प्रसंग—लाओत्से और कन्फ़्यूशियस ::
अँग्रेज़ी से अनुवाद और प्रस्तुति : योगेंद्र गौतम
यह किंवदंती है कि दो ‘मास्टर्स’ एकाधिक बार मिले थे।
लाओत्से—कन्फ़्यूशियस से कुछ वरिष्ठ थे। चुआंग चू की पुस्तक के शायद एक अप्रामाणिक अध्याय, जो ‘द बुक ऑफ़ ताओइस्ट मास्टर चुआंग’ से है, में इनकी मुलाक़ातों का ताओवादी हास्य-भाव के साथ वर्णन है।
कन्फ़्यूशियस इक्यावन की आयु को पहुँच चुके थे और उन्होंने अभी तक ‘ताओ को नहीं सुना’ था। अंततः वह पेई के दक्षिण में गए और लाओत्से से मुलाक़ात की।
‘‘अहा, यहाँ हो तुम!’’ लाओत्से ने कहा, ‘‘मैंने तुम्हारे बारे में सुना है कि तुम उत्तर के एक योग्य व्यक्ति हो। क्या तुमने ताओ प्राप्त कर लिया है?’’
‘‘अभी नहीं।’’— कन्फ़्यूशियस ने कहा। ‘‘आपने इसे कैसे खोजा? मैंने इसे नियम-विनियमन से खोजा, पाँच साल गुज़र गए और मैं इसे न पा सका।’’
‘‘और तुमने इसे खोजा कैसे?’’ लाओत्से ने पूछा।
‘‘मैंने इसे यिन और येंग में खोजा। बारह बरस गुज़र गए, फिर भी मैं इसे न पा सका।’’
‘‘बिल्कुल, बिल्कुल…’’ लाओत्से ने उत्तर दिया, ‘‘ताओ ऐसे पाया ही नहीं जा सकता। पुराने समय के मनीषी वनों में उन्मुक्तता से घूमते थे। उन्होंने सरलता की गोद में पोषण पाया, वे अदेयता के उपवन में घूमे, अक्रिया में रहे और उन्होंने सहज ही पोषण पाया। उनकी यात्रा ने उन्हें सच्चा ताओ उपलब्ध कराया। यही उनका धन था…’’
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कन्फ़्यूशियस ने लाओत्से से फिर भेंट की और इस बार दया और धर्म के गुणों के बारे में पूछा।
लाओत्से ने उत्तर दिया :
‘‘जब छाज फटकने से भूसा आँखों को अंधा कर देता है, तब स्वर्ग (आकाश), पृथ्वी और चारों दिशाएँ अपने स्थान से भटकी हुई प्रतीत होती हैं। किसी मच्छर या गुड़मक्खी का दंश मनुष्य को सारी रात जगाए रख सकता है, उसी प्रकार तुम्हारे तथाकथित गुण कुछ नहीं करते, बस मन को गड़बड़ कर देते हैं और भ्रम उत्पन्न कर देते हैं।
दुनिया को सरलता से और बिना तराशी हुई चट्टान की तरह टूटने दो। हवा के साथ इसे स्वच्छंद चलने दो और आंतरिक शक्ति के साथ दृढ़ रहो। खीझते-हाँफते न रहो, एक ढोल-सा पीटते हुए कि तुम्हें किसी ढीठ बच्चे का पीछा करना है। हंस को धवल रहने के लिए दैनिक स्नान की आवश्यकता नहीं, जैसे कौए को काला ही रहने के लिए किसी स्याही की आवश्यकता नहीं…’’
जब कन्फ़्यूशियस लाओत्से के पास से लौटे तो तीन दिन तक शांत रहे। उनके शिष्यों ने प्रश्न किया, ‘‘जब आप लाओत्से से मिले, तो आपने उन्हें क्या शिक्षा दी?’’
‘अंततः’’— कन्फ़्यूशियस ने उत्तर दिया, ‘‘मैंने एक ड्रैगन पर अपनी नज़रें बैठाई हैं। ड्रैगन, जो देह-दर्शन कराता कुंडली मारे बैठा है, जो अपने शल्क पर बने खाँचों को दिखाते हुए रेंगता है। ड्रैगन, जो मेघों की श्वास पर चलता है, और जो शुद्धतम रूप में यिन और येंग खाता है। मेरा मुँह आश्चर्य में खुल जाता है। ऐसे ड्रैगन को मैं क्या शिक्षा दे सकता हूँ?’’
