुति : शैलजा चतुर्वेदी