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सिमा कियान (145-86 ई.पू.) एक महान इतिहासकार ने एक इसी तरह की भेंट का उल्लेख लाओत्से के अपने जीवन-रेखचित्र में किया है।
लाओत्से चू प्रांत के दक्षिण में स्थित कुरेन ग्राम से थे। उनका नाम ली-डैन था और वह चाऊ के आधिकारिक पुरा-लेखपाल थे। कन्फ़्यूशियस चाऊ गए उनसे संस्कारादि पर कुछ बातें करने। लाओत्से ने उन्हें कहा :
‘‘तुम उन लोगों की बात करते हो जो बहुत पहले अपनी अस्थियों के साथ नष्ट हो चुके हैं। उनके शब्दों के अतिरिक्त कुछ नहीं बचा है। जब कोई सज्जन समय के साथ तारतम्य में होता है, तो वह एक गाड़ी चढ़ता है। जब वह समय के साथ तालमेल में नहीं होता तो उसका मार्ग उतना ही अस्त-व्यस्त होता है जितना वह। मैंने सुना है कि जैसे श्रेष्ठ व्यापारी अपना भंडार यूँ छिपाकर रखता है कि वह न्यूनतम का स्वामित्व रखता दीखता है, उसी प्रकार वास्तविक सज्जन अपनी विपुल आंतरिक शक्ति को मूर्खता की प्रतीति में छिपाकर रखता है। अपने गर्व और लालसाओं से छूटो, अपने वासनात्मक और रुचिकर तौर-तरीक़ों को अलग रखो। उनसे हानि के सिवा कुछ न मिलेगा। बस यही मुझे कहना है।’’
लाओत्से से विदा लेकर आए कन्फ़्यूशियस ने अपने शिष्यों से कहा, ‘‘चिड़ियाँ उड़ती हैं, मछलियाँ तैरती हैं, पशु चलते हैं। यह मैं जानता हूँ। जो चलता है, पकड़ा जा सकता है; जो तैरता है, जाल में फँसाया जा सकता है; जो उड़ता है, किसी तीर के प्रहार से नीचे लाया जा सकता है। लेकिन एक ड्रैगन जो स्वर्ग में बादलों पर चलता है, मेरी समझ से परे है। आज मैंने लाओत्से को देखा है, वह ड्रैगन जैसे हैं।
लाओत्से ने ताओ और आंतरिक शक्ति का सर्जन किया। उन्होंने एकांतवास को… अज्ञातवास में जिए जीवन को पक्ष-पोषित किया। वह चाऊ में लंबे समय तक रहे, पर जब उन्होंने देखा कि चाऊ-वंश पतनोन्मुख है, वह निर्गमन कर गए। जब वह दर्रे के पास पहुँचे तो दर्रे के रक्षक यिन शी ने उन्हें कहा, ‘‘मान्यवर, आप एकांत की ओर प्रवृत्त हैं, मैं आपसे अपने लिए एक पुस्तक लिखने का निवेदन करता हूँ। अतः लाओत्से ने एक पुस्तक पाँच हज़ार शब्दों से कुछ अधिक में दो भागों में लिखी—ताओ का अभ्यास और शक्ति। फिर वह अपने मार्ग चले गए… कोई यह नहीं बता पाया कि वह कौन थे, कोई नहीं जानता था कि अंत में वह कहाँ चले गए। वह एक वैरागी थे।
दोनों लेख कई अर्थों में पृथक् हैं, पर उनमें लाओत्से का दृष्टिकोण उस उत्कृष्ट, शुभ और सबसे शक्तिशाली जीव ड्रैगन की तरह उभयत्र है। उनको किसी विलक्षण प्रतिभा का धनी दिखाया गया है, किसी मन (आध्यात्मिक जीवन शक्ति जो ब्रह्मांड में व्याप्त है) की तरह, जिनका गहन और अंतहीन प्रभाव है, एक महामानव, बादलों पर चलता हुआ एक अमर सत्-पुरुष। सचमुच, चिंग प्रथम के शब्दों में :
ड्रैगन,
स्वर्ग में उड़ता है।
ड्रेको वोलेन्स इन कोएलो।
यह ईश्वर को देखे जाने की
प्राप्ति प्रदान करता है।
येंग जो शनै:-शनै: एकत्र हो रहा है, एकाएक परिणत हो जाता है; यह पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता है। उड़ान स्वतंत्र है, सहज है और निर्बाध है। अभ्यासी ताओ का नैसर्गिक रूप से पालन करते हुए और सहज ही, मानो यह स्वर्ग का कोई अभिलेख हो, बस उड़ान लेता है।
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स्रोत और संदर्भ :
• लाओत्से की ताओ-ते-चिंग (जॉन मिन्फ़ोर्ड द्वारा परिचय और टीका अनुवाद) से, वाइकिंग द्वारा प्रकाशित पेंगुइन प्रकाशन समूह द्वारा मुद्रित।
• ताओ : ताओ या दाओ एक चीनी शब्द है, जिसका अर्थ ‘मार्ग’, ‘पथ’, ‘राह’, या ‘रास्ता’ है। कई बार इसका प्रयोग ‘सिद्धांत’ या ‘समग्र-आस्था’ के लिए होता है।
• यिन और येंग : पुरा चीन दर्शन में यिन और येंग द्वैतवाद का एक सिद्धांत है, जो यह बताता है कि परस्पर विरोधी और विलोम ऊर्जाएँ वास्तव में परस्पर संपूरक और अन्योन्याश्रित होती हैं, और एक दूसरे के उत्थान में सहयोग देती हैं।
योगेंद्र गौतम हिंदी कवि-लेखक और अनुवादक हैं। उनसे और परिचय के लिए यहाँ देखें : प्रेम पर